लोंजाइनस का उदात्त सिद्धान्त | longinus ka udatt sidddhant | pashchatya kavyashastra

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    लोंजाइनस का उदात्त सिद्धान्त longinus ka udatt sidddhant | pashchatya kavyashastra
    लोंजाइनस : औदात्य/उदात्त (Sublime) की अवधारणा
    प्रस्तावना
    लोंजाइनस की रचना ‘पेरिइप्सुस’
    लोंजाइनस से पूर्व काव्य का प्रयोजन
    औदात्य का स्वरूप
    औदात्य का आधार
    औदात्य के पाँच स्रोत
    औदात्य के बाधक तत्त्व
    मूल्याँकन
    उपसंहार
    यूनान के साहित्य चिन्तकों की परम्परा में लोंजाइनस का गौरवपूर्ण स्थान है। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने काव्य के विषय और काव्य की गरिमा का सम्बन्ध कवि के व्यक्तित्व से स्थापित करते हुए कवि को महत्त्व प्रदान किया । उनसे पूर्व अरस्तू ने अनुकरण सिद्धान्त के द्वारा काव्य की विषयवस्तु को महत्त्व देते हुए कवि के निजी व्यक्तित्व की उपेक्षा की थी ।
    लोंजाइनस ने अनुकरण सिद्धान्त की सर्वथा उपेक्षा करते हुए कवि के व्यक्तित्व और कवि की मौलिक रचना का प्रतिपादन किया । वस्तुतः जहाँ प्लेटो घोर आदर्शवादी थे, अरस्तू वस्तुवादी या यथार्थवादी थे, वहाँ लोंजाइनस स्वच्छन्दतावादी आलोचक थे। लोंजाइनस कब और कहाँ पैदा हुए, यह निश्चित नहीं है ।
    कुछ उन्हें प्रथम शताब्दी का अप्रसिद्ध लेखक मानते हैं तो कुछ उन्हें तृतीय शताब्दी का सुप्रसिद्ध लेखक मानते हैं। लोंजाइनस के उदात्त चरित्र को देखते हुए उनका समय तृतीय शताब्दी माना जा सकता है ।
    लोंजाइनस की रचना ‘पेरिइप्सुस
    ‘पेरिइप्सुस’ यूनानी नाम है । इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है ‘On the Sublime’ (औदात्य पर विचार) । यह रचना अनेक शताब्दियों तक अज्ञात एवं अप्रकाशित रही । 1554 ई. में इस ग्रन्थ के अस्तित्व का पता चला और तदनन्तर 1652 ई. में इसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ|
    ‘पेरिइप्सुस’ लगभग 60 पृष्ठों की लघुकाय कृति है । इसे पत्ररूप में रोमन मित्र को संबोधित करके लिखा गया है । अध्यायों का आकार बहुत ही असमान है- कुछ अध्याय दो - तीन पृष्ठों के हैं तो कुछ केवल सात-आठ पंक्तियों के हैं । इसमें छोटे- बड़े कुल 44 अध्याय है । पूरी पुस्तक का प्रायः एक तिहाई भाग लुप्त है ।किन्तु समीक्षाशास्त्र का यह बहुत बड़ा सौभाग्य है कि खंडित रूप में सही, यह महत्त्वपूर्ण कृति प्रकाश में आयी। विद्वानों ने एक स्वर में ‘पेरिइप्सुस’ और ‘लोंजाइनस’ दोनों की प्रशंसा की है ।

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