क्लेश के अन्त का उपाय ।

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  • čas přidán 28. 08. 2024
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    तो इस प्रकार से इन बातों को अगर सोचेंगे कि हमारे क्लेश को जब तक हम नष्ट नहीं करेंगे, जब तक उनको निर्बल नहीं बनाएंगे.. तब तक शायद संभव नहीं हो सकता है... इस प्रकार की बातें भगवान बुद्ध के दर्शन के अतिरिक्त दूसरों में देखने को नहीं मिलती है... इसलिए श्रुतिमय प्रज्ञा और चिंतनमय प्रज्ञा के द्वारा हमें इस बात की जांच पड़ताल करनी चाहिए और उन्हे जानना चाहिए... क्योंकि हम लोगों ने अभी क्लेश आवरण का नाश नहीं किया है... तो जैसे की यूलामा में सड़क के बारे में बाते कही गई है.. उनको ठीक से समझना चाहिए... और जो प्रमाण समुच्य है उसमें भी कहा गया है कि प्रमाण परिवर्तन उसमें भगवान बुद्ध को तीन या चार नाम दिए गए है... तो जो प्रमाण वर्तिका का जो दूसरा अध्याय है उसमें इसकी व्याख्या विस्तार रुप से देखने को मिलती है... इनको जानने की कोशिश करनी चाहए.. अध्ययन करने की कोशिश करनी चाहिए... उसके अतिरिक्त चंद्र किर्ती जी ने भी कहा है कि जो रथ पद को प्राप्त करना चाहते है उनको भी अभ्यास करना चाहिए... शरण में जाना चाहिए... बोद्ध सत्य मार्ग अभ्यास के समय जिनके कल्याण के लिए अपने शरीर का त्याग किया और अभिच नर्क में भी सहज किया है उनके ऋण चुकाने के लिए दूसरों पर अनेक उपकार किए जाने पर हर प्रकार का आदर करना चाहिए... जब अपने प्रभु प्राणि के उपकार के लिए शरीर की भी चिंता नहीं की तो हम भी लोगों की सेवा कर सकते है... और ये ही उचित है... कोई सुखी हो तो भगवान प्रसन्न होते है और कोई दुखी हो तो वो अप्रस्नन होते है.. प्राणियों को प्रसन्न करना भगवान उनके उपकार के समान है... जैसे आग की लपटों में जल रहे आदमी को कोई भी सुविधा काम नहीं आती उसी प्रकार प्राणि की हानि कर बुद्ध को संतुष्ट नहीं किया जा सकता... पहले जो हमारी करुणा है उसे उत्पन्न करना चाहिए और फिर करुणा की शक्ति को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए... और इस प्रकार की जो बातें है वो भगवान बुद्ध ने भी स्वंय कही है.... अगर मान लीजिए हम किसी दूसरे शत्रु का नुकसान पहुंचाते है और वो कहे जिन भगवान को आप मानते है वो बहुत खुश होंगे तो ऐसा कभी संभंव नहीं हो सकता... वहीं अगर आप किसी का हित करते है किसी का फायदा करते है तो भगवान बुद्ध भी खुश होते है...

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