कछु सूदी, कछु टेढ़ी : मौजी बतकाव : 'साँसूँ' कौ संस्कार...|| बुँदेली गुगली ||184|| 🌝😁😂

Sdílet
Vložit
  • čas přidán 8. 09. 2024
  • @hamdehati22 || बुँदेली बानीं और बुँदेली जन के क्या कहने? हर स्थिति-परिस्थिति में मौज में जीने की कला बुँदेली मानस को खूब आती है। वे हँसते-हँसते कब पते की बात कह जाएँ यह समझना सहज नहीं। युवक ब्राह्मण किसान नें खूब मजे की बातें कही हैं, उनके बतकाव से समकालीन समस्याओं, विसंगतियों, सामाजिक-आर्थिक चरित्र, चिंतन-मनन के पक्षों और प्रचलित आडंबर की छवि उभरकर आती है। यह वार्तालाप करारा बुँदेली व्यंग्य है।
    -विनय त्रिपाठी, सम्पादक
    कछु सूदी, कछु टेढ़ी : मौजी बतकाव : 'साँसूँ' कौ संस्कार...|| बुँदेली गुगली ||184|| 🌝😁😂
    #बुँदेली #विनय_त्रिपाठी #पत्रकारिता #बुँदेली_की_बौछार #बुंदेली_बाने #बुंदेली_के_रंग #बुँदेली_रंग #बुँदेली_जन #बुंदेली_मन #बुंदेली_घमण्ड #बुँदेली_चुगली #बुँदेली_गुगली #बुँदेली_भैयाजी #हंसना_हंसाना #मौजीबतकाव #बुँदेली_व्यंग्य #बुँदेली_दंगल #आनंद_ही_आनंद #मौज #मौज_ही_मौज #चिंतन_मनन #बात_पते_की #घनी_घनी #कछु_सूदी_कछु_टेढ़ी #मन_की, बातें #मन_के_राजा #अल्हण_जीवन #बुँदेली_व्यंग्य

Komentáře • 2