दुनिया ने दादा साहब फाल्के को भी नहीं छोड़ा...
Vložit
- čas přidán 5. 09. 2024
- जिसका अपमान हुआ ...फिर कैसे इनका नाम ही सम्मान बन गया ? #bollywood ,#foryou #youtube
Dada saheb Phalke : भारतीय सिनेमा के पितामह थे दादा साहब फाल्के, ऐसे दिया था भारत में फिल्मों को जीवनदादासाहब फाल्के का असल नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के नासिक में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे। दादा साहेब ने अपनी शिक्षा कला भवन, बड़ौदा में पूरी की थी। वहां उन्होंने मूर्तिकला, इंजीनियरिंग, चित्रकला, पेंटिंग और फोटॉग्राफी की शिक्षा ली।
1910 में तब के बंबई के अमरीका-इंडिया पिक्चर पैलेस में ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ दिखाई गई थी। थियेटर में बैठकर फिल्म देख रहे धुंदीराज गोविंद फाल्के ने तालियां पीटते हुए निश्चय किया कि वो भी भारतीय धार्मिक और मिथकीय चरित्रों को रूपहले पर्दे पर जीवंत करेंगे।
दादा साहेब को अपना लक्ष्य बिल्कुल साफ दिख रहा था। वह अपनी फिल्म को बनाने के लिए इंग्लैंड जाकर फिल्म में काम आने वाले कुछ यंत्र लाना चाहते थे। इस यात्रा में उन्होंने अपनी जीवन बीमा की पूरी पूंजी भी दांव पर लगा दी। इंग्लैंड पहुंचते ही सबसे पहले दादा साहेब फाल्के ने बाइस्कोप फिल्म पत्रिका की सदस्यता ली। दादा साहेब तीन महीने की इंग्लैंड यात्रा के बाद भारत लौटे।इसके बाद उन्होंने बंबई में मौजूद थियेटरों की सारी फिल्में देख डाली। दो महीने तक वो हर रोज शाम में चार से पांच घंटे सिनेमा देखा करते थे और बाकी समय में फिल्म बनाने की उधेड़-बुन में लगे रहते थे। इससे उनकी सेहत पर असर पड़ा और करीब-करीब उनकी आंखो की रोशनी चली गई।इसके बाद दादा साहेब ने शुरू की वह फिल्म जिसे आज हम हिंदुस्तान की पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' के नाम से जानते हैं। दादा साहेब अपनी इस फिल्म के सबकुछ थे। उन्होंने इसका निर्माण किया, निर्देशक भी वही थे, कॉस्ट्यूम डिजाइन, लाइटमैन और कैमरा डिपार्टमेंट भी उन्हीं ने संभाला था। वही फिल्म की पटकथा के लेखक भी थे। 3 मई 1913 को इसे कोरोनेशन सिनेमा बॉम्बे में रिलीज किया गया। यह भारत की पहली फिल्म थी।राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद दादा साहेब फाल्के ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद बिजनेसमैन के साथ मिलकर फाल्के ने फिल्म कंपनी बनाई। कंपनी का नाम था हिंदुस्तान फिल्म्स। वह देश की पहली फिल्म कंपनी थी। उन्होंने एक मॉडल स्टूडियो भी बनाया था। वह अभिनेताओं के साथ-साथ टेक्नीशियनों को भी ट्रेनिंग देने लगे, लेकिन जिंदगी के अच्छे दिन ज्यादा समय तक नहीं रहे। पार्टनर के साथ काफी समस्याएं होने लगीं। 1920 में उन्होंने हिंदुस्तान फिल्म्स से इस्तीफा दे दिया। इसके साथ ही उन्होंने सिनेमा जगत से भी रिटायरमेंट लेने की घोषणा कर दी। राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ उनका करियर 19 सालों तक चला। राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद अपने फिल्मी करियर में उन्होंने 95 फिल्म और 26 शॉर्ट फिल्में बनाईं। उनकी बेहतरीन फिल्मों में मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918) और कालिया मर्दन (1919) शामिल हैं। उनकी आखिरी मूक मूवी सेतुबंधन थी और आखिरी मूवी गंगावतरण थी।
उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1969 में 'दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड' देना शुरू किया। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। सबसे पहले यह पुरस्कार पाने वाली देविका रानी चौधरी थीं। 1971 में भारतीय डाक ने दादा साहेब फाल्के के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। उसपर उनका चित्र था।
Join this channel to get access to perks:
/ @goldenmomentswithvija...
SPECIAL THANKS TO
DHEERAJ BHARDWAJ JEE (DRAMA SERIES INDIAN),
THANKS FOR WATCHIN GOLDEN MOMENTS WITH VIJAY PANDEY
podcasters.spo...
www.facebook.c...
/ actorvijaypandey
/ panvijay
Bhut achcha laga aapko bhut bhut dhanyavaad ye video banane ke liye ❤️💕
Lots of respect to great Dada Saheb Falke 🎉
बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति अच्छी जानकारी दी आप ने जारी रखें विजय पांडे जी सादर नमस्ते 🙏🙏 दादा साहब फाल्के जी को कोटि कोटि नमन 🙏🙏 दादा साहब फाल्के जी ने पहिली बोलती फिल्म: गंगा मां को लेकर बहुत अच्छी फिल्म बनाई गंगाओतर 🎉
बहुत अच्छा लगा पांडेय भाई जी साधुवाद।
Vijay Sahab, an excellent presentation on the acassion of Birth Anniversary of father of Indian Cinema Dada Saheb Falke sahab. How can we forget the great contribution of Dada Saheb Falke to Indian Cinema ? One can understand the great work of a person under whose name a highest award in the field of Cinema is given by the Govt. My humble tributes to this great legend. Vijay Sahab, Thanks a lot. 👍🌹🙏
Nice episode Vijay ji 👌👌👍👍
aaj bhartiy saskrti ka namo nishan kaha hai.
Ye duniya aisi hi hai mere bhai.Yahan jeete ji samman isliye nahi diya jaata kyon ki aadmi ka ahankar kabhi bardasht nahi kar paata ki koi oos se aage kaise nikal gaya. Yahan Jesus ko sooli per latkaya Sukrat ko zeher diya Mahavir ke kanoon me lakdi ke keele thoke Osho ko jeete jee maarne ki koshish ki ........ isiliye Sahir ludhiyanvi ne likha tha..... Ye duniya agar mil bhi jaaye to kya hai.