Bhagwad Geeta Shlok 3 - Duriyodhan Asking for Dronacharya's Help

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  • čas přidán 16. 11. 2023
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    पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
    व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥3॥
    दुर्योधन ने कहाः पूज्य आचार्य! पाण्डु पुत्रों की विशाल सेना का अवलोकन करें, जिसे आपके द्वारा प्रशिक्षित बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने कुशलतापूर्वक युद्ध करने के लिए सुव्यवस्थित किया है।
    दुर्योधन द्रोणचर्या के पास गए और कहा
    हे आचार्य पाण्डुपुत्रो की विशाल सेना को देखो
    जिसको आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्था किया है
    परम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोष को इंगित करना चाहता था
    अर्जुन की पत्नी द्रौपदी के पिता राजा द्रौपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था
    इस झगड़े के फल स्वरुप द्रौपद ने एक महान यज्ञ संपन्न कराया जिस से उसे ऐसे पुत्र का वरदान मिला जो द्रोणाचार्य का वध कर सके
    द्रोणाचार्य इसे भली भांति जानता था
    किंतु जब द्रौपद का पुत्र दृष्टद्युम युद्ध
    शिक्षा के लिए सौंपा गया तो द्रोणाचार्य
    ने उसे अपने सारे सैनिक रिहेस्या प्रदान
    करने में कोई आपत्ति नहीं है
    अब दृश्यद्युम क्रुक्षेत्र की युद्धभूमि में पांडवों
    का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से
    जो कला सीखी थी उसी के आधार पर रचना की थी
    दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की इस दुर्बलता को इंगित
    किया जिस से वे युद्ध में सजग रहे और समझोता
    ना करे इसके द्वार वो द्रोणाचार्य को ये भी बताना
    चाह रहा था कहीं वे अपने प्रिय शिष्य पांडवो के
    प्रति युद्ध में उदारता ना दिखा बैठे विशेष रूप
    से अर्जुन उसका अत्यन्त प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था
    दुर्योधन ने ये भी चेतवानी दी कि युद्ध मई इस
    प्रकार की उद्रता से हर भी हो सकती है

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