||श्री कृष्ण जी की कहानी || जन्माष्टमी स्पेशल 2024| shree Krishna story||

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  • čas přidán 11. 09. 2024
  • भाग 1: प्रारंभिक जीवन और जन्म की कथा
    *कृष्ण का जन्म और कंस का आतंक*
    कहानी की शुरुआत होती है मथुरा से, जहाँ कंस नाम का अत्याचारी राजा राज्य करता था। कंस की बहन देवकी और उनके पति वसुदेव का विवाह हुआ था। लेकिन विवाह के समय, आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। इस भविष्यवाणी से भयभीत होकर कंस ने अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया। उसने उनके सभी नवजात बच्चों को मारने का निश्चय किया।
    देवकी के पहले छह बच्चों को कंस ने निर्दयता से मार डाला। लेकिन जब सातवां गर्भ आया, तो भगवान विष्णु ने अपनी माया से उस गर्भ को योगमाया द्वारा रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया, जो वसुदेव की दूसरी पत्नी थीं। इस प्रकार बलराम का जन्म हुआ।
    अब देवकी के आठवें गर्भ का समय आया, और यह वही समय था जब भगवान विष्णु ने स्वयं देवकी के गर्भ से जन्म लेने का निश्चय किया। जब कृष्ण का जन्म हुआ, तब आधी रात थी और चारों ओर घना अंधकार था। उस रात, भगवान विष्णु ने शिशु कृष्ण का रूप धारण कर देवकी के गर्भ से जन्म लिया।
    कृष्ण का जन्म होते ही, कारागार के दरवाजे स्वतः ही खुल गए, और वसुदेव ने नवजात कृष्ण को यशोदा और नंद बाबा के पास गोकुल ले जाकर छोड़ा। वहाँ यशोदा को यह अहसास भी नहीं हुआ कि उन्होंने अपनी बेटी को जन्म दिया था और उसे कृष्ण के रूप में पुत्र प्राप्त हुआ।
    *गोकुल में कृष्ण का पालन-पोषण*
    गोकुल में, कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा और नंद बाबा के साथ हुआ। वे एक साधारण बालक के रूप में बड़े हुए, लेकिन उनकी दिव्यता उनके कृत्यों से स्पष्ट थी। वे माखन चोरी करते, गोपियों के साथ खेलते, और गाँव में सभी को अपनी बाल लीलाओं से मोहित कर देते।
    कृष्ण का रूप, उनका सौंदर्य और उनकी बाल लीलाएँ गोपियों और गोकुलवासियों के लिए अत्यंत प्रिय थीं। सभी उन्हें प्यार करते थे, लेकिन वे स्वयं इस बात से अनजान थे कि उनके सामने कौन है।
    इसी बीच, कंस को यह पता चला कि उसका मृत्यु का काल, कृष्ण गोकुल में पल रहा है। उसने कृष्ण को मारने के लिए कई असुरों को भेजा, लेकिन बालकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से सभी असुरों का वध कर दिया।
    कृष्ण का बाल्यकाल सभी प्रकार की लीला और दिव्य प्रेम का प्रतीक था। उन्होंने गोकुल में अपने मित्रों और गोपियों के साथ मस्ती की, माखन चुराया, और अपनी मुरली की मधुर ध्वनि से सभी का मन मोह लिया।
    भाग 2: कृष्ण का वृंदावन आगमन
    *गोकुल से वृंदावन में कृष्ण का आगमन*
    गोकुल में बाल कृष्ण का जीवन आनंद और लीला से भरपूर था, लेकिन कंस की ओर से लगातार बढ़ते खतरे को देखते हुए, नंद बाबा ने यह निर्णय लिया कि गोकुल को छोड़कर वृंदावन चले जाना चाहिए। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य यही था कि कृष्ण को कंस के क्रूरता से बचाया जा सके।
    वृंदावन में आने के बाद, कृष्ण का जीवन और भी आकर्षक और दिव्य हो गया। वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, यमुना नदी के किनारे के बाग-बगीचे, और गोपियों के साथ उनका संबंध और भी मधुर हो गया। वृंदावन में कृष्ण ने गोपियों के साथ खेल-खेल में कई अद्वितीय लीलाएँ कीं।
    वृंदावन में ही राधा रानी और कृष्ण की प्रेम कहानी का आरंभ हुआ। राधा, जो स्वयं श्रीमति राधारानी के रूप में भगवान की दिव्य शक्ति का अवतार मानी जाती हैं, का कृष्ण के प्रति अद्वितीय प्रेम था। वृंदावन के इस नए परिवेश में, राधा और कृष्ण के बीच का प्रेम एक अद्वितीय और दिव्य रूप ले चुका था।
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    अगले भाग में, हम राधा और कृष्ण की प्रथम मुलाकात और उनके बीच के प्रारंभिक संबंध की कथा को देखेंगे। इस प्रेम कथा की गहराई में जाने के लिए बने रहें।
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