संत लक्ष्मी सखी भजन Sant Kavi Lakshmi Sakhi, Teruwa Math,Kretpura Bangara

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  • čas přidán 23. 08. 2022
  • संतकवि लक्ष्मी सखी ने हूमरा राग में भी कुछ धार्मिक पदों की रचना की है जो बहुत ही ज्ञानवर्धक है और नैतिकता को विकसित करने वाला है ।इन पदों में कवि ने "ननदिया" शब्द का प्रयोग किया है जिसका मतलब होता है पति का बहन। अर्थात कवि ने अपनी मनो भावना को पति के बहन से व्यक्त किया है ।यहां ननदिया शब्द आम आदमी का भी बोध कराता है जो अध्यात्म से अपरिचित है । निम्नलिखित पद को देखें:
    "ए ननदिया मोर चिन्ही लेहु आतमदेव
    सब कल बल छल क्षुद्रम छोड़ि पद सतगुरु जी के सेव
    झुटें मूठें नेह जगत कर तोरी नाता हरी जी से करी लेव।
    धरी लेहुँ शिश चरण पर गोरी परान अरपन करी देव।
    लछिमी सखी जो ना मिले तोरी, तब हमे अपजस देव।
    (O my Nanadiya,know God in your soul leaving aside all your negative tantrums like power of might ,deceptions. Serve the sacred feet of your Satguru. Make a permanent relation with God by breaking all the fabrications and wrongdoings of this mortal Earth. Sacrifice your life for the sake of God and devote yourself fully to the feet of the Lord. I know that by doing so you will be able to perceive the eternal truth)
    इस पद के प्रथम पंक्ति में प्रयुक्त वाक्यांश "चिन्ही लेहु आतम देव"बहुत ही आध्यात्मिक है ।यह हमें बाइबल की याद दिलाता है जिसमें यह कहा गया है Know thou thyself ,अर्थात अपने आप को पहचानो ।वास्तव में सभी धर्म ग्रंथों का मुख्य उद्देश्य आत्म दर्शन करना ही है ।संत कवि कबीर दास का पूरा साहित्य इसी तथ्य पर आधारित है।
    भोजपुरी क्षेत्र के गाँवों में आज भी महिलाएं विवाह शादी के मौके पर मंगल गारी गाती हैं जो सुनने में बड़ा मधुर होता है, खासकर उस समय जब विवाह के बाद अतिथि आंगन में बैठकर भोजन करते हैं, उस समय पर्दे के पीछे से औरतें मंगल गारी गाती हैं जिसमें दूल्हा के माता पिता और बहन को गाली दिया जाता है ।इसी मंगलगारी राग पर संत कवि लक्ष्मी सखी जी ने भी कुछ अध्यात्मिक गीतों की रचना की है जो अद्वितीय है ।एक प्रसिद्ध मंगल गीत जो प्रायः टेरूवां मठ पर गाया जाता है ,वह इस प्रकार है:
    "एगो गाईले मंगलकारी रघुनाथ कुंवर के।
    हमरा के काहे के करस पुछारी, अपने बा बहिनी छिनारी, रघुनाथ कुंवर के।
    का कहूं यार खसम लगवारी, जेकरा बा लाख हजारी ।
    जइसन बाप ओइसने महतारी ,सब केहू जानेला जवारी।
    खटरस बिंजन सोने कर थारी, लक्ष्मी सखी बुनिया सोहारी।
    एगो गाईले मंगल गारी रघुनाथ कुंवर के।
    (I am singing the Mangal gari in the honour of the bridegroom Lord Raghunath. Now he does not make love with me because he has his own sister who has made relations with several persons. What to say oh my friend, her sisters have several husbands and flatterers. All the people of my village very well know that as his father so is his mother. The sweet and sour dish has been served in the golden plate to make it more flavourous. Lakshmi Sakhi serves buniya (type of sweets) to sweeten the dish).
    यदि इस पद का हम कलात्मक वर्णन करते हैं तो हम पाते हैं कि यह पद बहुत ही दार्शनिक और आध्यात्मिक है। यहां कवि ने पति के बहन(जिस को गाली दिया जा रहा है) की तुलना वैसे पुरुष से की है जो पंच ज्ञानेंद्रियों से ग्रसित है और जिन्होंने भगवान को भुला दिया है और जिनका संबंध संसार के भौतिक वस्तुओं से हो गया है। यहां वैसे लोगों को गाली दिया जा रहा है जो अपने पति अर्थात अपनी आत्मा और आत्म तत्व को भूल गए हैं और दूसरे की तलाश में लगे हुए हैं ।एक भोजपुरी मिठाई बुनिया का भी यहांकवि ने प्रयोग किया है जो कलात्मक और अलंकारिक है। यहां बुनिया जीवन के बहुमूल्य महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गुणों को दर्शाता है जिसे हर मानव को भगवान के प्रति समर्पित करना चाहिए।
    अमर कहानी के कुछ पद खेमटा राग पर भी आधारित है जो बहुत ही लयात्मक और उत्साहवर्धक है ।इन पदों में कवि ने बहुत ही महत्वपूर्ण अलंकारों का बड़ा ही सटीक प्रयोग किया है जो अद्वितीय और कालजयी है ।एक पद में कवि ने मानव को सुगना या तोता से संबोधित किया है:
    "आव आव ए सुगना अइबऽ त आव।
    बयीठल बयीठल हरि गुन गाव, जेहि जेही मन करे सेही सेही खाव।
    ना त हम आपन बचाइले दाव, नाहक सहे के परी सुअर के घाव।
    हाली हाली चलू सखी दउर दउड़ धाव, अगुताइल बा केवट खुलेला नाव।
    कइले बारे हरी जी से कउल पुराव,लक्ष्मी सखी नाही त रहबे पछताव।
    अइबे त आव ,आव आव ए सूगना।"
    (Come Sugna ,come to the world of God,if you so like. Here chant the name of God without worries and tension and eat whatever you wish to eat. Later on don't blame me that I have not warned you. If you do not follow my advice you will have to meet the the cruel death of a pig. The pig is killed very mercilessly. So O Sakhi, speed up your gait and if possible, run fast to catch the boat of the ferryman Kevat who is very impatient to sail the boat very soon. Now it is time to translate into action all your promises which you made to God in the womb of your mother, otherwise you will have to repent yourself throughout your life)
    With regards
    Dr Amar Nath Prasad ,
    Professor and Head
    Department of English
    Jagdam College ,Chapra, Bihar

Komentáře • 7

  • @sk_editor555
    @sk_editor555 Před 6 měsíci +1

    Jai baba Lakshmi sakhi 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @sunilkryadav8465
    @sunilkryadav8465 Před rokem +3

    Jai shree laxmi sakhi

  • @PintukumarsinghPintusing-ni8vj
    @PintukumarsinghPintusing-ni8vj Před 5 měsíci +1

    Jai laxmi baba

  • @amarnathprasad1028
    @amarnathprasad1028  Před rokem +1

    संत कवि लक्ष्मी सखी जी कहते हैं:
    "आतना जे पढ़लिस ते अंगरेजीआ फरसिया
    त काहे ना कइलिस ते आतम दरसिया।"
    बाबा का यह छोटा परंतु अत्यंत गंभीर पद हमें कबीर दास के पद की याद दिलाता है जिसमें वह कहते हैं :
    " आतम ज्ञान बिना सब सूना ,क्या मथुरा क्या काशी
    पानी बीच मीन प्यासी
    मोहें सुनी सुनी आवत हांसी।"
    अन्य संतों की तरह संत कवि लक्ष्मी सखी जी के जीवन कथा को जानना बड़ा कठिन है ।उनके द्वारा विरचित एक पद में उनके जीवन का एक संक्षिप्त वर्णन मिलता है जो बहुत ही सारगर्भित है ।एक तरफ इसमें उनके जीवन का वर्णन है तो दूसरी तरफ यह एक अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है, जिसके आधार पर हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और उस परमपिता परमात्मा की अनुभूति कर सकते हैं। वह पद इस प्रकार हैं:
    "सुनु सखी सुनहु कहब कछु अउर
    सारन जिला तकथ अमनऊर
    कायथ बंश में जनमेऊ बउर
    राम लखन फल फरी गईले दोउर
    जनम भूमि कबौ पुजलऊं गउर
    मिलि गयिले सतगुरु माथे चढल मउर
    जिएते मरि गयिलों त लऊकल ठऊर
    संत समाज में चली गैलों धऊर
    सतगुरू दिहलन गेयान के लउर
    झटपट मरलो में माछर सऊर
    पाकल ब्रह्म अगिन कर भऊर
    खइलो में साध संत मिलि जऊर
    मौजे टेरूवां में अइलो धऊर
    मिलि जुलि भगत बनावल ठऊर
    लछमी सखी के सुंदर पियवा
    आरे तुम लागी मेरो दऊर"
    (Listen ,O Sakhi, listen. I would like to tell you something more. In a Kayasth family at the village Amnaur in the district of Saran I was born as a moron(feeble minded). In the very beginning of my childhood, the plant of Ram and Lakshman culminated into a ripe and mature fruit in both inner and outer being . My parents were very devoted to the worship of Lord Shiva and Parvati ,so with the result of this worship and devotion I got Satguru( the real guide and teacher to lead one to truth) and consequently ,I was crowned with spiritual achievement . In the company of my Guru ji I was able to see the anchor of my goal by burning the five senses of my body.In other words I was alive in the eyes of the general people but I felt myself physically dead and spiritually alive.This led me to go to the company of several other saints and ascetics .My reverened Satguru gave me the Lathi of knowledge; so without any delay ,at first ,I killed the Saura or charanga fish , that is,my mind.After that this fish was toasted in the holy fire( the deep and sustaining fire) of Brahma or God. When the fish was fully toasted,I ate it it in the company of saints and ascetics. After getting the eternal knowledge, I came running to the village Teruwan where my devotees made a hermitage there. I feel from the very core of my heart that my husband , the God, is the most handsome husband. I beseech him to make a permanent place in both my inner and outer being)
    प्रस्तुत पद को गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि संत कवि लक्ष्मी सखी जी का वास्तविक जन्म स्थान सारण जिला अंतर्गत अमनौर ग्राम में था ।उनके माता पिता जी सनातन धर्म को मानने वाले थे जो गौरी और गणेश की पूजा करते थे और शायद उन्हीं के पुण्य से लक्ष्मी सखी जी को सतगुरु का दर्शन हो गया। भोजपुरी में एक कहावत है कि "बाढ़े पुत पिता के धरमे, खेती उपजेअपने करमे।"इस पद में कवि अपने आप को ,"बउर "कहते हैं जो भोजपुरी का एक शब्द है इसका मतलब होता है कम दिमाग वाला व्यक्ति जिसे हम अंग्रेजी में Slow witted या feeble minded कह सकते हैं। राजा भर्तृहरि ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "नीतिशतकम् "में यह लिखा है किअध्यात्मिक ज्ञान या तो बहुत पढ़े-लिखे या विशेषज्ञ लोगों को हो सकता है या जो एकदम कम पढ़े लिखे लोग हैं, उनको हो सकता है । इन दोनों के बीच वाले वैसे लोग जो थोड़ा ज्ञान पाकर इतराने लगते है उनको तो ब्रह्मा जी भी नहीं समझा सकते हैं।
    अग्यः सुखमराध्य: सुखतरम आराध्येते विशेषज्ञः
    ज्ञानमवधु: विदिग्धम ब्रह्मापि नरं न रणज्यति।

  • @rameshsahu9644
    @rameshsahu9644 Před rokem

    Jail baba Lakshmi Sakhi. Very good efforts forupgrading our lost Bhojpuri culture

  • @amarnathprasad1028
    @amarnathprasad1028  Před rokem

    सारण के महान संत जगन्नाथ दास महाप्रभु और उनके गुरु रौनक दास महाप्रभु के संबंध में विशेष जानकारी के लिए निम्नलिखित यूट्यूब लिंक को क्लिक करें और देखें
    czcams.com/video/VxNoWngD04g/video.html

  • @amarnathprasad1028
    @amarnathprasad1028  Před rokem

    यहां संत कवि लक्ष्मी सखी जी ने मनुष्य की तुलना सुगना से किया है अर्थात आम आदमी जो अध्यात्म रहित है वह देखने में वैसा ही सुंदर लगता है जैसे कि तोता ;परंतु अंदर से वह खोखला होता है ।अतः संत कवि ने वैसे व्यक्तियों को सुगना से संबोधित करते हुए उन्हें आगाह किया है कि अभी भी समय है की तुम ईश्वर की शरण में चले जाओ नहीं तो तुम्हारा परिणाम वैसे ही होगा जैसे सूअर के साथ होता है, अर्थात जैसे सूअर को बड़े बेरहमी से बाँस से बना हुआ खोपचा द्वारा मारा जाता है ठीक वैसे ही मरने के बाद यमराज के दूत वैसे लोगों को सूअर की तरह मारते हैं।इसलिए आओ मेरे बच्चे, तुम सावधान हो जाओ और अभी से ईश्वर की आराधना करो ।इस पद में कवि ने एक बहुत ही सुंदर उपमा का प्रयोग किया है और वह है केवट और उसका नाव ।केवट नदी के किनारे नाव लेकर खड़ा है और जोर-जोर से पुकार रहा है की भाई आप दौड़ कर जल्दी से आइए नहीं तो मैं अपना नाव उस पार ले जा रहा हूं ।यहां नाव के सवारी करने वाले लोगों की तुलना कवि ने आम आदमी से की है नाव यहां एक आध्यात्मिक माध्यम है और नाव को खेने वाला केवट स्वयं भगवान हैं और उस पार अमरलोक है जहां मृत्यु के बाद हर किसी को जाना होता है ।इस पद में कवि ने एक दूसरे शब्द का इस्तेमाल किया है जो भोजपुरी का एक शब्द है जो धीरे-धीरे मृतप्राय होता जा रहा है और वह शब्द है "कउल" ।अर्थात जब बच्चा मां के गर्भ में रहता है तो वह अंधकार में रहता है और वह भगवान से प्रार्थना करता है कि भगवान मुझे शीघ्र अति शीघ्र इस अंधकार से बाहर कर दें और इसके लिए वह भगवान से एक समझौता करता है जिसको हम भोजपुरी में कउल कहते हैं ।परन्तु जन्म के बाद तुरंत वह बच्चा रोने लगता है और अपनी प्रतिज्ञा और समझौता भूल जाता है।