Shiv Katha || He Aadi Dev Mahadev || Bhagwan Shiv Katha || शिव कथा हे आदि देव महादेव || Pop Bhakti

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  • čas přidán 22. 08. 2024
  • Shiv Katha || He Aadi Dev Mahadev || Bhagwan Shiv Katha || शिव कथा हे आदि देव महादेव || Pop Bhakti
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    सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।
    भगवान शंकर को सौम्‍य और रौद्र दोनों रूपों में पूजा जाता है. भगवान शिव को त्रिदेवों में संहार का देवता माना जाता है. वैसे तो भगवान शिव को हमेशा कल्‍याणकारी माना जाता है, लेकिन वे लय और प्रलय दोनों को अपने अधीन रखते हैं
    शिव महापुराण में लिखा है कि भगवान सदाशिव से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई। सदाशिव ही भगवान शिव हैं और जब वे अवतार लेते हैं तो महेश नाम से जाने जाते हैं। इसका अर्थ ये हैं कि शिव स्वयंभू हैं, अर्थात स्वयं से उत्पन्न हुए हैं।
    अलग-अलग पुराणों में भगवान शिव और विष्णु के जन्म के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है जो कि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा, भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव, भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए हैं।
    शिव के जन्म की कहानी हर कोई जानना चाहता है। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे, तब एक जलते हुए खंभे, जिसका कोई भी ओर-छोर ब्रह्मा या विष्णु नहीं समझ पाए, से भगवान शिव प्रकट हुए। यदि किसी का बचपन है तो निश्चत ही जन्म भी होगा और अंत भी।
    भगवान भोले शंकर किस जाति के थे ? जैसे श्री राम क्षत्रिय थे, कृष्ण यादव थे।
    शैव मत के अनुयायी भगवान शिव को सर्वोपरि मानते हैं, तो वहीं वैष्णव मतावलम्बी श्री विष्णु को ही श्रेष्ठ मानते हैं।
    माता पार्वती हिंदू भगवान शिव की पत्नी हैं । वह पर्वत राजा हिमांचल और रानी मैना की बेटी हैं। पार्वती का जन्म स्थान उत्तराखंड के चमोली जिले में माना जाता है जहां उसे नंदा के रूप में पूजा जाता है और इसी कारण वहां हर 12 सालों में नंदा राजजात का आयोजन किया जाता है।
    डोनिगर के अनुसार, साहित्य के एक हिस्से में लिंगम को शिव का लिंग माना जाता है, जबकि ग्रंथों का एक अन्य समूह ऐसा नहीं मानता। पूर्व में कामुकता स्वाभाविक रूप से पवित्र और आध्यात्मिक है, जबकि बाद वाले में शिव की तपस्वी प्रकृति और त्याग को लिंगम का आध्यात्मिक प्रतीक माना जाता है।

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