Guru Mohe Apna Roop Dikhaao || Bani Hazoor Soami Ji Maharaj || Niranjan Saar ||

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  • čas přidán 2. 08. 2021
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    गुरू मोहि अपना रूप दिखाओ ॥ टेक ॥
    यह तो रूप धरा तुम सर्गुण । जीव उबार कराओ ॥ 1।।
    रूप तुम्हारा अगम अपारा। सोई अब दरसाओ ॥ 2 ॥
    देखूँ रूप मगन होय बैठूॅं। अभय दान दिलवाओ॥3॥
    यह भी रूप पियारा मो को । इस ही से उसको समझाओ ॥4॥
    बिन इस रूप काज नहिं होई। क्यों कर वाहि लखाओ ॥ 5 ॥
    ता ते महिमा भारी इसकी। पर वह भी लखवाओ ॥6॥
    वह तो रूप सदा तुम धारो। या ते जीव जगाओ ॥ 7 ॥
    यह भी भेद सुना मैं तुम से । सुरत शब्द मारग नित गाओ ॥ 8 ॥
    शब्द रूप जो रूप तुम्हारा । वा में भी अब सुरत पठाओ ॥ 9 ॥
    डरता रहूं मौत और दुख से । निर्भय कर अब मोहि छुड़ाओ ॥ 10 ॥
    दीनदयाल जीव हितकारी। राधास्वामी काज बनाओ ॥ 11 ॥
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