गढ़िया पहाड़ कांकेर | Gadiya Pahad Kanker | Kanker Tourist Place | Chhattisgarh | Vlogs Rahul

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  • čas přidán 6. 09. 2024
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    कांकेर से लगे गढ़िया पहाड़ का इतिहास हजारों साल पुराना है जमीन से करीब 660 फीट ऊंचे इस पहाड़ पर सोनई रुपई नाम का एक तालाब है जिसका पानी कभी नहीं सूखता है इस तालाब की एक खासियत यह भी है कि सुबह और शाम के वक्त इसका आधा पानी सोने और आधा चांदी की तरह चमकता है
    जानिए क्या है इस तालाब की कहानी
    गढ़िया पहाड़ पर करीब 700 साल पहले धर्मदेव कंड्रा नाम के एक राजा का किला हुआ करता था राजा ने ही यहां पर तालाब का निर्माण करवाया था धर्मदेव की सोनई और रुपई नाम की दो बेटियां थीं वो दोनों इसी तालाब के आसपास खेला करती थीं एक दिन दोनों तालाब में डूब गईं तब से यह माना जाता है सोनई रुपई की आत्माएं इस तालाब की रक्षा करती हैं इसलिए इसका पानी कभी नहीं सूखता पानी का सोने चांदी की तरह चमकना सोनई रुपई के यहां मौजूद होने की निशानी के रूप में देखा जाता है
    महाशिवरात्री पर लगता है मेला
    पहाड़ पर एक शिव मंदिर है जो किला बनने से पहले से यहां मौजूद है कहा जाता है कि यह एक हजार साल पुराना है इस मंदिर में शिवलिंग के अलावा सूर्य और अन्य देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं हैं 1955 से हर साल इस पहाड़ पर महाशिवरात्री का मेला लगता है
    ग्राउंड लेवल से 660 फीट की ऊंचाई पर है पहाड़ की चोटी 1955 से हर साल यहां महाशिवरात्रि पर मेला लगता है 1972 में पहली बार गढ़िया पहाड़ पर पहुंची बिजली 1994 में पहाड़ तक पहुंचने के लिए कंक्रीट की सीढ़ियों का निर्माण हुआ
    शहर से जुड़े ऐतिहासिक गढ़िया पहाड़ का इतिहास 700 साल पुराना है पहाड़ पर धर्मदेव कंड्रा राजा का किला हुआ करता था उस समय के सोनई रूपई तालाब में आज भी बारहों महीने पानी रहता है मान्यता है कि राजा धर्मदेव की बेटियां सोनई व रूपई तालाब में डूब गईं थीं तब से सुबह व शाम के समय तालाब का पानी आधा सोना व आधा चांदी की तरह चमकता है नए साल पर परिवार के साथ गढ़िया पहाड़ पर ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण छुट्‌टी को यादगार बना सकता है
    होलिका दहन स्थल झंडा शिखर के समीप ही होलिका दहन स्थल है कांकेर का पहला होलिका दहन आज भी यहीं होता है यहीं से अग्नि ले जाकर कांकेर के मोहल्लों में होलिका दहन किया जाता है
    सिंह द्वार कंड्रा राजा धर्मदेव ने गढ़िया पहाड़ को मजबूत किले का रूप दिया था किले का 700 साल पुराना सिंहद्वार आज भी कांकेर के अतीत गौरव का साक्षी है गढ़िया पहाड़ के इतिहास की सच्चाई को बयां करता हुआ विशाल पत्थरों से निर्मित द्वार स्थित हैं इसे सिंहद्वार के नाम से जाना जाता हैं राजापारा की ओर से सीढ़ी मार्ग के द्वारा जाने के रास्ते में यह द्वार पड़ता हैं सिंहद्वार से लगा हुआ किले की चारदीवारी हुआ करती थी अब वो चारदीवारी ढ़ह गई हैं किले की चारदीवारी जिन विशालकाय पत्थरों से निर्मित की गई थी वे अब भी उस स्थान पर गिरे पडे़ हुए हैं
    टूरी हटरी गढ़िया किले की बस्ती का हृदय स्थल टूरी हटरी है यह दैनिक बाजार के साथ जन सम्मेलन मेला सभा आदि के उपयोग आता था उस जमाने के मिट्टी के बर्तन व ईंट खपरों के टुकड़े आज भी यहां मिलते हैं
    पहाड़ी के ऊपर एक बड़ा सा मैदान स्थित है उस मैदान में किले में निवास करने वाले राजा एवं उनके सैनिकों की आवश्यकता की वस्तुएं विक्रय करने के लिए बाजार लगा करती थी इस बाजार में विक्रय करने के लिए लड़कियां सामाग्री लाया करती थी इसी कारण इसका नाम टुरी हटरी बाजार पड़ा
    फांसी भाठा राजशाही के जमाने में फांसी भाठा अपराधियों को मृत्यु दंड दिया जाता था अपराधियों काे ऊंचाई से नीचे फेंका जाता था एक बार कैदी ने अपने साथ सिपाही को भी खींच लिया इसके बाद से अपराधियों के हाथ बांधकर उन्हें दूर से बांस से धकेला जाने लगा झण्डा शिखर के पास ही फांसी भाठा स्थित हैं इस स्थान से अपराधियों को राजा के द्वारा सजा ए मौत का फरमान जारी करने के बाद उन्हे पहाड़ी के नीचे धक्का दे दिया जाता था एक बार एक अपराधी ने अपने साथ सजा देने वाले सैनिक का हाथ पकड़ कर उसे भी अपने खींच लिया जिससे अपराधी के साथ उस सैनिक की भी मौत हो गई इस घटना के बाद सजा देने वाले सैनिक अपराधी को लबं बांस से नीचे धक्का देने लगे
    जोगी गुफा मेलाभाटा की ओर से पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए कच्चा मार्ग बना हुआ है इस मार्ग में एक काफी विशाल गुफा स्थित हैं कहा जाता हैं कि उस गुफा में एक सिद्ध जोगी तपस्या किया करते थे जिनका शरीर काफी विशाल था वहां उस जोगी के द्वारा पहने जाने वाला काफी विशाल खडऊ आज भी मौजूद हैं इस कारण इस गुफा को जोगी गुफा कहा जाता हैं इस गुफा में प्राचीन काल से अब तक अनेक तपस्वी आकर ठहरते थे और बारिश का मौसम गुजरने के बाद आगे बढ़ जाते थे गुफा को देखते आज भी श्रद्घालु व पर्यटक पहुंचते हैं
    पहाड़ पर स्थित शिव मंदिर किला बनने से भी पहले से यहां मौजूद है इसका इतिहास कम से कम हजार साल पुराना माना जाता है मंदिर में सूर्य समेत अन्य देवों की भी प्राचीन प्रतिमाएं हैं 1955 से हर साल महाशिवरात्री पर पहाड़ पर मेला लगता आ रहा है
    सिंह द्वार की सुरंग
    सिंह द्वार के पास ही सुरंग दिखाई पड़ती है सुरंग का दूसरा छोर बस्तर की पहाड़ियों में कहीं निकलना बताया जाता है किले पर खतरा होने की स्थिति में राजा व प्रजा के बच निकलने के लिए सुरंग बनाई गई थीi
    छुरी पत्थर देखने आते हैं लोग
    यहां की गुफा की छत पर अनेक छुरीनुमा पत्थर लटकते दिखाई पड़ते हैं इन्हें देखने भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं गुफा से निकलने के अनेक रास्ते हैं गुफा में एक जगह ऐसी भी है जहां आराम से 500 लोग बैठ सकते हैं
    धर्मद्वार किले में आने जाने के लिए राजा धर्मदेव के द्वारा इस मार्ग का उपयोग किया जाता था यह किले के पीछे का रास्ता हैं

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