Bhagwad Geeta Shlok1 - Dhritarastra fears the Mahabharat War

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  • čas přidán 27. 10. 2023
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    आज हम श्रीमद् भागवत गीता के प्रथम अध्याय, अर्जुन विषाद योग श्लोक 1 से आरंभ करेंगे याह वार्ता धृतराष्ट्र और उनके सचिव संजय के बीच हो रही है क्योंकि संजय के पास दिव्यदृष्टि थी तो वे महल से ही
    महाभारत का पूरा युद्ध धृतराष्ट्र से संवाद कर रहे थे
    धृतराष्ट्र उवाच।
    धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
    मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥1॥
    धृतराष्ट्र ने कहाः हे संजय! कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित होने के पश्चात, मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया?
    कुरुक्षेत्रे के युद्धस्थल में अर्जुन के पक्ष में श्री भगवान स्वयं खड़े हैं। कौरवो का पिता धृतराष्ट्र अपने पुत्रो की विजय की संभावना के विषय में अतिधिक चिंतित था। अत: इसी चिंता के करण अपने सचिव संजीव से पूछा उन्होंने क्या किया
    वाह अश्वस्थ था कि उसके पुत्र, तथा उसके छोटे भाई पांडु के पुत्र कुरूक्षेत्र की युद्धभूमि में संग्राम के लिए एकत्र हुए हैं। फिर भी उसकी जिज्ञासा सार्थक है, वह नहीं चाहता था कि भाईयों में कोई समझौता
    हो, अत: वह युद्धभूमि में अपने पुत्रों का भाग्य के विषय में अश्वस्थ होना चाह रहा था, क्योंकि इस युद्ध को कुरूक्षेत्र में लड़ा जाना था, जो एक पवित्र स्थल मना गया है, अत: धृतराष्ट्र अत्यंत भय भीत था कि इस
    पवित्र स्थल का युद्ध के परिणाम पर ना जाने कैसा प्रभाव पड़े।
    उसे पहले से ज्ञात था कि इसका प्रभाव अर्जुन तथा पांडु के अन्य पुत्रो पर अत्यंत अनुकूल पड़ेगा, क्योंकि स्वभाव से वे सभी पुण्यात्मा हैं। पांडव तथा धृतराष्ट्र के पुत्र दोनों ही एक वंश से हैं,परंतु यहां पर धृतराष्ट्र के वाक्य से उसके मनोभाव प्रकट होते हैं।
    इस तरह पाण्डु के पुत्रो अर्धात अपने भतीजो के साथ धृतराष्ट्र की मन स्थिति समझी जा सकती है।
    जिस प्रकार धान के खेत से अवनचित पौधे को उखाड़ दीया जाता है, उसी प्रकार इस कथा के आरम्भ से ही ऐसी आशा की जाती है, की जहाँ धर्म के पिता श्री कृष्ण उपस्थित हों, वहाँ कुरुक्षेत्र रूपी खेत में दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र के पुत्रो रूपी अवनचित पौधे को समूल नष्ट करके, युधिष्ठिर आदि नितानत् धर्मिक पुरुषो की स्थापना की जायेगी ।
    कुरूक्षेत्र का उल्लेख वेदो में स्वर्ग के निवासियो
    के लिए भी तीर्थतर्ल के रूप में हुआ है, इसकी
    पूर्ण व्याख्या वामन पुराण में दीया गया है
    संजय को दुर्दर्शन महर्षि वेद व्यास ने दिया था,
    ताकि धृतराष्ट्र को युद्धभूमि का वर्णन करा सके।

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