Jagrit kundalini aur kundalini jagran || कुण्डलिनी जागरण
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- čas přidán 11. 09. 2024
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कुण्डलिनी के दो उत्पत्ति स्थान माने गये हैं, एक सूर्य केन्द्र में निवास करने वाली पुरुषरूपी और दूसरी स्त्री रूप में पृथ्वी केन्द्र में। पृथ्वी केन्द्र में कुण्डलिनी को प्राणधारियों की जीवन सत्ता का केन्द्र कह सकते हैं। यह दरअसल सूर्य कुण्डलिनी का ही बीज है। कहा जाता है कि संसार जो कुछ भी है वह सब बीज रूप से देह में विद्यमान है सूर्य भी कुण्डलिनी के रूप में शरीर में बैठा हुआ है। शारीरिक मूलाधार में ग्रन्थि का जब विकास होता है तब उसमें सूर्य जैसी होती है। अर्थात् उसमें मनुष्य की शक्ति सूर्य की जितनी शक्ति वाली, सर्वव्यापी, सर्व-समर्थ हो जाती है फिर उस शक्ति का नियन्त्रण करना कठिन हो जाता है। कमजोर मन और शरीरवाले उस शक्ति को धारण नहीं कर सकते। आसमान की ओर देखने पर वायु में छोटे-छोटे प्रकाश के कण अति शीघ्रता से चारों ओर उछलते हुए दिख पड़ते हैं ये प्राणकण ही हैं। यह कण सात ईश्वर कणों से विनिर्मित होता है। यह प्राण कण सफेद होता है पर ईश्वर के सातों अणु सात रंगों के बने होते हैं। सूर्य भी सात रंगों का प्रकाश है। नाभि चक्र में घुसने पर यह रंग अलग-अलग होकर अपने क्रिया क्षेत्रों में बँट जाते हैं
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