नारद-श्रीराम संवाद
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- čas přidán 30. 06. 2021
- देखि राम अति रुचिर तलावा। मज्जनु कीन्ह परम सुख पावा॥
देखी सुंदर तरुबर छाया। बैठे अनुज सहित रघुराया॥1॥
भावार्थ : श्री रामजी ने अत्यंत सुंदर तालाब देखकर स्नान किया और परम सुख पाया। एक सुंदर उत्तम वृक्ष की छाया देखकर श्री रघुनाथजी छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित बैठ गए॥1॥
* तहँ पुनि सकल देव मुनि आए। अस्तुति करि निज धाम सिधाए॥
बैठे परम प्रसन्न कृपाला। कहत अनुज सन कथा रसाला॥2॥
भावार्थ : फिर वहाँ सब देवता और मुनि आए और स्तुति करके अपने-अपने धाम को चले गए। कृपालु श्री रामजी परम प्रसन्न बैठे हुए छोटे भाई लक्ष्मणजी से रसीली कथाएँ कह रहे हैं॥2॥
बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी॥
मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना दुख भारा॥3॥
भावार्थ : भगवान् को विरहयुक्त देखकर नारदजी के मन में विशेष रूप से सोच हुआ। (उन्होंने विचार किया कि) मेरे ही शाप को स्वीकार करके श्री रामजी नाना प्रकार के दुःखों का भार सह रहे हैं (दुःख उठा रहे हैं)॥3॥
* सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई॥4॥
भावार्थ : ऐसे (भक्त वत्सल) प्रभु को जाकर देखूँ। फिर ऐसा अवसर न बन आवेगा। यह विचार कर नारदजी हाथ में वीणा लिए हुए वहाँ गए, जहाँ प्रभु सुखपूर्वक बैठे हुए थे॥4॥
*गावत राम चरित मृदु बानी। प्रेम सहित बहु भाँति बखानी॥
करत दंडवत लिए उठाई। राखे बहुत बार उर लाई॥5॥
भावार्थ : वे कोमल वाणी से प्रेम के साथ बहुत प्रकार से बखान-बखान कर रामचरित का गान कर (ते हुए चले आ) रहे थे। दण्डवत् करते देखकर श्री रामचंद्रजी ने नारदजी को उठा लिया और बहुत देर तक हृदय से लगाए रखा॥5॥
* स्वागत पूँछि निकट बैठारे। लछिमन सादर चरन पखारे॥6॥
भावार्थ : फिर स्वागत (कुशल) पूछकर पास बैठा लिया। लक्ष्मणजी ने आदर के साथ उनके चरण धोए॥6॥
दोहा :
* नाना बिधि बिनती करि प्रभु प्रसन्न जियँ जानि।
नारद बोले बचन तब जोरि सरोरुह पानि॥41॥
भावार्थ : बहुत प्रकार से विनती करके और प्रभु को मन में प्रसन्न जानकर तब नारदजी कमल के समान हाथों को जोड़कर वचन बोले-॥41॥
चौपाई :
* सुनहु उदार सहज रघुनायक। सुंदर अगम सुगम बर दायक॥
देहु एक बर मागउँ स्वामी। जद्यपि जानत अंतरजामी॥1॥
भावार्थ : हे स्वभाव से ही उदार श्री रघुनाथजी! सुनिए। आप सुंदर अगम और सुगम वर के देने वाले हैं। हे स्वामी! मैं एक वर माँगता हूँ, वह मुझे दीजिए, यद्यपि आप अंतर्यामी होने के नाते सब जानते ही हैं॥1॥
* जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ। जन सन कबहुँ कि करऊँ दुराऊ॥
कवन बस्तु असि प्रिय मोहि लागी। जो मुनिबर न सकहुँ तुम्ह मागी॥2॥
भावार्थ : (श्री रामजी ने कहा-) हे मुनि! तुम मेरा स्वभाव जानते ही हो। क्या मैं अपने भक्तों से कभी कुछ छिपाव करता हूँ? मुझे ऐसी कौन सी वस्तु प्रिय लगती है, जिसे हे मुनिश्रेष्ठ! तुम नहीं माँग सकते?॥2॥
* जन कहुँ कछु अदेय नहिं मोरें। अस बिस्वास तजहु जनि भोरें॥
तब नारद बोले हरषाई। अस बर मागउँ करउँ ढिठाई॥3॥
भावार्थ : मुझे भक्त के लिए कुछ भी अदेय नहीं है। ऐसा विश्वास भूलकर भी मत छोड़ो। तब नारदजी हर्षित होकर बोले- मैं ऐसा वर माँगता हूँ, यह धृष्टता करता हूँ-॥3॥
* जद्यपि प्रभु के नाम अनेका। श्रुति कह अधिक एक तें एका॥
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥4॥
भावार्थ : यद्यपि प्रभु के अनेकों नाम हैं और वेद कहते हैं कि वे सब एक से एक बढ़कर हैं, तो भी हे नाथ! रामनाम सब नामों से बढ़कर हो और पाप रूपी पक्षियों के समूह के लिए यह वधिक के समान हो॥4॥
दोहा :
* राका रजनी भगति तव राम नाम सोइ सोम।
अपर नाम उडगन बिमल बसहुँ भगत उर ब्योम॥42 क॥
भावार्थ : आपकी भक्ति पूर्णिमा की रात्रि है, उसमें 'राम' नाम यही पूर्ण चंद्रमा होकर और अन्य सब नाम तारागण होकर भक्तों के हृदय रूपी निर्मल आकाश में निवास करें॥42 (क)॥
एवमस्तु मुनि सन कहेउ कृपासिंधु रघुनाथ।
तब नारद मन हरष अति प्रभु पद नायउ माथ॥42 ख॥
भावार्थ : कृपा सागर श्री रघुनाथजी ने मुनि से 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा। तब नारदजी ने मन में अत्यंत हर्षित होकर प्रभु के चरणों में मस्तक नवाया॥42 (ख)॥
चौपाई :
* अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी। पुनि नारद बोले मृदु बानी॥
राम जबहिं प्रेरेउ निज माया मोहेहु मोहि सुनहु रघुराया॥1॥
भावार्थ : श्री रघुनाथजी को अत्यंत प्रसन्न जानकर नारदजी फिर कोमल वाणी बोले- हे रामजी! हे रघुनाथजी! सुनिए, जब आपने अपनी माया को प्रेरित करके मुझे मोहित किया था,॥1॥
* तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा। प्रभु केहि कारन करै न दीन्हा॥
सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा। भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा॥2॥
भावार्थ : तब मैं विवाह करना चाहता था। हे प्रभु! आपने मुझे किस कारण विवाह नहीं करने दिया? (प्रभु बोले-) हे मुनि! सुनो, मैं तुम्हें हर्ष के साथ कहता हूँ कि जो समस्त आशा-भरोसा छोड़कर केवल मुझको ही भजते हैं,॥2॥
* करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी॥
गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई। तहँ राखइ जननी अरगाई॥3॥
भावार्थ : मैं सदा उनकी वैसे ही रखवाली करता हूँ, जैसे माता बालक की रक्षा करती है। छोटा बच्चा जब दौड़कर आग और साँप को पकड़ने जाता है, तो वहाँ माता उसे (अपने हाथों) अलग करके बचा लेती है॥3॥
* प्रौढ़ भएँ तेहि सुत पर माता। प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता॥
मोरें प्रौढ़ तनय सम ग्यानी। बालक सुत सम दास अमानी॥4॥
भावार्थ : सयाना हो जाने पर उस पुत्र पर माता प्रेम तो करती है, परन्तु पिछली बात नहीं रहती (अर्थात् मातृ परायण शिशु की तरह फिर उसको बचाने की चिंता नहीं करती, क्योंकि वह माता पर निर्भर न कर अपनी रक्षा आप करने लगता है)। ज्ञानी मेरे प्रौढ़ (सयाने) पुत्र के समान है और (तुम्हारे जैसा) अपने बल का मान न करने वाला सेवक मेरे शिशु पुत्र के समान है॥4॥
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हे राम मेरे नाथ आपके सिवा सब मिथ्या , प्रभू विनंती बारम्बार श्री चरणों का दास बना रहने देना 🙏
बहुत ही सुंदर चौपाई श्रीरामचरितमानस जिसे सुनकर मन गदगद हो प्रभु राम से हम कृपा चाहते हैं कि उनके चरित्र से हमें शिक्षा मिले । सादर जय श्री राम
रघुकुल शिरोमणि प्रभु श्री सीताराम जी आपकी सदा जय हो आप की असीम कृपा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुभाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा॥🌷🙏🚩
Jaijairam
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जय श्री हरि मायापति जगदीश विष्णु जी
आप की महिमा बुद्धि से परे है 👏🏻👏🏻
जय श्री गणेश जी जय माता दी ऊँ नमः शिवाय ऊँ नमः शिवाय ऊँ नमः शिवाय जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री सीताराम जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण भगवान शिव माता पार्वती जी को सादर प्रणाम करता हूँ सादर नमस्कार करता हूँ ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ऊँ नमो नमः शिवाय ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय हर हर महादेव हर हर महादेव हर हर महादेव उमापति कैलाशपति भोलेनाथ भगवान शिवशंकर महादेव उमापते नमः स्वाहा उमापते नमः स्वाहा उमापते नमः स्वाहा देवाधिदेव महादेव
जय रघुवंश शिरोमणि भगवान श्री सीताराम जी की प्रभुजी, जय भगत शिरोमणि भगवान देव ऋषि नारदजी आपके श्री चरणों में प्रणाम प्रभुजी।
❤जय। राम जय राम जय गुरूदेव साहेबबंदगी ❤
❤राम राम राम राम राम राम राम राम ❤
❤राम राम राम राम राम राम राम राम ❤
❤राम राम राम राम राम राम राम राम❤
श्री राम जय राम जय जय राम।
जय जय विघ्न हरण हनुमान।
धन्य हो संगीत में लयबद्ध तरीके से रामचरितमानस का गायन हुआ है कोटि-कोटि नमन धन्यवाद जय श्री राम
अदभुत झलकियां खास झलकियां सनातन धर्म की पूंजी है।रामचरित मानस। ॐ।।जय श्री सीता राम ॐ।।
Mummy Papa Shrisitaram ji ki sada jai ho
JAI HO MAI BAAP❤JAI SHIRI SITA RAM❤
।। जय श्री रघुकुल शिरोमणि।। जय काशी विश्वनाथ।।🙏🙏🙏🙏
जय सियाराम जी
राम से बड़ा राम का नाम
जय श्री राम हर हर महादेव
Sunder prastuti with the best jaankari ke liye permatma sukhi rakhe
जय श्री सीता राम हनुमान जी महाराज कृपा करें अनाथ पर🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय सच्चिदानंद परम धाम 🙏🙏
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
🙏🏵️🌹जय जय श्री सीताराम🌹🏵️🙏
Jai siya Ram 🙏❤🌺🌺⚘⚘🌺🌺🌺🌺🌺🌷🌷🌷
Jai Shri Ram 🙏🙏🙏❤️❤️🌷🌹🌷🚩🚩🚩
Jay shree Ram 🙏 Jay shree Ram katha 👍
Jay Shri Ram Shri Ram Ram Ram Shri Ram 🙏🌹🌹🙏
Jay Jay shri ram
Shree Ram hi Satya hai
Jay Ho Anupam ATI Sundar
Bahut sundar gayan.
Harhar.mahadev
🌹🙏जय सियाराम🙏🌹
Jai Siyaram ji ki
जय श्री सीता राम 🙏❤️🚩
Jai Swaminarayan🚩🙏
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम
।।जय सियाराम।। ❤❤❤
जय श्री कृष्ण
Jai SiyaRam Jiki
जय श्री राम
ATI uuttam
बहुत सुन्दर भावपूर्ण गायन। जय श्री सीता राम।
जय जय श्री राम
Jai Shri Ram ❤
Very sweet voice.
जय प्रभु राम
Jai Shri Ram 🙏🙏🙏
Jay shree ram
श्री राम जय राम रामराम
Om
Shree ram jai ram Jai Jai ram
Ram Ram...
Jai shri ram🙏
।।राधे राधे।। ❤
Bless all
Jaysitaram
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai Jai Shree SitaRam Ji ki!!! 🙏🙏🙏🙏🙏
Jay siyaram ji
Jai Shree Ram
Sita ram
Jai Shri Ram !
VERYGOOD
उमा महेश्वरा
Appreciate your work.. Jai shree Ram.🙏
🙏🙏
💜🦢💜
Ek prathna h aapse isi paramparik dhun m poori ramcharitmanas gaayein.
Jay Bajrangbali Jay Shri Ganesh Jay Siyaram ji Jay Siyaram Jay Siyaram Jay Siyaram
Jai SiyaRam Jiki
Jai shree Ram
Jai SiyaRam Jiki