चरखा रो भेद बतादे कातन वाली नार charkha ro bhed bata de katan wali nar गायक भंवरनाथ जोगीरामनिवास राव

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  • čas přidán 13. 09. 2024
  • चरखा रो भेद बतादे कातन वाली नार charkha ro bhed bata de katan wali nar गायक भंवरनाथ जोगीरामनिवास राव
    1 इस भजन की पहली पंक्ति का अर्थ है जमीन के नीचे जल है और ऊपर स्थल भाग है स्थल भाग पर मानव जीवन की स्थापना हुई और मनुष्य के पास बुद्धि आती है तो बाद में ज्ञान आता है बुद्धि बेटी है और ज्ञान बाप है ।
    2 बुद्धि रूपी बेटी ज्ञान रूपी बाप से कहती है कि मेरे अजन्मा वर लाव अर्थात उस निराकार का नाम ला गुरू मंत्र जो लिखने मे नही आता है मतलब गुरू की सैन बता अगर गुरु मंत्र नहीं मिला तो थारो म्हारो ब्याह अर्थात बार बार जन्म लेना और मरना पङेगा मोक्ष नही होगा ।
    3 देराणी जेठाणी सुमति कुमति है सुमति = अच्छे विचार, कुमति = बुरे विचार। देवर मन है जो नणदल रूपी आत्मा को भटका देता है ।
    4 चरखो म्हारो रंग रंगीलो अर्थात चरखा अपने शरीर को कहा हैं और शरीर कई रंगों का होता है संत महात्मा बताते हैं कि इस धरती पर मनुष्य योनि चार लाख प्रकार की है पूणी लाल गुलाल मतलब दो प्रकार के स्वर चलते हैं सूर्य और चंद्र इस श्वासों की डोरी आकाश तत्व मे चलने वाली हवा से जुङी हुई है ।
    5 सासू ससुर घर भरतार भले ही सभी मर जाओ अर्थात काल क्रोध लोभ मोह अंहकार सभी मर जाओ लेकिन एक परमात्मा नही मरना चाहिए जिन्होंने हमे मानव जीवन दिया है ।
    6 चरखा चरखा तो सभी कहते हैं लेकिन इस चरखे रूपी मानव जीवन की सार्थकता क्या है महात्मा कबीर जी कहते हैं कि कि जिसनें मानव जीवन को समझ लिया उनका जन्म मरण मिट गया अर्थात मोक्ष हो गया
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