Allah se dua karna corna jab tak Allah marji he kare lekin koi b musalman bina waju duniya se na jaye bina kalme ke Allah Corona ko b aur humara Zalim hukmraan ko khatam.kardw
ये महफिल काफी हो चुकी है ?अब कुछ प्लीज ।।। मस्जिद में नमाज़ न पढ़ पाने का आपका दर्द, हम समझ सकते हैं। अल्लाह तआला नियत का हाल जानता है। अगर, आपका दिल मस्जिद में है, और किसी वजह से, आप मस्जिद में हाज़िर न हो पा रहे हों तो यकीन जानिए, अल्लाह आपके अज्र में कोई कमी नहीं करेगा। इस मामले में बेवजह की साजिश थ्योरी का शिकार नहीं होना चाहिए। यह कोई ऐसी अनोखी घटना नहीं है, जो सिर्फ हमारे ज़माने में ही हो रही है, इस्लामी तारीख में ऐसे कई वाक़ेयात हैं, जब मस्जिदों में अज़ान व नमाज़ नहीं हुईं, यहां तक कि काबा और मस्जिद ए नबवी में भी ऐसा हुआ कि वहां नमाज़ न हो सकी। यह इम्तिहान, उन लोगों के लिए भी था, और आज हमारे लिए भी है। इन्हीं घटनाओं से कुछ लोगों में तौबा और इनाबत की कैफियत पैदा होती है, तो कुछ में शक, शुबहात और सरकशी की भावना बढ़ती है। इस तरह की महामारी, इस्लामी दुनिया में पहले भी ख़ूब कहर बरपा चुकी है। हज़रत उमर रज़ि0 के दौर में भी प्लेग फैला था, जिसमें 25,000 के करीब लोग मारे गए थे, जिनमें मशहूर सहाबी मआज़ बिन जबल और अबु उबैदा इब्नुल जर्राह भी शामिल थे। इस मामले में अपने अपने स्थानीय प्रशासन का सहयोग करें, और उनकी हिदायात पर अमल करें। अगर किसी जगह मस्जिद में नमाज़ बा जमाअत और जुमे पर पाबंदी है, तो इसे अपनी ego का मसअला न बनाएं, यह दीनदारी नहीं है। कितनी ही हदीस की किताबों में आता है कि आपने बारिश के मौके पर अज़ान में कहला दिया कि صَلُّوا فِي رِحَالِكُمْ (अपने घरों में नमाज़ पढ़ों), बल्कि मुसनद अहमद की रिवायत में तो आता है कि, عَنْ أَبِي الْمَلِيحِ بْنِ أُسَامَةَ قَالَ خَرَجْتُ إِلَى الْمَسْجِدِ فِي لَيْلَةٍ مَطِيرَةٍ فَلَمَّا رَجَعْتُ اسْتَفْتَحْتُ فَقَالَ أَبِي مَنْ هَذَا قَالُوا أَبُو الْمَلِيحِ قَالَ لَقَدْ رَأَيْتُنَا مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ زَمَنَ الْحُدَيْبِيَةِ وَأَصَابَتْنَا سَمَاءٌ لَمْ تَبُلَّ أَسَافِلَ نِعَالِنَا فَنَادَى مُنَادِي رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ صَلُّوا فِي رِحَالِكُمْ अबुल मलीह बिन उसामा कहते हैं कि एक मर्तबा बारिश वाली रात में मस्जिद में नमाज़ के लिए गया, घर आकर दरवाज़ा बजाया, तो हज़रत उसामा ने कहा कि मैने हुदैबिया के मौके पर वो वक्त देखा है जब हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे, कि इतने में बारिश शुरू हो गयी, *अभी आसमान ने हमारी जूतियों के तलवे भी गीले नहीं किए थे कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐलान कर दिया कि अपने अपने ख़ेमों में नमाज़ पढ़ लो* चंद बूंदों से जब की जूतों के तलवे भी गीले न हो, तो पैगम्बर की सुन्नत है कि अपने घर में नमाज़ पढ़ लो, अब जबकि इंसानों की जान का खतरा हो, तो आप ख़ुद ही बेहतर समझ सकते हैं। हरेक situation में अपने जज़्बात को कुरआन व सुन्नत के दायरे में रखना यही दीन का सही तकाज़ा है।
ماشاء اللہ بہت اچھی آواز اللہ تعالیٰ صحتمند زندگی عطاء فرمائے آمین ثم آمین
ماشاءاللہ حضرت قاری صاحب اللھم زِد فزد
ALLAH hame quran ki khadina banay ...
ماشاءاللہ سبحان الله اللہ نگہبان في أمان الله
Mashaallah mashaallah
ماشاءاللہ ایسے قرا ہمارے ملک میں بھی ہیں بھارت میں بہت خوشی ہوئی اللہ تعالیٰ اور قرآن کریم کے قرا اکرام پیدا فرمائے
Yeh bharat hi ke hai mohtaram
Mashallah bhut khob Hazrat Qari sahab
Mashallah mashallah
Masha Allah 👍👍👍👍👍
Allah ,ta,aala ham sabko qir,at ke sathh qur,aan sharif padhne ki tofiq ata farma
Pgl
@@daraadil1512 matlab
Mashallah
قاری صاحب بہت خوب
بھت زبردست
Mas allah
Allah se dua karna corna jab tak Allah marji he kare lekin koi b musalman bina waju duniya se na jaye bina kalme ke Allah Corona ko b aur humara Zalim hukmraan ko khatam.kardw
Mashallah qari sahab
NICE KARI SAHAB
ماشاءاللہ
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
❤❤❤❤❤
MashAllah
ماشاءاللہ بہت خوب
Masha allah
Mashaallah allah salamat rakhe
Bhtvhe ache Qari sahab
Masha Allah
mashallah nice
Allah hoakbar
IMDb
Maash allah
Sad
Saqhnl
Masallah
❤️❤️❤️❤️
Qari sahbka nambar chaiye jalse main shirkat ke liye dawat Dene ke liye
Please
Ibaurrahman. Darul. Uloom.deoband.hapur.
8535040547
Kale cot me molana klem he kya
G ha
ماشاءاللہ
ये महफिल काफी हो चुकी है ?अब कुछ प्लीज ।।।
मस्जिद में नमाज़ न पढ़ पाने का आपका दर्द, हम समझ सकते हैं। अल्लाह तआला नियत का हाल जानता है। अगर, आपका दिल मस्जिद में है, और किसी वजह से, आप मस्जिद में हाज़िर न हो पा रहे हों तो यकीन जानिए, अल्लाह आपके अज्र में कोई कमी नहीं करेगा। इस मामले में बेवजह की साजिश थ्योरी का शिकार नहीं होना चाहिए।
यह कोई ऐसी अनोखी घटना नहीं है, जो सिर्फ हमारे ज़माने में ही हो रही है, इस्लामी तारीख में ऐसे कई वाक़ेयात हैं, जब मस्जिदों में अज़ान व नमाज़ नहीं हुईं, यहां तक कि काबा और मस्जिद ए नबवी में भी ऐसा हुआ कि वहां नमाज़ न हो सकी। यह इम्तिहान, उन लोगों के लिए भी था, और आज हमारे लिए भी है। इन्हीं घटनाओं से कुछ लोगों में तौबा और इनाबत की कैफियत पैदा होती है, तो कुछ में शक, शुबहात और सरकशी की भावना बढ़ती है।
इस तरह की महामारी, इस्लामी दुनिया में पहले भी ख़ूब कहर बरपा चुकी है। हज़रत उमर रज़ि0 के दौर में भी प्लेग फैला था, जिसमें 25,000 के करीब लोग मारे गए थे, जिनमें मशहूर सहाबी मआज़ बिन जबल और अबु उबैदा इब्नुल जर्राह भी शामिल थे।
इस मामले में अपने अपने स्थानीय प्रशासन का सहयोग करें, और उनकी हिदायात पर अमल करें। अगर किसी जगह मस्जिद में नमाज़ बा जमाअत और जुमे पर पाबंदी है, तो इसे अपनी ego का मसअला न बनाएं, यह दीनदारी नहीं है। कितनी ही हदीस की किताबों में आता है कि आपने बारिश के मौके पर अज़ान में कहला दिया कि صَلُّوا فِي رِحَالِكُمْ (अपने घरों में नमाज़ पढ़ों), बल्कि मुसनद अहमद की रिवायत में तो आता है कि,
عَنْ أَبِي الْمَلِيحِ بْنِ أُسَامَةَ قَالَ خَرَجْتُ إِلَى الْمَسْجِدِ فِي لَيْلَةٍ مَطِيرَةٍ فَلَمَّا رَجَعْتُ اسْتَفْتَحْتُ فَقَالَ أَبِي مَنْ هَذَا قَالُوا أَبُو الْمَلِيحِ قَالَ لَقَدْ رَأَيْتُنَا مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ زَمَنَ الْحُدَيْبِيَةِ وَأَصَابَتْنَا سَمَاءٌ لَمْ تَبُلَّ أَسَافِلَ نِعَالِنَا فَنَادَى مُنَادِي رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ صَلُّوا فِي رِحَالِكُمْ
अबुल मलीह बिन उसामा कहते हैं कि एक मर्तबा बारिश वाली रात में मस्जिद में नमाज़ के लिए गया, घर आकर दरवाज़ा बजाया, तो हज़रत उसामा ने कहा कि मैने हुदैबिया के मौके पर वो वक्त देखा है जब हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे, कि इतने में बारिश शुरू हो गयी, *अभी आसमान ने हमारी जूतियों के तलवे भी गीले नहीं किए थे कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐलान कर दिया कि अपने अपने ख़ेमों में नमाज़ पढ़ लो*
चंद बूंदों से जब की जूतों के तलवे भी गीले न हो, तो पैगम्बर की सुन्नत है कि अपने घर में नमाज़ पढ़ लो, अब जबकि इंसानों की जान का खतरा हो, तो आप ख़ुद ही बेहतर समझ सकते हैं।
हरेक situation में अपने जज़्बात को कुरआन व सुन्नत के दायरे में रखना यही दीन का सही तकाज़ा है।
Mashallah