अगर भक्तों संतों का संग मिल जाता है। तो फिर हमारा ध्यान भी फिर इस निराकार की तरह चला जाता है।
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- čas přidán 19. 03. 2024
- एक सही जीवन जीने का ढंग। के एक ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए। इस निराकार के साथ अपने मन का नाता जोड़े रखना। और अगर यह मन का नाता इसके साथ जुड़ जाता है। तो मन को पावनता, पवित्रता मिलती हैं। क्योंकि जिससे नाता जुड़ा है ये पावन है। यह पवित्र है। ये शाश्वत है, ये एक रस रहने वाला है। ये कण कण में ब्याप्त है इससे विशाल और कुछ है नहीं। तो जिसके साथ यह मन का नाता जोड़ने की महापुरुष बात कर रहे हैं। युगों -युगों से इस मालिक खालिक में ये गुण है। और इससे नाता जुड़ जाए। तो हमारे भी मन की अवस्था ऐसी बनती चली जाती है।
संतों, महापुरुषों ने ये कदम कदम पर प्रेरणाएँ दी है। और यही कहा है की इंसान तो संसार में इतना गलतान हो गया है कि इस मालिक खालिक को ही विसार दिया है तू ने। इसलिए कहा है कि विसर नहि दातार अपना नाम दें। के दातार तुझे ना विसरूं हूँ तुझे ना भुलाऊँ? और इसकी याद चलते फिरते। जिम्मेदारियों को निभाते कामकाज करते रहे। लेकिन इसके साथ साथ संतों महात्माओं का संग जब मिलता है। तो वो भी हमें इसी की याद कराते हैं। इसी की तरफ हमारा ध्यान जोड़ते हैं। इसी लिए प्रार्थना भक्त ने यही की है कि सही मिलाये, जीना मिलेया तेरा नाम चेताव है।
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