Baglamukhi Chalisa |Ma Baglamukhi Song |

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  • čas přidán 8. 12. 2019
  • Bhaktiaayaam#maabagalamukhi
    । दोहा ।। सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज। कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज।। ।। चौपाई ।। जय जय जय श्री बगला माता । आदिशक्ति सब जग की त्राता ।। बगला सम तब आनन माता । एहि ते भयउ नाम विख्याता ।। 1 ।। शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । असतुति करहिं देव नर-नारी ।। पीतवसन तन पर तव राजै । हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ।। 2 ।। तीन नयन गल चम्पक माला । अमित तेज प्रकटत है भाला ।। रत्न-जटित सिंहासन सोहै । शोभा निरखि सकल जन मोहै ।। 3 ।। आसन पीतवर्ण महारानी । भक्तन की तुम हो वरदानी ।। पीताभूषण पीतहिं चन्दन । सुर नर नाग करत सब वन्दन ।। 4 ।। एहि विधि ध्यान हृदय में राखै । वेद पुराण संत अस भाखै ।। अब पूजा विधि करौं प्रकाशा । जाके किये होत दुख-नाशा ।। 5 ।। प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । पीतवसन देवी पहिरावै ।। कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ।। 6 ।। माल्य हरिद्रा अरु फल पाना । सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ।। धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम-सहित तब करै आरती ।। 7 ।। अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे । पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ।। मातु भगति तब सब सुख खानी । करहुं कृपा मोपर जनजानी ।। 8 ।। त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ।। बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं । अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ।। 9 ।। पूजनांत में हवन करावै । सा नर मनवांछित फल पावै ।। सर्षप होम करै जो कोई । ताके वश सचराचर होई ।। 10 ।। तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै । भक्ति प्रेम से हवन करावै ।। दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ।। 11 ।। फूल अशोक हवन जो करई । ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ।। फल सेमर का होम करीजै । निश्चय वाको रिपु सब छीजै ।। 12 ।। गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ।। गुग्गुल तिल संग होम करावै । ताको सकल बंध कट जावै ।। 13 ।। कीलाक्षर का पाठ जो करहीं । बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ।। एक मास निशि जो कर जापा । तेहि कर मिटत सकल संतापा ।। 14 ।। घर की शुद्ध भूमि जहं होई । साधक जाप करै तहं सोई ।। सोइ इच्छित फल निश्चय पावै । यामै नहिं कछु संशय लावै ।। 15 ।। अथवा तीर नदी के जाई । साधक जाप करै मन लाई ।। दस सहस्र जप करै जो कोई । सकल काज तेहि कर सिधि होई ।। 16 ।। जाप करै जो लक्षहिं बारा । ताकर होय सुयश विस्तारा ।। जो तव नाम जपै मन लाई । अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ।। 17 ।।
  • Hudba

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