Maharana Pratap History by subhash charan sir || maharana pratap history in hindi || subhash charan
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- čas přidán 4. 09. 2024
- #MaharanaPratapHistory
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महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 20000 राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80000 की सेना का सामना किया।
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महाराणा प्रताप का बाल्य काल:_ महाराणा प्रताप का जन्म वि.स.1597 ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, रविवार (9 मई 1540)को हुआ| यह तिथि ज्योतिषी चंडू जोधपुर के यहां से मिली जन्म कुंडली के आधार पर गौरीशंकर ओझा ने बताई| वीर विनोद का जन्म वि. स. 1596, ज्येष्ठ सुदी 13 को होना लिखा है |
महाराणा प्रताप के जन्म स्थान से संबंधित कोई पुख्ता जानकारी प्राप्त नहीं है | क्योंकि 1540 ई. को महाराणा उदय सिंह ने बनवीर को हराकर चितौड़ में प्रवेश कर लिया था| इस आधार पर देवीलाल पालीवाल ने महाराणा की जन्म स्थली कुंभल गढ़ बताई है|
ऐसी भी मान्यता है कि महाराणा प्रताप का जन्म उनके ननिहाल पाली में हुआ था| महाराणा प्रताप की माता पाली के अखेराज सोनगरा की पुत्री थी| पाली में महाराणा का जन्म महाराव के गढ़ में हुआ माना जाता हैं | हिन्दुओं में ऐसी मान्यता है कि प्रथम पुत्र ननिहाल में होता है, इस आधार पर मानते है कि जैवन्ता बाई का प्रथम पुत्र ननिहाल पाली में हुआ होगा| देवीलाल इस मत से सहमत नहीं है वे कहते है राज परिवार में ऐसी मान्यता का प्रचलन नहीं था|
महाराणा प्रताप का लालन पालन उनके पिता की छत्र छाया में कुंभलगढ़ व चितौड़ गढ में हुआ| राजपूत राजकुमारों को दी जाने वाली शिक्षा दी गई| नीति व धर्म , घुड़सवारी , घोड़ों की पहचान , अस्त्र शस्त्र का प्रयोग, सैन्य संचालन ,सैन्य रचना की जानकारी प्रदान की गई| युवा होते होते वे दक्ष योद्धा , कुशल नीति के जानकार व योग्य सैन्य संचालक बन गए|
अमर काव्य वंशावली के अनुसार प्रताप ने अपने कुंवर काल में बागड पर आक्रमण करके बागड को मेवाड़ में मिला लिया था|
महाराणा प्रताप को कीका भी कहा जाता है, कीका संस्कृत का शब्द है ,जिसका अर्थ प्रभाव है |
अबुल फजल ,बदायूंनी ,निजामुद्दीन ने अपने ग्रंथो में प्रताप के नाम की जगह राणा कीका शब्द का प्रयोग किया है|
भटियाणी रानी के प्रभाव के कारण महाराणा की उपेक्षा की जाने लगी | जब प्रताप कुंभल गढ़ से चितौड़ पहुंचे तब उन्हें चितौड़ में रहने की व्यवस्था न करके चितौड़ के बाहर तलहट में एक गांव में कि गई| उनके साथ रहने के लिए केवल 10 राजपूत नियुक्त किए गए थे| राज्य की और से जब भोजन भेजा जाता था तो एक ही रसोइया सबके लिए भोजन तैयार करता था, प्रताप अपने साथियों के साथ एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे, | साथ में बैठकर भोजन करने की ये रिवाज महाराणा प्रताप ने राजगद्दी पर बैठने के बाद जारी रखी| इस घटना का वर्णन अमर काव्य में बड़े ही मार्मिक तरीके से कि गई है|
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Very nice sir
Very nice class sir
Very nice garu dev👍👍👍👍
Mja aa gya pd kar ❤❤
Wah bhai
Sir hme bhi school education me Rana prtap ko padaya gya tha, pr sir aap hi ekmatr gurudev ho jinhone etne gharei se Rana Pratap ko padaya
Very very very 🎉nice 💫
Very nice sir ji 🎉
Maharana Pratap Singh
Very beautifully 👌
Very nice
Maharna pratap
Anjali Sharma sir good morning
Voice is kind of indistinct. You must improve it's quality
Good morning sir
क्षञिय आज के जाट, यादव, गुर्जर , बिश्नोई व अन्य कई जातियाँ थी। क्षञिय मतलब शस्त्र रखकर समाज ,राज्य की रक्षा करने वाले । राजपूत मतलब राज्य के पूत्र यानी राजा ,उसके परिवार ,व सैनिकों के बीना शादी के जो हुए वो राजपूत यानी राज्य (सरकार या राज ) के पूत । गांवो मे भी यही बात चलन मे है गांव के गीतों मे भी गाई जाती है जो पीढ़ियों से गाई जा रही है। सच्चाई यही है। अगर हम गांवो मे राव या भाट द्वारा पीढ़ियों से लिखी जा रही किताबों को पढते है तो उससे हमे पता चलता है। (राव वो है जो हर जाति,उपजाति के हर परिवार की दो तीन हजार साल से पीढ़ियों का लेखन कर रहे है। राव या भाटों की उनकी किताबों व पेड़ों के पतों पर अपनी अलग भाषा मे लिखते है जो वे अपने बच्चों को पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाते है।)
गांवो मे आज भी किसी परिवार मे बच्चे का जन्म होता है तो उसे परिवार के लोग एक सभा (खाने पाने का आयोजन) का आयोजन कर अपने परिवार के भाट या राव को बुलाते है व अपने सभी परिवार , रिश्तेदारों व गांव वालो के सामने उस बच्चे का भाट या राव की किताब मे जन्मे बच्चे का नाम, समय, गांव सब लिखाते है। उस सभा मे भाट उस परिवार की पूरी पीढ़ियों के नाम गाकर सुनाते है यानी उस परिवार की पहले की पीढ़ियां किस जाति की थी बाद मे किस जाति मे वो कन्वर्ट हुई। कहाँ कहां रही, उसके बाद यहां इस गांव मे कब आई। मतलब हर चीज बताई जाति है। नया व्यक्ति तो सुनकर ही अचंभित हो जाता है कि इतनी हजारों पीढ़ियों का नाम पता जाति लिखकर कैसे संभालकर रखा गया होगा । भाट या राव की लिखने की भाषा अलग है लेकिन उनके बोलने से हम ज्यादातर समझ जाते है। यह परंपरा हजार सालों से चली आ रही है। जैसे मै ऐसी एक सभा के आयोजन मे गया जब एक बिश्नोई जाति के परिवार ने अपने बच्चे का भाट या राव की किताब मे नाम लिखने के लिए आयोजन कराया था। वहां उस राव से मैने उस परिवार की पीछली पीढ़ियों के बारे मे पुछा तो राव ने बताया कि ये अभी बिश्नोई जाति व साहु उपजाति से है ,इस परिवार की पीढ़ी लगभग पांच सौ साल पहले जाट (साहू) जाति थी, उससे पहले ये राजपूत (चौहान ) जाति के थे। मुझे भी इन राव जातियों द्वारा लिखे जाने की परंपरा व इस बारे मे तभी पता चला था ।
सच यह है कि पहले सब एक ही थे जनसंख्या बढती गई व जातियाँ उस समय के राजनितिक व सामाजिक कारणों से बनती गई।
nice sir
Vxxttytyf
Ccduy to eesß to u ❤️❤️❤️🎉
लूणकरण जैसलमेर का शासक था
Your great sir
Sir b arc ka mater karado
लूणकरण कहा का शासक था जो मुगलो कि तरफ से लडा था
Bikaner ka
जैसलमेर का था लूणकरण
सांभर