ऐसे आएंगे सभी प्राणी कबीर भगवान की शरण में

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  • čas přidán 7. 09. 2024
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Komentáře • 5

  • @AnjuKumari-il3nz
    @AnjuKumari-il3nz Před 3 lety

    Nice satsang jay bandi chhod ki 🙇‍♀️🙇‍♀️🙇‍♀️🙇‍♀️

  • @ranjanagawle7303
    @ranjanagawle7303 Před 3 lety

    🙏

  • @shankarlalsuwasia837
    @shankarlalsuwasia837 Před 3 lety

    सत साहेब जी बन्दी छोड़ जगतगुरु तत्वदर्शी परम संत रामपाल जी महाराज जी ही आज की तारीख में एक तत्वदर्शी पूर्ण संत हैं जिनसे नाम दीक्षा लेकर भक्ति करे अपना कल्याण कराएं

  • @TargetSatlokTak1951
    @TargetSatlokTak1951 Před 3 lety

    चार राम की भक्ति में लग रहा संसार पाँचवें राम का ज्ञान नहीं, जो पार उतारनहार।।5।। ब्रह्मा-विष्णु शिव तीनो गुण है दूसरा प्रकृति का जाल | लाख जीव नित भक्षण करें राम तीसरा काल ।।6।।

  • @cgrealkahani261
    @cgrealkahani261 Před 3 lety

    (साकार और निराकार रूप से भगवत्प्राप्ति)
    अर्जुन उवाच
    एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।
    ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥ (१)
    भावार्थ : अर्जुन ने पूछा - हे भगवन! जो विधि आपने बतायी है उसी विधि के अनुसार अनन्य भक्ति से आपकी शरण होकर आपके सगुण-साकार रूप की निरन्तर पूजा-आराधना करते हैं, अन्य जो आपकी शरण न होकर अपने भरोसे आपके निर्गुण-निराकार रूप की पूजा-आराधना करते हैं, इन दोनों प्रकार के योगीयों में किसे अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माना जाय? (१)
    श्रीभगवानुवाच
    मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते ।
    श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥ (२)
    भावार्थ : श्री भगवान कहा - हे अर्जुन! जो मनुष्य मुझमें अपने मन को स्थिर करके निरंतर मेरे सगुण-साकार रूप की पूजा में लगे रहते हैं, और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे दिव्य स्वरूप की आराधना करते हैं वह मेरे द्वारा योगियों में अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं। (२)
    ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।
    सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्‌ ॥ (३)
    सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः ।
    ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ॥ (४)
    भावार्थ : लेकिन जो मनुष्य मन-बुद्धि के चिन्तन से परे परमात्मा के अविनाशी, सर्वव्यापी, अकल्पनीय, निराकार, अचल स्थित स्वरूप की उपासना करते हैं, वह मनुष्य भी अपनी सभी इन्द्रियों को वश में करके, सभी परिस्थितियों में समान भाव से और सभी प्राणीयों के हित में लगे रहकर मुझे ही प्राप्त होते हैं। (३,४)