विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग ४६ - श्लोक क्र. ५५, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर
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- čas přidán 26. 02. 2022
- Vishnusahasranaama Artha va Vivaran: Part 46 - Shloka or Verse No 55 by Aparna Shankar Abhyankar | विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग ४६- श्लोक क्र. ५५, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर
व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो ध्रुवः ।
परर्द्धिः परमस्पष्टस्तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ॥
॥ ५५॥
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एकादशी नव्हे व्रत । वैकुंठीचा महापंथ ।
परी रुक्मांगद ऐसा । व्हावा निश्चय ॥
एकादशी उपोषणे । विष्णुलोकी ठाव घेणे ।
रामी रामदास म्हणे । काय प्रत्यक्ष प्रमाण ॥
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ||
॥ भ.गी.२-४१॥
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ |
समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ||
॥ भ.गी.२-१५॥
जय श्रीकृष्ण!एकादशी ची माहिती खूप छान सांगितली.ध्रुवबाळाची कथा छान!👌💐👌
एकादशी माहिती खूप सुंदर सांगितली वअर्थही नमस्कार आणि धन्यवाद 🙏