dudheshwar nath mandir ghaziabad यहाँ रावण पूजा करने आता था🤯||

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  • čas přidán 28. 11. 2023
  • dudheshwar nath mandir ghaziabad यहाँ रावण पूजा करने आता था🤯|| #ghaziabad #history #vlog
    History Of Dudheshwar Nath Mandir:- दिल्ली और एनसीआर के मध्य ग़ाज़ियाबाद में स्थित है बहुत ही प्रसिद्द मंदिर जो अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है। जिसको सभी श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव के नाम से जानते है। स्वयंभू (जो स्वयं प्रकट हुए )श्री दूधेश्वर नाथ शिवलिंग का कलयुग में प्राकट्य सोमवार , कार्तिक शुक्ल ,वैकुन्ठी चतुर्दशी संवत् 1511 वि० तदनुसार 3 नवंबर ,1454 ई० को हुआ था | इस दिव्य लिंग की ही तरह कलियुग में इसके प्राकट्य की कथा भी बड़ी दिव्य है | अभी श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 16th पीठाधीश्वर श्री महंत नारायण गिरी जी है | कलियुग में प्राकट्य पूर्व ग्राम्य क्षेत्र कैलाश का अपभ्रंश कैला गाँव श्री दूधेश्वर नाथ महादेव ज्योतिर्लिंग के निकट ही है | पुराणों में वर्णित हरनंदी (हिन्डन ) आज भी पास ही बहती है | यह भी किसी से छिपा नहीं है कि भगवान् दूधेश्वर अपने जिस भक्त पर अति प्रसन्न होते हैं ,उसे स्वर्ण प्रचुर मात्रा में मिलता है | ऋषि विश्वेश्रवा और रावण को भी तो दूधेश्वर की पूजा-अर्चना से ही सोने की लंका प्राप्त हुई थी | इतिहास गवाह है कि भगवान् दूधेश्वर की कृपा और मठ के सिद्ध संत-महंतों के निर्मल आशीर्वाद से लाखों लोग कष्टों से मुक्ति पा चुके हैं | यह सिलसिला त्रेता युग से आज तक निरंतर जारी है | प्रसिद्ध उद्योगपति, समाजसेवी व धर्मप्रेमी श्री धर्मपाल गर्ग के कर कमलो द्वारा प्राचीन दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार हुआ।
    दिव्य वास्तविक गाथा:- कलियुग में प्राकट्य पूर्व ग्राम्य क्षेत्र कैलाश का अपभ्रंश कैला गाँव श्री दूधेश्वर नाथ महादेव ज्योतिर्लिंग के निकट ही है | पुराणों में वर्णित हरनंदी (हिन्डन ) आज भी पास ही बहती है | निकटवर्ती गाँव कैला की गायों को चरवाहे टीले पर चराने के लिये लाते थे | गायों को चरने के लिये छोडकर ग्वाले पेड़ों के नीचे विश्राम करते थे | टीले के निकट ही एक तलाब था ,उससे गायें जल पिया करतीं थी | जब गायें टीले पर एक स्थान विशेष पर पहुंचतीं तो उनके थनों से स्वत:दूध टपकने लगता था | यह बड़ी विचित्र बात थी ,जिसकी ओर ग्वालों ने कभी ध्यान ही नहीं दिया था | लेकिन कभी-न-कभी तो किसी का ध्यान इस ओर जाना ही था | हुआ यूँ कि जब शाम के समय गायें अपने-अपने मालिकों के घर पहुँचतीं और उनका दूध निकालने का उपक्रम किया जाता तो कई गायें बिल्कुल दूध नहीं देती थीं तथा अनेक बहुत कम दूध देती थीं | जब किसी न किसी गाय के साथ ऐसा होता पाया गया तो चर्चा शुरू हुई | चर्चा मे सबसे पहली बात तो यही कहि गयी यह चरवाहों की करतूत हो सकती है | गायों को घर पहुँचाने से पहले ही वे उनका दूध निकाल लेते हैं | लेकिन सभी लोग इस बात से सहमत नहीं थे क्योंकि ज्यादातर चरवाहे पीदियों से नगरवासियों की गायें चरते आ रहे थे और कभी किसी की ऐसी शिकायत नहीं मिली थी |
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    Sharee
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