राधा गोपीनाथ जी मंदिर जयपुर || Shri Radha Gopinath ji Temple Jaipur | Jaipur Krishna Mandir Watch

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  • čas přidán 13. 09. 2024
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    राजस्थान के जयपुर में स्थित श्री राधागोपीनाथ मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है | जयपुर गोविन्द देवजी के दर्शन के बाद माना जाता है के श्री राधा गोपीनाथ मंदिर के दर्शन करने पर भगवान् श्री कृष्ण उनकी मनोकामना पूरी करते है | जयपुर श्री राधा गोपीनाथ मंदिर पुरानी बस्ती चांदपोल में विराजमान है | भगवान श्री कृष्ण का एक ऐसा विग्रह है जो हाथ में घड़ी धारण करता है | यहां मौजूद विग्रह को भगवान श्रीकृष्ण के ही प्रपौत्र वज्रनाभ ने बनवाया था | बाद में इसे वृंदावन से जयपुर लाया गया | पहले ये मूर्ति वृंदावन में थी | वृदांवन धाम में भी राधा कृष्ण के कई सारे मंदिर थे लेकिन मुग़ल काल में बहुत से राधाकृष्ण मंदिर वृंदावन में तोड़े गए | आज श्रद्धालुओं के बीच पुरानी बस्ती स्थित मंदिर में ठाकुर जी के इस विग्रह को गोपीनाथ के रूप में पूजा जाता है | यह मंदिर जयपुर के प्रसिद्ध मंदिर में से एक है | जयपुर इस्कोन मंदिर से ये गोपीनाथ मंदिर लगभग 17 किलोमीटर दूर है | यह राधागोपीनाथ मंदिर जयपुर के पर्यटन स्थलों में शामिल है
    गोपीनाथ जी मंदिर के पुजारी जी सिद्धार्थ गोस्वामी ने बताया कि राजस्थान में मौजूद भगवान श्री कृष्ण के तीन विग्रह, करौली के मदन मोहन जी, जयपुर गोविंद देव जी और राधा गोपीनाथ जी को एक ही शिला से तैयार किया गया था | कंस ने जिस शिला पर अपनी बहन के जन्में बच्चों को मारा था, भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने उसके तीन टुकड़े
    किए थे | इससे जो पहला विग्रह बना वो मदन मोहन जी का था | ये वर्तमान में करौली में है | इनके चरण ठाकुर जी से मिलते हैं | दूसरा विग्रह गोपीनाथ जी कहलाया | वर्तमान में ये जयपुर के पुरानी बस्ती में मौजूद है | इनके वक्ष स्थल और भुजाएं ठाकुर जी के समान हैं | आखिर में तीसरा विग्रह गोविंद देव जी का बना, जिनका मुखारविंद ठाकुर जी से मेल खाता है | ये तीनों ही विग्रह करीब 5000 साल पुराने हैं | गोपीनाथ जी की प्रतिमा यमुना किनारे वंशीघाट पर मिली थी | इसकी सेवा का जिम्मा मधुगोस्वामी को मिला था | 1669 तक उन्होंने वृंदावन में ही ठाकुर जी की सेवा की | जब औरंगजेब मंदिर तोड़ने लगा, तब ठाकुर जी को लेकर छुपते-छुपाते राधा कुंड और काम्यावन होते हुए 1775 में जयपुर लाया गया | गोपीनाथ जी पहले जोरावर सिंह गेट स्थित नेशनल आयुर्वेद कॉलेज के स्थान पर 17 साल तक विराजे और 1792 में उन्हें पुरानी बस्ती स्थित इस इमारत में लाया गया |
    पुजारी जी ने बताया कि उनके दादाजी जब यहां सेवा का कार्य करते थे तब एक पल्स से चलने वाली घड़ी ठाकुर जी को धारण कराई जाती थी | ये सही वक्त भी बताती थी | बताया जाता है कि आजादी से पहले यहां एक अंग्रेज आया था, उसका कहना था कि यदि ठाकुर जी में प्राण हैं, तो ये घड़ी धड़कन से चलेगी | जब भगवान को घड़ी धारण कराई गई तो वो चलने लगी | काफी लंबे समय तक भगवान को ये घड़ी धारण भी कराई गई थी | हालांकि जब वो खराब हुई तो उसे सही करने के लिए कारीगर को दिया गया, लेकिन उसने इसे वापस नहीं दिया | उन्होंने बताया कि अभी भी भगवान को उसी घड़ी की प्रतिकृति के रूप में दूसरी घड़ी पहनाई जाती है |
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