Book Discussion | गोपाल कवि और उनकी वृन्दावन धामानुरागावली | Multi Speaker |

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  • čas přidán 12. 06. 2024
  • वृन्दावन धामानुरागावली, बृज अध्येता समूह के कई दशकों की प्रतीक्षा एवं कई शोध कर्ताओं के प्रयासों के फलस्वरूप एक प्रकाशित पुस्तक का रूप ले पायी है | कवि गोपाल राय के कथनानुसार यह भक्त माल की परंपरा में विस्तार पूर्वक
    ग्रन्थ है जिसमें इतिहास, पुराण, श्रुतियाँ व अनुभव का समन्वय है, गोपाल कवि उस वृन्दावन के आराधक हैं जो साधकों के साक्षात्कार से बसा है| संपादक डॉ जयेश खंडेलवाल ने विस्तृत और लघु दोनों प्रतियों का समावेश इस पुस्तक में किया है। इतिहास की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
    After much research and hard work over decades, the book by Shri Gopal Kavi - Vrindavan Dhamanuragavali has been edited and published by Dr Jayesh Khandelwal. This book is an important documentation of the Social and Cultural history, geography and genealogy of Vrindavan.
    वक्ता:
    श्री लक्ष्मी नारायण तिवारी, डॉ कृष्णचन्द्र गोस्वामी, डॉ विष्णु मोहन, श्री भावकृष्ण नांगिया, श्री जयकृष्ण गोस्वामी, डॉ रिंकू वढेरा, डॉ स्वाति गोयल तथा डॉ जयेश खण्डेलवाल
    About the Speakers:
    Shri Lakshmi Narayan Tiwari, Dr Krishnachandra Goswami, Dr Vishnu Mohan, Shri Bhavkrishna Nangia, Dr Rinkoo Wadhera, Dr Swati Goyal and Dr Jayesh Khandelwal
    उपविषय:
    0:00 भूमिका व परिचय
    4:50 श्री लक्ष्मी नारायण तिवारी - धाम के प्रति अनुराग
    9:30 १९०९ में इस पुस्तक की पाण्डुलिपि पहली बार देखी गयी
    13:50 २०१४ के एक लेख में कई प्रतियों का उल्लेख
    17:40 कवि गोपाल राय के कथनानुसार यह भक्त माल की परंपरा में विस्तार
    22:50 बहुत मूल्यवान ग्रन्थ - इतिहास, पुराण, श्रुतियाँ व अनुभव
    27:31 डॉ कृष्णचन्द्र गोस्वामी - मुख्य वक्तव्य
    33:00 उपासना अनुभव से अर्जित - भक्तिकाल में भौतिक वृन्दावन नहीं हृदय में वृन्दावन
    37:37 वृन्दावन शहर पूर्व नियोजित नहीं, राजा, संत सब आये और धीरे धीरे बसते गए
    41:40 जगत सत्य है एवं संसार परिवर्तनशील है
    46:34 गोपाल कवि उस वृन्दावन का आराधक जो साधकों के साक्षात्कार से बसा है
    49:24 डॉ विष्णु मोहन - गोपाल कवि ने १९०० इस पुस्तक को लिखा था जो मूल निवासी थे, किसी संप्रदाय से जुड़े नहीं थे
    55:20 मूल ध्येय - वृन्दावन रस व ब्रज संस्कृति
    59:04 श्री भावकृष्ण नांगिया - गोपाल कवि गौड़ीय संप्रदाय के गोपाल भट्ट गोस्वामी के शिष्य परंपरा में दीक्षित थे
    1:04:18 दो प्रतिलिपियों में अंतर हो तो प्रामाणिक नहीं
    1:06:10 साहित्य व इतिहास का जुड़ाव - मौखिक इतिहास भी स्वीकार्य, सांस्कृतिक इतिहास का स्त्रोत
    1:07:20 श्री जयकृष्ण गोस्वामी - पिछले वर्षों में वृन्दावन में बदलाव
    1:11:06 डॉ रिंकू वढेरा - वृन्दावन धामानुरागावली पुस्तक से सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास, वंशावली, भूगोल
    1:13:22 विग्रह सेवा का विस्तृत विवरण
    1:15:40 डॉ स्वाति गोयल - इतिहास की दृष्टि से उपयोगी ग्रन्थ
    1:18:50 डॉ जयेश खण्डेलवाल - वृन्दावन का प्राचीन व वर्त्तमान स्वरुप
    1:21:50 वृन्दावन में मंदिरों का क्रमशः विस्तार
    1:27:30 वृन्दावन धामानुरागावली पुस्तक की विभिन्न प्रतियां
    1:31:30 देश काल का ध्यान रखते हुए संपादन
    1:33:53 वृन्दावन धाम रस व उपासना की भूमि रही है
    1:37:00 प्रेम उपासना - समता की दृष्टि आवश्यक
    1:42:00 वृन्दावन के दिव्य स्वरुप के दर्शन
    1:47:52 वृन्दावन धामानुरागावली की भांति और ग्रन्थ भी हैं
    1:49:30 शोध संस्थान को विश्वविद्यालय के अंतर्गत मान्यता
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Komentáře • 1

  • @sumantdogra3278
    @sumantdogra3278 Před 26 dny

    जय श्री राधे, जय श्रीकृष्ण, जय वृन्दावन।