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उरांव जनजाति की संस्कृति लोक नृत्य भाग -1

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  • čas přidán 7. 08. 2020
  • उरांव जनजाति की बोली कुड़ुख है, और लोक नृत्य मौसम के आधार पर विभिन्न प्रकार के होते है उरांव आदिवासियों का नाच गान उनके जीवन का अभिन्न अंग है। जिस प्रकार जीविका के लिए खेती - बारी के काम बरहों मास होते रहते हैं, वैसे ही आदिवासियों के त्योहार भी मौसम के अनुकूल गीत - मौसमी राग गाये जाते हैं जो आदिवासियों के विभिन्न पहलुओं को कुड़ुख लोक नृत्य के द्वारा जाहिर करते है।
    मौसमी राग मौसम विशेष में गाये जाते है। एक मौसम का राग दूसरे मौसम में वर्जित समझा जाता है। मौसमी रागों के कई भेद हैं - फग्गू, खद्दी, टुंटा, जदुरा, धुड़िया, जेठवारी, आसारी, रोपा, अंगनई, करम, अगहनी, बेंजा आदि।
    उरांव आदिवासियों के अधिकतर नाच- गान दो मुख्य पर्वों - सरहुल और करम पर केंद्रित हैं। पर्व ही के दिन तो नाच गान होता ही है लेकिन इन पर्वों की प्रतीक्षा में कई दिनों पहले से ही नाच गान शुरू हो जाता है और पर्व बीतने के बाद भी कई दिनों तक वही चलता रहता है। अर्थात सिर्फ सरहुल या करम के दिन ही नहीं लेकिन पूरे मौसम में इनका प्रयोग होता है।
    🏹🏹जय आदिवासी एक तीर एक कमान- सर्व आदिवासी एक समान🏹🏹

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