Neelkantheshwar Trimurti Temple, Pali/नीलकंठेश्वर मंदिर ,पाली,ललितपुर(u.p.)

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  • čas přidán 21. 08. 2024
  • ललितपुर जिला मुख्यालय शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत श्रेणी पर स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर बहुत ही अद्भुत एवं अद्वितीय है। मंदिर के दोनों ओर झरना बहता है। दूर-दूर से भगवान भोले के भक्त यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं।
    मंदिर के पुजारी जी बताते हैं कि कस्बा पाली स्थित भूत भगवान नीलकंठेश्वर मंदिर जिले के प्रमुख शिव मंदिरों में से अपना विशेष स्थान रखता है। करीब 13 सौ साल पुराना चंदेल कालीन राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यूं तो साल भर यहां पर धार्मिक कार्यक्रमों की धूम बनी रहती है, लेकिन शिवरात्रि पर यहां आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है। कस्बा पाली के आसपास का क्षेत्र पुरातत्व पर्यटन स्थलों की खान माना जाता रहा है। सीढ़ियों को चढ़कर इस मंदिर तक पहुंचा जाता है। सीढ़ियों के दोनों ओर झरना भी बहता है। हालांकि यह विहंगम दृश्य बरसात के मौसम में ही देखने को मिलता है। ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर बहुत ही चमत्कारिक है। भक्तों का मानना है कि यहां जो नंदी मंदिर के बाहर विराजमान हैं, उनके कान में अपनी मनोकामना कह देने मात्र से ही वह पूरी हो जाती है।
    यह हुआ था चमत्कार
    मुगल शासन काल में जब औरंगजेब मंदिरों को तोड़ने का काम कर रहा था, औरंगजेब की सेना इस मंदिर को भी तोड़ने के लिए एवं भगवान की मूर्ति खंडित करने के लिए आई थी। औरंगजेब के सैनिक ने नीलकंठेश्वर की प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार से प्रहार कर दिया था। इससे प्रतिमा को चोट लगने वाले स्थान से दूध की धारा बह निकली थी। यह चमत्कार देख मुगल सेना भोलेनाथ को मन ही मन प्रणाम कर वहां से चली गई थी।
    यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस मंदिर के नीचे जो झरना साल भर रहता है। चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात। झरने का पानी कभी नहीं सूखता। यह पानी कहां से आता है? इस बात की भी जानकारी किसी को नहीं है। लेकिन इस पानी में इतना चमत्कार है कि जो भी इस पानी को लगातार सेवन करता है उसकी काया हमेशा निरोगी बनी रहती है।
    शिव की त्रिमुखी मूर्ति के नीचे है एक मुखी ज्योतिर्लिंग
    मंदिर में काले पत्थर पर भगवान की त्रिमुखी अद्भुत मूर्ति के दर्शन होते हैं। इस प्रतिमा को नवमी दशमी सती में चंदेल कालीन राजाओं ने बनवाया था। इससे मंदिर में शिखर नहीं है। मंदिर का वास्तु शिल्प देखते ही बनता है। मंदिर में भगवान शिव की त्रिमुखी प्रतिमा के नीचे फर्श पर एक मुखी ज्योतिर्लिंग स्थापित है। शिव भक्त इसे भगवान भोलेनाथ के अर्ध नारीश्वर रूप मानते हैं। त्रिमुखी महेश प्रतिमा व एकमुखी ज्योतिर्लिंग को हिंदू धर्म शास्त्री व पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है।
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