क्यों छोड़नी पड़ रही है अपनी पुरखों की धरती!
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- čas přidán 1. 01. 2021
- पहाड़ में रहने की इच्छा होते हुए भी आदमी वहां रह नहीं पा रहा है। अपने पुरखों की धरती का परित्याग करना काफी कष्टकारक होता है। चाहे भाइयों के साथ का मसला हो या परदेस में नौकरी, कारण जो भी हो सरकार पलायन को कम करने के लिए किस तरह की स्थिति में है इससे पलायन की काफी कुछ तस्वीर साफ हो पा रही है।
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ये सरकार अगर कुछ करती तो उत्तराखंड भी हिमांचल की तरह बिकसित होता पर इनको बजट ठिकाने लगाने से मतलब है
@Deepak Nautiyal apka kehna sach hai magar puri tarah nahi.Sarkar ke bina karwai aage nahi badhega,lekin jansamuh ka puri hissedari bhi jaroori hai.Muje patta pahar ke log mehnoti aur kathor parishram karte hai.Kami hai to aise leaders ki jo vissionery , determined aur iske sath gyan aur samaj ka bhandar.Education, science and technology ka mahatta ajj ki duniya me bahut hi mahatta hai.is ke bikas ke bina ek khushal Uttrakhand sapna hi rah jayega.Ye bhool na nahi hoga har samasya hal bhi sath leke atta hai.Rasta hai magar knowledge, science and technology ke bina andha jaisa hai.Jai Hind Jai Bharat Jai Uttrakhand.
czcams.com/video/4sbl9aKejJE/video.html
सरकार कि कन भैजी हमन कन जु कन हमत घौंरमा रैणां ई निछा हिमांचल जै देखा वखा का लोग अपणु घौंर नि छुडणां छन मि बुनु छौं हमन भी घौंर छोडी़ याली भैजी हम कैथी दोष नी दे सकदा न ही सरकार थै नाराज न हुययां भैजी किकन तब
ये पलायन नाम की बीमारी सिर्फ उत्तराखण्ड मैं ही है। लोग लेह लद्दाक जैसी अपनी मात्र भूमि भी नही छोड़ते जहां घास भी नही उगती है। बारह मास बर्फ रहती है ।ये निक्कमो का काम है। जो इस स्वर्ग मैं भी नही रह पा रहे है ओरतों के कहने पर।वह तो पूर्वज ही थे मेहनती लोग जो शेर की तरह इज्जत की जिंदगी जी गए इस पावन भूमि मैं।
True said 👍
Sahi baat kahi aapne..👏
भाई पहला इंसान सच बोला। हिमाचली लाधाखी तो न जा रहे।
What a reply sir, aapke jaie need percent log bhi aise soche,uttrakhandi top ke state mein hoga, aapke soch ko salam karta hoon
दोस्तो कई मौके हैं यहां कमाने के लकिन लोगों को अपनी मातृभूमि की फ़िक्र नहीं.
यदि मुझे दूसरा जन्म मिला तो उतरा खंड में ही मिले भगवान से यही प्रार्थना है जै देव भूमि
Sahi🙏🇮🇳👍🇮🇳
हर घर हर गाँव की यही हाल है
जब तक हम सब साथ मिलके ना रहेंगे बिखर जाएँगे
बंदे माँ तरम
कम से कम हिमाचल में ये स्थिति नहीं है..... वहां की सरकार ने बहुत सामाजिक कार्य भी कराये है लेकिन बहुत कुछ असर घरेलू भी है और इसका कोई इलाज नहीं
बहुत दर्द भरी कहानी है |ये कहानी पुरे उत्तराखण्ड की है |हम भी जब गाँव जाते है खंडहर पड़े घरों को देखकर बहुत रोना आता हे 😢
बहुत विटक कहानी है अपने वीरान होते पहाड़ों कि यहाँ के बंजर होते खेत खलिहानो कि आखिर कौन समझेगा मेरे वीरान होते पहाड़ कि पीड़ा को 🙏🙏
Very nice
Deepak Singh Ji Kya aap khud samzte hai apne pahad ki pidaa ko.Kya aap khud rehte hai Uttarakhand me?
@@KiranYadav-cu5py m khud pahaad m hi rhta hu apni jnmbhumi se bahut payar h mujhe but Rojgaar na hone ke kaaran uttrakhand se baahar dusre sahro m jana padta h aakhir pahaad ki pida ko ek pahaadi hi smjh skta h wese aap kaha se ho
@@Deepak94-S Mai bhi Uttarakhand se hi hu, lekin keval Nam ke liye .Apna. number send kijiye,phir baat latte hai,yedi aapko uchit page to.
डर है रोहिंग्या लोग न बस जाए, इसलिए त्योहार अपने गांव में मनाते रहे
सही कहा आपने आज हमें अपनी चीजों को देखकर पीड़ा होती है इतनी बड़ी जटिल समस्याओं मां बापू ने अपने बच्चों को बड़ा किया इतनी मेहनत की लेकिन लास्ट में छोड़ कर चला गये मेरी पहाड़ों की पीड़ा
रूला दिया चाचा आपने,, 😢😢
लोग बदल गए हैं,, मै दस साल से कह रहा हूँ,, सरकार और सुविधा का बहाना बनाते हैं खुद दिल्ली में रहते हैं और हम गाँव वालो से हीसाब मांगते है
भाई का दर्द दिल को छू गया...भैजी जुगराज रोउ वो...आपाकी आत्मा पहाड़ों मा घोंर बसद...तुमकु मेरी जय राम जी की वो...खूब भला रयान वो राजी खुशी 🙏
बहुत बहुत धन्यवाद पर्वतीय न्यूज़ का जो ऐसे ही हकीकत न्यूज़ दिखाता रहता है
दर्द भरी कहानी च रावत जी !
क्यों हमारे बुजुर्ग रिटायर होने के बाद शहरों में बस जाते हैं
because after retirement they have to depend on son city has facilites like hospital
other facilities if all these are in village no one will sit in city
सही कह रहे हैं हमने भी तो अपनी जमीन पूरी की है अब मजबूर हैं अब यदि जो वहाँ रह नहीं रहा है तो उसे बेदखल कर दिया जाय उनका कोई हक न हो उस पर।
I am really agree with uncle they are very simply and truth heart's...
May you live long..
❤️❤️
हमारे बुजुर्गों का दर्द बता रहा है कि उन्होंने इस पहाड़ के लिए क्या नहीं किया कितना संघर्ष किया कितना दर्द सहा फिर भी हार नहीं मानी लेकिन जब समय आया खुशियों का तो पलायन ने जिंदगी भर की मेहनत और संघर्षों पर पानी फेर दिया
सही बोला आपने 😊
यह स्थिति अमूमन हर तीसरे चौथे उत्तराखंडी की है पलायन की पीड़ा बहुत ही दुखदाई होता है।और खास तौर से जो लोग पहले उत्तराखंड में अपने जीवन का लंबा दौर बिता चुके हैं ऐसे लोग पूरे उम्र भर इस पीड़ा को सहते हैं। इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को कोई ना कोई ठोस नीति अवश्य बनानी होगी वरना हर उत्तराखंडी कहेगा पहाड़ी पहाड़ी मत बोलो जी देहरादून वाला हूं...
प्रणाम। पुरूष वर्ग प्राचीन काल से धन उपार्जन करने गांवों से बाहर जाते थे,परन्तु बीबी बच्चे गांवों में रहते थे इसलिए गांव बसे थे।नयी पीढ़ी पढ़ कर बीबी बच्चे अपने साथ रखना चाहते हैं। पुरानी पीढ़ी तो इस दुनिया से जा चुकी है,जो गांव कभी गयए ही नहीं, उन्हें आकर्षण नहीं। गांव आज सूने हैं।
भौत मार्मिक कहानी,
सरकार ने उत्तराखंड पर
ध्यान। दिया होता पलायन नहीं होता।
उत्तराखंड 1990में भी अलग हो गया होता साइड
ये नौबत नहीं आती।
दुःख तो होता है
आपकी बातें सत्य है यह बात हर कोई नहीं सोचता है।
Heart touching sir Jai uttrakhand Jai dev bhumi
पलायान बहुत ज्यादा हो रहा था पहाड़ो में लेकिन कोरोना ने बताया कि कैसे हम किसी बीमारी या वारिस के चलते वो सब याद आगया जो हम छोड़ कर चले गए थे एक वारिस ने ये सभीत कर दिया इंसान कितना भी कमा ले फिर भी उसकी इच्छा काम नही होगी जब बात जान की हो तब पुराने दिन याद आते है आज भी तो हम अपने पहाड़ो में जिंदा है खा रहे हैं क्यों ना पहाड़ो में रहा कर कुछ करे
Right....my dad also tell me like that...he love village and he will never leave till his last breath...hats off rawat sir
Same here
Same Mere Papa ko Bhi bhut zada Yaad Aata Hain😞
बहुत सही किया 🙏🙏😊
जननी जन्म भूमि स्वर्गादिपि ग्रीयशी। मैं विदेश में बैठा हुआ हूं लेकिन अपने देश भारत और घर हरियाणा की बहुत याद आती है।
यह कहानी उत्तराखंड की ही नही अपितु पूरे संसार की है ।सब छूट जाता है ।जीवन ऐसा ही है ।😊😊
बिलकुल सही कहा गुरुजी ने. बेबाक कारण बताया पलायन का.
हर गांव के यही हल है सर कभी कभी मन नहीं लगता गांव से दूर जाने का प़र क्या करे सर घर वालों के लिए करना पड़ता है 😭😭
गांव से पलायन किसी मुसीबत का हल नहीं हैं हम भी हिमाचल प्रदेश में ऐसी ही पहाड़ी गांव में रहते है लेकिन हमने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत से और वर्षा का जल टैंकों में इकठा कर के अपनी जमीनों को सींचा और उपजाऊ बनाया जीना गांव का ही है शहर में तो केवल समय काटा जाता है
भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार दोनो मिलकर पलायन रोके।यहां के लोगो की समस्या का त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थाई निदान करे। पहाड़ी दुख सुनकर बहुत ही कष्ट हुआ ।बहुत ऐसे उत्तराखंड के भाई बन्धु परेशान है उनकी सुनी जाए केवल वोट बैंक न समझा जाए । UP से
जिसने मेहनत की इस दर्द को वहीं जानता है जी।
Aap ki bhawna dekhar khusi hoti hai ki aaj bhi aapka man apne jamin say laga hai
जय हो ...
You are a great person ,I really respect your feelings
हर गांव का यही हाल है बहुत घरों में इसी तरह कि कहानी है
ये कहानी उत्तर प्रदेश के गाँव की भी है, यहाँ भी हालात कुछ अलग नहीं है
100% सही बोला आपने
और एक हम दिल्ली वाले पहाड़ों पे जमीन खरीदने को मरे जा रहे हैं
दर्द भरी कहानी च। जै आदिमा अपणा भटूड़ अपणा मकान अपणीखेतीबाड़ी पर खपयां ह्वाला उ कनके भूली सकदा रोण आग्या हमरा बि सेम यी हाल छन भैजी पर क्य कन टक उखी लगी रैंद ।
द्वी चीज सतांदन पैली स्वास्थ्यालय दुसरी बागे डौर ।ये डौरला घौर नि जयेद पर आंखी डबडबाणी रैंदन ।
बहुत दुख की बात है लोग अपनी धरती को छोड़कर जा रहे हैं
Really story tau ji apko sun kar hmari ankho me bhi aa jate hai thanks you
बहुत दुख होता अपने वीरान होते गावो को देखकर 🙏🙏😭
Aapko bahut yad kerte hain sab guruji 🙏🙏🙏
Yeh aap ke guru hai.
Ye aapke guru hain kya?
बहुत सुंदर प्रस्तुति हर गाँउ की यही कहानी है 🙏😊
हमारे गांव भी बंजर हो चुका है दीदी जी, अब तो केवल बाघ सियार रहते हैं
Bahut dukh hota hai ye sab dekh ker
Looking like life on earth is going towards end# Low water level, no rain, corona, cyclone, black fungus,
Sachi bat cha
Govt ko har gaon mai local self help group banane chaye.. otherwise kuch nahi ho sakta
सरकार रोजगार की व्यवस्था क्यो नही कर रही है केवल बेदखल करने का अधिकार है पलायन रोकना किसका काम है
सरकारों पर भरोसा छोड़े खुद पर भरोसा करें 👍
Bilkul sach janmbhumi ko koi nahi bhula skta
आपके आसू जेनवन है सर कोई भी हो जिस की मेहनत लगी हो उसको पता है हमारे पूर्वजों की बसाई ये धरती केसे छोड़ दें
दिल को छूती रिपोर्ट 😭
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❤❤❤❤
गुरूजी प्रणाम मैं आपका शिष्य
So sad
गाँवो में सब का अपना घर है। पर शादी के बाद दिल्ली चलो। और कोटला, मीठापुर, करावल नगर, विनोद नगर, तंग गलियों में रहने के लिए तैयार है। पर गांव का खुला वातावरण सुध पानी, हवा में नही रहना चाहते। अब तो लोगो के दो बच्चे या 1 पर ही टीके है। पहले 8 से 12 बच्चे होते थे। उन लोगो ने भी खेती से ही बच्चो को पाला। औऱ जो पुराने लोग गाँव से जुड़े थे। वे भी रिटायर मेन्ट के बाद भी अपने गाँव नही जाते। ये लोग मोह माया में ही रह गए और जियेंगे।😢😢😢
Jay davbumi 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आपको दिल से सलूट।।।
सही बात है जब छोडकर चले जाओ तो हम अपनी पित्रों की इस धरोहर को भूल जाते है, लेकिन जब यहाँपर आओ तो सारी पीडा,माया- मोह और यादें रहरह कर रूलाती है,भला जहाँ पर हम पले बडे हुए है उसकी यद न आए यह तो हो ही नहीं सकता,
सहयोग का आपने सटीक उदाहरण दिया जबतक कोई भाई अफनी मेहनत मजदूरी और अपने रिस्कपर यहाँ खाता कमाता है तब तक भयात का भी आना जाना रोना धोना बना रहता है, सहयोग की जगह उसे उपहास का पात्र बनाते है लेकिन जब करने वाला भी छोड जाता है फिर सभी चैन से बैठ जाते है,यह हमारा दर्भाग्य है कि जो भाई इतने सक्षम है कि वे अपने दम पर यहाँ एक दो लोगों को नौकरी पर रख कर अपनी जीवन दायनी जमीन और घर द्धार को सही सलामत रख सकते है,लेकिन उनका ब्योहार दूसरों को छोडो अपनौ के प्रति भी सहयोगपूर्ण नहीं है,धन्यबाद आपका जो कि आपके दिल में आपने प्रदेश के प्रति प्रेम बनारखा है और आपने उत्तराखण्ड का दर
द बयाँ किया है ।
sachi khabar h ye sabhi ke asu nikalte h is khabar ko dekh kar jo bhi apni matri bhumi se pyar karta hoga
Rawat ji aajkal ke logon mein Insaniyat ki Kami ho gai hai aur insaaniyat khatm ho gai hai
Shi kha sir hamara v yhi haal he 😭😭
है हिम्मत तो महेश को दान कर दो जमीन। खेल की जरूरत हहैनहीग तो गढ़वाल में कोई ओर बस जाएगा तभ रोना।
बहुत वास्तविक.
बहुत ही चिन्ता की बात है
पलायन तो करते हैं पर पलायन का दर्द सीने में सबके सताता है सहर में कितना भी अमीर बन जाओ। इस दर्द से अछूता कोई नहीं है कोई दिखाता कोई छुपाता है जो गांव की मिट्टी में जन्म लिया खेला कूदा उन्हें याद जरूर आती है
Meri prardhana hai bhagwan se mujhe vishwas hai jaldi hi aap ka zh ghar sab logo se bhara hoga aap bhi khush honge.
Sahi kaha jamin tabe hoga jab penshan rahuga wah
बेरोजगारी के कारण बहुत पलायन हो रहा है
Apna ghar apna hota h,, jaha ki har diware bohot kuch bolti h,, 😢😢😢
❤🎉❤🎉
Jay dhevbhoomi🙏🙏
पहाड़ियों का दुख
himmat na haro bhai, ap log bde bagyawaan ho jo aisi swarg jaisi dhrtibpnapne jnm lya h. apne yadeein apne aukhbdukh in darohar m snjo krr rkho.
हर गांव उजड़ने की एक कहानी है.
Playan ko badhwa dene mai hamre bugurgo ka bhi bada yogdaan hai kyuki retyarment ke baad wo dehradun mai jakar baste hai or apne pahdo ko bhool jaate hai
Apne v gaaw ha yahi haal hai .. bht dukh hota h .. puraani yaade soch ke . Kya din hua krte the but ab 😭😭😭
बड़ा जी सब जगा ई हाल छन।
kAs agar yahan paani hota to ye swarg se kam n hota. phir bhi upaya to dundna padega.
We r coming back..
Baba ji I respect u n salute u.
One day every one will have to come back....
Bahut dukhad, soti sarkaar aur prashashan
Bilkul apne haath se sinchai bagicha.... Ese haal main ho to rona to aa hi jaata hai so sweet sir...
PAINFUL.
*पित्रों की भूमि छोड़ोगे तो आने वाले समय में खून के आंसू रोओगे..पलायन करने वाले..*
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हमारे पूर्वजभी वहाँ से पलायन हो गए यहीं से । नेपाल घुस गए । चारधाम दर्शनसे लौटते अपनी गाँव देखे ।कुछ देर रुककर स्थानीय लोगों से वात चित किए अच्छा लगा । घर वापस लौटना सा हुवा । लेकिन कुमाऊँनी भाषा नहीं सिखी थी, हिन्दीमै हि काम चला लिए ।
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Ek to uttrakhand ki sabse bari dikkat ye ha ki vaha koi local party nahi rahi, or jo cm mile vo bhi bekar material nikle or tisra ki sadke or pani bhi gao gai tak samay se nahi mil paya gaon ke logo ko
बहुत ही दर्दनाक कहानी सुनाई आपने। आखिर क्या कमाया हमने। जमीन बंजर हो जाय परन्तु कोई भी वहां हमारी खेती संभालते हुए आराम से जीवन यापन करें ये मंजूर नही। क्या इनके सभी भाई ये नही कह सकते थे कि भाई आप सँभालो यहां, हम आपको मदद करते रहेंगें। हरे भरे गाओं में जब जाते तो आपको दरवाजे खुले मिलते। कोई खाना पानी देने वाला सामने खड़ा होता। ईर्षा भाव मे हम अपनापन भी खोते जा रहे हैं। बड़े दुःख होता है, हम क्या से क्या हो गए।
गांव विरान हैं इसके जिम्मेदार बड़े बुजुर्ग लोग नहीं बल्कि वहां के युवा है ...5 हजार की नौकरी दिल्ली में कर लेंगे लेकिन अपने गांव में रहकर मेहनत नहीं करेंगे.. शर्म आती है इनको गांव में रहने में...फट्टू हैं ये लोग... अपने हक के लिए लड़ो ..गांव में सड़क बनवाओ, धरना दे दो, पानी की सप्लाई ठीक करवाओ..नहीं तो बाज के जंगल लगाओ अपने आप पानी आ जायेगा...फल सब्जी उगाओ , सारे गांव वाले एक साथ बेचो बाजार मैं... कैसे विकास नहीं होगा.. उसके लिए हिम्मत चाहिए.. लेकिन जो ये पहाड़ की बहुएं आने नहीं देंगी.. सबसे बडी़ दुश्मन पहाड़ों की यहां की लडकियां और बहुएं हैं इनको शहरों में रहना है
सभी गाओं के ऐसे ही हाल है। दुखत
Mera Dil ro raha hai. Enka dard me samajh sakta hun.
O. M. Good gurji prnamm humare gaun h
Nice
आज पर्वतीय न्यूज के द्वारा बनाई गई ये वीडियो रिकॉर्डिंग कह रहीं दास्तान पलायन की। आखिर क्यों कर अपनी मेहनत की कमाई को जज्बात और भावुकता से भरी पीड़ा के कारण पढ़ा लिखा व्यक्ति खर्च कर बनाता है अपने सपनो का घर अपने पितरों के प्रति श्रद्धा विश्वास के चलते। पर उसे क्या मिलता है ये सच इस कहानी के द्वारा इस वीडियो के माध्यम से पता चलता है। कुछ ऐसा ही सच मेरी पीड़ा में भी छुपा नजर आएगा आज 65 वर्ष की आयू में ठगा सा रह गया हूं।
Still in utrakhand land is very costly without investment in the industry ifrarasture road and hospitals school not possible for any area to florissh without the support of outer investment which is difficult in the present time
कोई अपना वसा वसाया घर नहीं छोड़ना चाहते। जब समय था तो लोग अपने तक ही सीमित थे केवल पेट भरना और पालन करना ही एक ही मकसद था लेकिन अब समय बदल चुका है। जरूरतें बहुत हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव में और समाज के साथ चलना जरूरी हो गया है। इसलिए यदि सरकार हर सुविधाएं दे तो अभी भी लोग अपने जन्म भूमि में आने के लिए तैयार हो सकते हैं। पहाड़ों में बिना मेहनत का कुछ भी नहीं हो सकता है। हर जरूरत की चीजें चाहिए। दुःख तो होता है लेकिन नयी पीढ़ी भले न समझे लेकिन जिस पीढ़ी ले दुःख झेले हैं उनके आंसू कोई नहीं रोक सकता। क्या पुराने लोग जिन्होंने टेहरी डाम के कारण अपने गांव को छोड़ना पड़ा रोना नहीं आता होगा। भले नयी पीढ़ी इससे बेखबर है। समय के साथ यदि पहाड़ में प्रगति की होती या कहा जाए कि हिमाचल की तरह यदि उत्तराखंड में प्रगति होती तो इतना बड़ा पलायन नहीं होता। आज भी लोग अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली जैसे नजदीक शहरों में जाते हैं। यही कारण है कि रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे की जिंदगी कोई पहाड़ में नहीं जीना चाहता।
very correctly you have told mr rawat one of my friend mrs Negiji tell us
mein kerala se hu hamare kerala mein log naukri ki talash mein gulf jathe hai aur apne gao mein ghar banathe hai samaj ki paisewale dukhan
shops kholthe hai kuch log chanda ikkata karke hospital koltha hai
agar aap log mein aisa kare tho acchi baath hai
One day every uttranchali will back home
😭😭😭...
पर सवाल अभी भी वही है , कि इसे कैसे रोका जा सकता है ?
कृपया विचार साझा करें
सोचने पर मजबूर कर दिया आपने.. 🙏
czcams.com/video/4sbl9aKejJE/video.html
यह दुखदाई पीड़ा हम भी भुगत रहे है हम सारे घर को ठीक ठाक करते है पर परिवार केलॉग सिर्फ उसपे अपना अधिकार रखते है मेरे पिता ने पूरे जीवन भर मकान की देखभाल की पर परिवार ने कुछ नहीं किया भगवान भी नहीं देख रहा है