श्री राधा-कृष्ण मिलन(विवाह)🪷🙏 श्रीराधाकृष्णलीला परिकर भाग-5
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- čas přidán 7. 09. 2024
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श्रीकृष्णचन्द्र-मिलन
अचानक काली घटाएँ घिर आती हैं। भाण्डीर वनमें अन्धकार छा जाता है। वायु बड़े वेगसे बहने लगती है। तरु-लताएँ काँप उठती हैं। कदम्ब-तमालपत्र छिन्न हो-होकर गिरने लगते हैं। ऐसे समय इसी वनमें एक वटके नीचे व्रजेश्वर नन्द श्रीकृष्णचन्द्रको गोदमें लिये खड़े हैं। उन्हें चिन्ता हो रही है कि श्रीकृष्णकी रक्षा कैसे हो।
गोपोंका गोचारण निरीक्षण करने वे आ रहे थे।
वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः
१५
श्रीकृष्णचन्द्र साथ चलनेके लिये मचल गये; किसी प्रकार नहीं माने, रोने लगे। इसीलिये वे उन्हें साथ ले आये थे। यहाँ वनमें आनेपर गोरक्षकोंको तो उन्होंने दूसरे वनकी गायें एकत्र कर वहीं ले आनेके लिये भेज दिया, स्वयं उन गायोंकी सँभालके लिये खड़े रहे। इतनेमें यह झंझावात प्रारम्भ हो गया। कोई गोरक्षक भी नहीं कि उसे गायें सँभलाकर वे भवनकी ओर जायें; तथा यों ही गायोंको छोड़ भी दें. तो जायें कैसे ? बड़ी-बड़ी बूँदें जो आरम्भ हो गयी हैं। अतः कोई उपाय न देखकर व्रजेश्वर एकान्त मनसे नारायणका स्मरण करने लगते हैं।
मानो कोटि सूर्य एक साथ उदय हुए हों, इस प्रकार दिशाएँ उद्भासित हो जाती हैं; तथा वह झंझावात तो न जाने कहाँ चला गया। नन्दराय आँखें खोलकर देखते हैं-सामने एक बालिका खड़ी है। हैं-हैं! वृषभानुकुमारी ! तू यहाँ इस समय कैसे आयी, बेटी!' व्रजेश्वरने अचकचाकर कहा। किंतु दूसरे ही क्षण अन्तहृदयमें एक दिव्य ज्ञानका उन्मेष होने लगता है, मौन होकर वे वृषभानुनन्दिनीकी ओर देखने लगते हैं-कोटि चन्द्रोंकी द्युति मुखमण्डलपर झलमल-झलमल कर रही है, नीलवसन-भूषित अंग हैं; अंगोंपर काञ्ची, कंकण, हार, अंगद, अंगुरीयक, मञ्जीर यथास्थान सुशोभित है; चञ्चल कर्णकुण्डल तथा दिव्यातिदिव्य रत्नचूड़ामणिसे किरणें झर रही हैं; अंगोंके तेजका तो कहना ही क्या है, भानुकुमारीकी अंगप्रभासे ही वन आलोकित हुआ है। नन्दरायको गर्गकी वे बातें भी स्मरण हो आयीं; पुत्रके नामकरण-संस्कारसे पूर्व गर्गने एकान्तमें वृषभानुपुत्रीकी महिमा, श्रीराधातत्त्वकी बात बतलायी थी; पर उस समय तो नन्दराय सुन रहे थे, और साथ ही साथ भूलते जा रहे थे; इस समय उन सबकी स्मृति हो आयी, सबका रहस्य सामने आ गया। अञ्जलि बाँधकर नन्दरायने श्रीराधाको प्रणाम किया और बोले- 'देवि ! मैं जान गया, पुरुषोत्तम श्रीहरिकी तुम प्राणेश्वरी हो, एवं मेरी गोदमें तुम्हारे प्राणनाथ स्वयं पुरुषोत्तम श्रीहरि ही विराजित हैं; लो, देवि ! ले जाओ, अपने प्राणेश्वरको साथ ले जाओ। किंतु ।' नन्द कुछ रुक-से गये, श्रीकृष्णचन्द्रके भीति-विजड़ित नयनोंकी ओर उनकी दृष्टि चली गयी थी। क्षणभर बाद बोले- 'किंतु देवि ! यह बालक तो आखिर मेरा पुत्र ही है न! इसे मुझे ही लौटा देना।'--नन्दरायने श्रीकृष्णचन्द्रको श्रीराधाके हस्तकमलोंपर रख दिया। श्रीराधा श्रीकृष्णचन्द्रको गोदमें लिये गहन वनमें प्रविष्ट हो
Hare Krishna
Shree Radhey Shyam
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare
Radhe Radhe 🙏
दिव्य, आलौकिक ,अदभुद, अनमोल, दुर्लभ जय गुरूदेव जय राधेश्याम धन्यवाद
Jai shree Radhe ❤🍒🌻🌷
Radha Krishna ❤❤
Beautiful RadhaMadhav vivah prasang. Jay RadhaMadhav ❤🙏💙
RadhaKrishna Asthasakhi
Radhey Krishna 😢😢⭕❗⭕🙏🏽🫂
Radhey Krishna radhe krishna Krishna Krishna radhe radhe 😢😢⭕❗⭕🙏🏽🫂🫂🫂
🪔Radhe Krishna Radhe Krishna Krishna Krishna Radhe radhe radhe shyam radhe shyam shyam shyam radhe radhe 🪷🌻🌺🌹🏵️💮🌸🙏
Bhai ji ap mujme kripa kre mai apki kripa ki hakdar ho
Ap hi se puch 4 saal maine mahamantra ka jaap kiya apne hi sawyam naap jaap badal diya ,,mai bhi ab radha krishna naam japna chati ho ya radhavallabh ap kripa kre
Aap apni Ruchi ke anusar nam len jisme aapki shradha ho🙏