अष्टपदी व्रतचर्या-राग विभास-व्रजानंदकंदम् Ashtapadi-Shri Vitthalnathji Virchit-Vrajanand kandam.

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  • čas přidán 12. 09. 2024
  • राग बिभास ★ श्रंगार समय-व्रजानंदकंदम् व्रजानंदकंदम् ॥ घोषपति भाग्यभुविजातम् ॥
    रसिक वरगोपिका पीतरसमाननं तव जय तु ममदृशि सुजातम् ॥ध्रु.॥
    रुचिरदरहास गलदमलपरि मललुब्ध मधुपकुलमुखकमल सदनम् ॥ अमृत
    चयगर्व निर्वासना धरसी धुपाय यमनोजाग्नि शमनम् ॥ १॥ स्मित प्रकटित
    चारुदंत रुचिवदन, विधुकौमुदी हृत निखिलतापे । विलस ललिते
    हृद्यकनककलशये, मारकत मणिरिव दुरापे ||२|| सुभग सुमुखी कंठनिहित निजबाह रतिमत्त गजराज इवरुचिरम् ॥ विहरविरहानलं चारु पुष्करचलन शीक
    रैरुपशमय सुचिरम् ||३|| अरुण तरला पांग शरनिहित कुल-वधू, धृतितव
    विलोचनसरोजम् ॥ ममवदन सुषमासरसिविलसतु सततमल, सगतिनिर्जित
    मनोजम् ||४|| नंदगेहाल वालोदित स्त्रीराग से कसंवृद्धसुरवृक्षम् ॥
    व्रजवरकुमारिका बाहु हाटकलता सततमाश्रयतु कृतरक्षम् ॥ ५॥ व्रजश्लाघ्य
    गुणरसिकता गुणगोपनातिशय रुचिरालापलीलम् ॥ तादृगीक्षण जनितकुसुम
    शरभाव भरयुवतिषु प्रकटतरनिखिलम् ॥६॥ रुचिरकौमार चापल्य जय व्रीडया,
    बल्लवी हृदयगृहगुप्तं प्रकटयन्निजन खरशरचयरैसम शरमिह
    जयसिहृदयभावितम्॥७॥
    घोषसीमंतिनीविद्युदद्य
    वेणुकलनिनदगर्जिंतस्त्वमिहसततं || वचन करुणा कृतदृष्टि
    वृष्टिरंगनवजलदमपिकुरु सुहसितं॥८

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