सन्त-स्तुति ईश-स्तुति (प्रातः कालीन) (Morning) स्वर :- शाही स्वामी जी महाराज

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  • čas přidán 12. 09. 2024
  • सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर औरू अक्षर पार में।
    निर्गुण के पार में सत् असत् हू के पार में ।।1।।
    सब नाम रूप के पार में मन बुद्धि वच के पार में।
    गो गुण विषय पँच पार में गति भाँति के हू पार में।।2।।
    सूरत निरत के पार में सब द्वन्द्व द्वैतन्ह पार में।
    आहत अनाहत पार में सारे प्रप´चन्ह पार में।।3।।
    सापेक्षता के पार में त्रिपुटी कुटी के पार में।
    सब कर्म काल के पार में सारे ज्जालन्ह पार में।।4।।
    अद्वय अनामय अमल अति आधेयता-गुण पार में।
    सत्ता स्वरूप अपार सर्वाधार मैं-तू पार मे।।5।।
    पुनि ओऊम् सोहम् पार में अरू सच्चिदानन्द पार में।
    हैं अनन्त व्यापक व्याप्य जो पुनि व्याप्य व्यापक पार में।।6।।
    हैं हिरण्यगर्भहु खर्व जासों जो हैं सान्तन्ह पार में।
    सर्वेश हैं अखिलेश हैं विश्वेश हैं सब पार में।।7।।
    सत्शब्द धर कर चल मिलन आवरण सारे पार में।
    सद्गुरु करूण कर तर ठहर धर ‘मेँहीँ’ जावे पार में।।8।।
    सब सन्तन्ह की बडि़ बलिहारी।
    उनकी स्तुति केहि विधि कीजै,
    मोरी मति अति नीच अनाड़ी।।सब.।।1।।
    दुख-भंजन भव-फंदन-गंजन,
    ज्ञान-घ्यान निधि जग-उपकारी।
    विन्दु-ध्यान-विधि नाद-ध्यान-विधि
    सरल-सरल जग में परचारी।।सब.।।2।।
    धनि- ऋषि-सन्तन्ह धन्य बुद्ध जी,
    शंकर रामानन्द धन्य अघारी।
    धन्य हैं साहब सन्त कबीर जी
    धनि नानक गुरू महिमा भारी ।। सब.।।3।।
    गोस्वामी श्री तुलसि दास जी,
    तुलसी साहब अति उपकारी।
    दादू सुन्दर सुर श्वपच रवि
    जगजीवन पलटू भयहारी।। सब.।।4।।
    सतगुरु देवी अरू जे भये, हैं,
    होंगे सब चरणन शिर धारी।
    भजत है ‘मेँहीँ’ धन्य-धन्य कहि
    गही सन्त पद आशा सारी।। सब.।।5।।
    मंगल मूरति सतगुरु, मिलवैं सर्वाधार।
    मंगलमय मंगल करण, विनवौं बारम्बार।।1।।
    ज्ञान-उदधि अरू ज्ञान-घन, सतगुरु शंकर रूप
    नमो-नमो बहु बार हीं, सकल सुपूज्यन भूप।।2।।
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