सत्गुरु वचनामृत | सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने अनेक सत्संग समारोहों के द्वारा विचार सार
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- čas přidán 23. 06. 2023
- परिवार :
जहां एक परिवार में ही आपसी मनमुटाव है. एक परिवार के होते हुए भी सब एक नहीं है तो पूरे संसार का एक होना तो शायद कल्पना की ही बात लगेगी पर बाबा गुरबचन सिंह जी ने इसको सच करके दिखाया कि वाकई ही सारी मानवता एक ही निराकार परमात्मा का अंश है। कोई ऊंचा या नीचा नहीं है। किसी बात से कोई मनमुटाव अगर है भी तो उसको
सन्त-मत अपनाकर दूर किया जा सकता है।
परमात्मा एक है:
जब इस एक निराकार-परमात्मा को जान लिया तो फिर यह भी जान लिया कि एक परमात्मा ही तो सभी के अंदर है। सब इसका ही अंश हैं, सब एक समान हैं, सब सम्माननीय हैं, कोई भेदभाव नहीं है, कोई ऊंच-नीच नहीं है।
सुकूनः
अपनी सोच में इस निराकार परमात्मा को शामिल करके सोच को खूबसूरत किया जा कता है। जीवन में हर जगह, हर समय हर परिस्थिति में जब इस एक परमात्मा का अहसास हता है तो मन अपने आप सुकून का अहसास करता है।
सुमिरणः
हमें अपनी सुविधा के अनुसार परमात्मा का अहसास न हो कि पूरे दिन तो मुंह से सुमिरण निकला नहीं और जब रास्ते में कोई ठोकर लग गई तो अचानक मुह 'तू ही निरंकार
निकल रहा है। ठोकर लगे या न लगे सुमिरण का भाव मन में हमेशा रहे। सुमिरण को सिर्फ
शब्दों तक ही सीमित न रखें। हर समय अपने आप को इस परमात्मा निराकार के
साथ जोड़कर रखें और स्वांस-स्वांस में इसका ही सुमिरण चलता रहे।
परमात्मा की रज़ाः
अक्सर बोल तो देते हैं कि जो कुछ हो रहा है सब परमात्मा की रज़ा में, इसके भाणे में हो हा है पर क्या वाकई ही हम अपने आप को कभी न कभी, कर्ता नहीं मान बैठते हैं? हर समय सचमुच में हमारा यही भाव रहना चाहिए कि चाहे अच्छी चीज़ हो रही है या जीवन में कुछ अच्छा नहीं भी हो रहा है तो भी वो चीज अच्छी ही है क्योंकि परमात्मा ही सब कुछ कर रहा है।
समर्पण भावः
मन में दुःख के समय परमात्मा में दोष न ढूंढ़ते रहें बल्कि जो भी हो रहा है, जैसा भी हो रहा है, सब परमात्मा की रज़ा में हो रहा है, सब करने वाला ये परमात्मा ही है, हमारे मन में हमेशा यही समर्पण का भाव रहे।
इकमिकताः
ब्रह्मज्ञानी इस प्रभु को देखकर, ब्रह्मज्ञान द्वारा ही इसको करीब महसूस करते हैं। उनकी यह करीबी हर समय, चौबीसों घंटे की करीबी होती है। एक इकमिक वाली अवस्था होती है
कि परमात्मा और इस आत्मा में कोई फर्क नहीं है। इस अवस्था के आते ही आत्मा की
जन्मों-जन्मों की भटकन दूर हो जाती है और फिर हर समय अंग-संग परमात्मा की ही मौजूदगी रहती हैं।
अहसास :
इन्सान ने मन की अवस्था के साथ-साथ अपनी सोच को भी तोड़-मरोड़ लिया है। उसने ठान लिया है कि मैंने अपनी सोच ठीक नहीं करनी क्योंकि ये बुराई भी परमात्मा ही मुझसे करवा रहा है। यहां ज़रूरत चेतनता और विवेक की है कि हमने अपने कर्म कैसे बनाने हैं। हर पल में जितना ज्यादा अहसास इस परमात्मा का हमारे जीवन में होगा, उतनी ही सही दिशा हम
अपनाते चले जाएंगे और सच्चे मनुष्य होने का प्रमाण देंगे।
मुबारक जीवन:
जीवन जीने का तरीका यही है कि जीवन में हर पल इस निराकार-परमात्मा को बसाया जाए। वह तरीका ही भक्ति बन जाता है और असली मायने में एक जीने लायक जीवन जिया जाता है। घर-बार में रहकर, काम-काज करते हुए, सन्तों ने इस परमात्मा को हर पल अपने जीने का आधार बनाया है। सिर्फ तब ही नहीं जब कोई दुख- दुविधा जीवन में है, सुख के समय भी इस परमात्मा को ही याद किया है। जब कोई स्थिति अपने अनुसार न हो तब भी
इसी के आसरे में रहें, तभी वह जीवन मुबारक जीवन होता है।
आसरा:
ब्रह्मज्ञान की दात हमारे हिस्से में आई है तो कर्म रूप में भी, ब्रह्मज्ञान को ही हम हर समय दर्शाए । ज्ञान और कर्म, पक्षी के दो पंखों के समान हैं। पंख दोनों हों, तभी पक्षी अपनी उड़ान भर सकता है। सिर्फ ब्रह्मज्ञान ले लिया, इसे समझा नहीं, कर्मों में ढाला नहीं तो
इस जीवन की उड़ान भी सुंदरता भरी नहीं हो सकेगी। फिर मन उस संसार में
ही खचित रहेगा जो संसार अपने आप में क्षण भंगुर है। फिर मन में आनंद की
अवस्था का अहसास भी नहीं होगा और हर पल बेचैनी ही बढ़ती जाएगी। संसार ने अपना रूप बदलते रहना है। कोई साधन, कोई सामान नया है तो वो भी पुराना हो जाएगा पर यह परमात्मा तो हर समय ही नया है। संसार में रहते हुए मन को इस परमात्मा पर ही आधारित रखना है, इस निराकार के आसरे ही हर पल जीना है।
आत्म-सुधारः
अपना सुधार हर समय किया जा सकता है क्योंकि परमात्मा ने हमें ऐसा ही बनाया है कि हम हर समय जीवन से कोई न कोई सीख लें। हर समय अपने आप को एक करेक्शन मोड में रखें और स्वयं का सुधार करते जाएं। जहां अपने अंदर कोई कमी दिख रही हो, उसको इस ब्रह्मज्ञान की दात और इस सत्संग के माध्यम से ठीक करते जाएं। यह जो महापुरुषों का
संग मिला है इसके जरिए आत्म-सुधार करते जाएं यह पूरी प्रकृति परमात्मा की ही रचना है।
और यह शिक्षाएं भी हर जगह से मिल जाती हैं कि कैसे अपने जीवन को सही मार्ग पर खना है।
प्रेमाभक्तिः
सन्तों ने मनुष्य को युगों-युगों से प्रेमाभक्ति की ओर ही ले जाने वाली बात कही है कि अपने जीवन में जितना ज्यादा इस प्रभु की याद को बसाओगे, उतना ही तुम्हारा इससे प्यार होगा और फिर इसकी बनाई हुई रचना से भी प्यार होगा अगर हम अपने आपको एक माइक्रोस्कोप जैसी सूक्ष्म-दृष्टि से भी अगर देखेंगे तो लगेगा कि कहीं न कहीं यह बुराईया
हम में हैं। वह थीं तो छोटी ही पर हमने अपने मन की अवस्था से उन्हें इतना बड़ा
बना लिया कि सामने वाले की अच्छाई को भी हम सिर्फ अपने छोटे से मन के भाव के कारण नहीं अपना पाते। - Zábava
Dhan Nirankar ji 💔💔💔💔🙏🙏🙏🙏🙏
Dhan nirankar ji 😊🙏
Dhan nirankar ji
SADGURU NIRANKAR MATAJI AAPJI KA BHT BHT SHUKRANA......SADGURU MATAJI SAB SOULS AAPJI K BACCHE HAI.....JAISE DASSI KO PARMATMA SEI MILAYA....AAAPJI SAB AATMAAO KO CHARNO SEI LAGANA MATAJI.....TU HI NIRANKAR...MAI TERI SHARAN....MAINNU BAKSH LO....LOVE U SADGURU JI...🙏🙏🙏🙏🙏🎊🎊🎉🎉🎉🧚♂️🧚♂️🧚♂️
Dhan nirankar ji Santo 🙏❤️🌹🙏🙏🙏❤️🌹🌹🙇
Dhan nirankar ji 🙏🙏🌹🌹