GAANV VAPSI || गाँव वापसी || UTTARAKHANDI SHORT HINDI FILM || Pradeep Bhandari's Films
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- čas přidán 21. 03. 2020
- #गाँव वापसी_Pradeep_Bhandari's_Films
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों - दर्शक : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कगे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - रवांल्टा, जाड़भाषा, बंगाणी, मार्च्छा, तोल्छा, जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में मेंकुमइया, सोयार्ली, अस्कोटी, सीराली, खसपर्जिया, चौंग्खर्सिया, गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे गढ़प्रेमी संतुष्ट होंगें, धन्यवाद।
उत्तराखण्ड की खेती बाड़ी पर एक प्रेरणादायक फिल्म है "गांव वापसी"
दरअसल "गांव वापसी" एक ऐसी संदेशजनक फिल्म है जो पलायन के कारण वीरान एवं खाली हुए उत्तराखंड के गाँवों और गाँव में शेष रह रहे लोगों की पीड़ा को बहुत ही गराई व भावनात्मक रूप से दर्शाती है. गाँवों से न सिर्फ लोगों का पलायन हो रहा है बल्कि पुराने लोगों के स्वर्गवास हो जाने और वर्तमान पीढ़ी का सुविधाजनक शहरों में बस जाने के कारण केदारखंड और मानस खंड ( गढ़वाल - कुमाऊं) का वह दुर्लभ कृषि ज्ञान भी पलायन/ खोता होता जा रहा है, जिसे केदारखंड और मानस खंड के ऋषि स्वरूप हमारे पुरखों ने कठिन मेहनत और भारी अभावों में रहकर हासिल किया था. यही कृषि ज्ञान व पहाड़ की खेती की तकनीकी है कि जिसके चलते पहाड़ में आजतक कोई व्यक्ति भूख से नहीं मरा. यही नहीं पहाड़ का यही कृषि ज्ञान और फ़सल का ही असर रहा है कि केदारखंड और मानस खंड ( गढ़वाल - कुमाऊं) में लोगों के निकट बिमारी फटकती भी नहीं थी। क्यूंकि कोदा जो पहाड़ में बड़ी मात्रा में उगता है उसे फसलों का राजा माना जाता है, जिसमें सारे अनाजों से अधिक कैल्शियम होता है। कोदे की डिमांड आज विदेशों में भी बड़ी मात्रा में है. यह औषधी बनाने के काम भी आता है। इसी प्रकार गहत पथरी का इलाज करता है, झंगोरा पीलिया और शुगर की दवाई है. इसी प्रकार अनेकों अनेकों फसल हैं, फल हैं, सब्जियां हैं जो पौष्टिक, स्वादिष्ट और रोग रहित होती हैं। इसी प्रकार प्योर घी, दूध, दही और शुद्ध पानी तो पहाड़ के लिए विशेष वरदान है।
दोस्तों, कृषि ज्ञान और पारम्परिक खेती आज न केवल स्वस्थ जीवन देने में समर्थ हैं बल्कि रोजगार और पहाड़ से पलायन रोकने या शहरों से लोगों को वापस बुलाने की पूर्ण संभावनाओं से भरपूर है। आज कई होनहार युवकों ने मुठीभर रुपयों के लिए दूर शहरों में दूसरों के बर्तन धोने या दूसरों की गुलामी को लात मारकर दी है और वापस अपने गाँव में आकर अपने बंजर खेत या खाली पड़ी बंजर जमीन पर कड़ी मेहनत करके उन्हें उपजाऊ बनाकर उनके मुहं बंद कर दिए हैं जो कहते थे कि पहाड़ की भूमि तो बेकार है यहां कुछ नहीं उगता। जबकि ऐसे मेहनती युवावों की मेहनत के कारण आज वही बंजर जमीन सोना उगल रही है अर्थात वहां हर प्रकार की फसलें लहलरही हैं।
दोस्तों, इस फिल्म में आप जो कुछ भी देखेंगें वह सच है। फिल्म में आप जो भी फसल, मुर्गी फॉर्म, मछली पालन देखेंगें वह सचमुच एक ऐसे युवक द्वारा शहरों की नौकरी छोड़कर उगाई हुई है जो आज मिसाल के रूप में गिनी जाती है। और ऐसे ही अनेकों युवक उत्तराखंड में अन्य भी हैं। इस प्रेरणादायक फिल्म "गाँव वापसी" की कहानी या सन्देश कोई कल्पना नहीं है, बल्कि सत्य घटना पर आधारित है। अतः आप इस फिल्म का एक एक अंश विस्तारपूर्वक जरूर देखियेगा। अपने कमेंट्स लिखियेगा और फिल्म को शेयर भी कीजियेगा।
प्रदीप भंडारी, लेखक व निर्देशक।
Writer director - Pradeep Bhandari
assistance director - Vijay Bharti
Back Ground Music - Amit Verma
Song Music - Sanjay kumola.
Produce - Harjeet Singh
Camera - Soni Kothiyal
Editor - Nagendra Prasad
Singer - Meena Rana and Vijay Bharti
Main Cast - Sushma vyas, Viajy Bharti, Nagendra Prasad, Gambhir Jayada, Chandra veer Gaaytri, Ashok Negi, Vandna Dhashman. arun himesh, Harjeet Singh, O.D. Shrama. Vivek Dobriyal, Sunil kothiyal, Anil Rawat, Lkki, Daljeet Singh, Amit Rawat, Sunita Bhatt, Puja, Rekha Devi, laxmi Devi, Roshni Rawat, Varsha Rawat, Nandan Kandari, Rajesh Rawat, Banshi Lal Kathuliyal. - Hudba
जय मातृभूमि देवभूमि उत्तराखंड
आपका बहुत धन्यवाद।
बहुत अच्छी प्रस्तुति jai Uttarakhand
Bahut Sundar prastuti Jay Dev Bhumi Uttrakhand👏👏
Bahut Dhanyvad . Jai Devbhuni Uttarakhand.
बहुत सुंदर ऑर motivatniol वीडियो
बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है आपने पलायन जो अभिशाप बना है उसे रोकने क लिये।
आपने बहुत ही सरहनीय कार्य कर्म दिखाया जिससे पलायन रोकने के लिए एक मिसाल के रूप में काम आएगी
BAHUT DHANYVAD SANDY'S JI OR SOBAT SINGH JI
मैं भी एक किशान हुं जो भी आपने इस फिल्म में दिखाया है ये एक सचाई है पर आज मुझे दिल्ली में 30 साल अपने परिवार के साथ रहते हुए हो गये पर अपने आप को नहीं समझ सका जो आप की इस फिल्म ने समझा दिया
घर बौडी ऐजा 🙏🙏🙏🙏🙏
Bahut Bahut Dhanyvad Dinesh Ji.
Bahut sundar video dill chu liya
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर #कमेन्ट्स अवश्य करें तथा फिल्म को आगे #शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
बहुत ही बढिया प्रसतुति
आपका बहुत धन्यवाद।
Bahut achii movie h..
बहुत धन्यवाद मान्य।
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों - उत्तराखंड का युवा जो दूर परदेश में चंद रुपयों की ख़ातिर वेटर की नौकरी करता है, मगर एक दिन ऐसा मोड़ आता है कि उसके अंदर का स्वाभिमानी पहाड़ी एक ठेस के कारण जाग उगता है और वह गाँव जाकर सरकार की विभिन्न योजनावों का उपयोग कर अपनी पुश्तैनी बंजर जमींन पर फसलों रूपी ऐसा सोना उगाता है कि दुनिया के लिए एक मिशाल बन जाता है, गाँव के अनेक बेरोजगार युवक युवतियां भी उससे घर में ही रोज़गार पाते हैं, गाँव में हरयाळी और ख़ुशहाली की बयार छा जाती है। पलायन से वापस पहाड़ के गाँवों के आबाद की होने की किरण दिखाई देती है। इसके लिए वह युवक इस माधो कार्य के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के हाथों उत्कृष्ट कृषक" सम्मान पाता है।
साथियों, फ़िल्म दिल छूने वाली यह भावात्मक 37 मिनट की यह फ़िल्म आपको यूँ बांधेगी कि आपको यूँ लगेगा कि 5 -7 मिनट के गाने की तरह यह फ़िल्म कब खत्म हो गई है। आपसे विनम्र निवेदन है कि आजकल खाली समय का पूर्ण उपयोग करते हुए इस फ़िल्म का प्रत्येक डायलॉग जरूर सुनें, गाने और प्रत्येक सीन पर जरूर गौर कीजिये । फ़िल्म अच्छी लगे तो प्रदेश हित में बहुत मेहनत से बनाई गई इस फ़िल्म को प्रदेश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाने में आपसे भी अनुरोध है कि फिल्म को शेयर कर और यूट्यूब कमेंट्स में ही अपना कमेंट्स लिखकर अपना योगदान दीजियेगा।
हिन्दी में क्यों - दर्शक : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
Bohot badiya movie h bohot inspire karti h
बहुत बहुत धन्यवाद राहुल जी।
Atti सुंदर film khas ki jaise log ab ja rahe lock dawan pe
Sovhengen Jarur, Dhanyvad.
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर फिल्म को आगे शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
Mera naam Vinod negi h m 8saal se himanchal m job kr RHA hun aap SBI logon ka bhut bhut danywaad muje ye video bhut acha LGA m khud pahad lot RHA hun aur sab ko yhi bolunga aa ab lot chalen ganv ki tarf thankyou so much all of u
आपका बहुत धन्यवाद जी.
बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादयक।।।
Bahut Dhanyvad Bhartendra Ji.
Short garhwali film very nice touch in 💓
बहुत ही सुन्दर रचना है जी अपणी गढवाली बोली भाषा माँ और भी अच्छी होदी
बहुत धन्यवाद मान्य।
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों - उत्तराखंड का युवा जो दूर परदेश में चंद रुपयों की ख़ातिर वेटर की नौकरी करता है, मगर एक दिन ऐसा मोड़ आता है कि उसके अंदर का स्वाभिमानी पहाड़ी एक ठेस के कारण जाग उगता है और वह गाँव जाकर सरकार की विभिन्न योजनावों का उपयोग कर अपनी पुश्तैनी बंजर जमींन पर फसलों रूपी ऐसा सोना उगाता है कि दुनिया के लिए एक मिशाल बन जाता है, गाँव के अनेक बेरोजगार युवक युवतियां भी उससे घर में ही रोज़गार पाते हैं, गाँव में हरयाळी और ख़ुशहाली की बयार छा जाती है। पलायन से वापस पहाड़ के गाँवों के आबाद की होने की किरण दिखाई देती है। इसके लिए वह युवक इस माधो कार्य के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के हाथों उत्कृष्ट कृषक" सम्मान पाता है।
साथियों, फ़िल्म दिल छूने वाली यह भावात्मक 37 मिनट की यह फ़िल्म आपको यूँ बांधेगी कि आपको यूँ लगेगा कि 5 -7 मिनट के गाने की तरह यह फ़िल्म कब खत्म हो गई है। आपसे विनम्र निवेदन है कि आजकल खाली समय का पूर्ण उपयोग करते हुए इस फ़िल्म का प्रत्येक डायलॉग जरूर सुनें, गाने और प्रत्येक सीन पर जरूर गौर कीजिये । फ़िल्म अच्छी लगे तो प्रदेश हित में बहुत मेहनत से बनाई गई इस फ़िल्म को प्रदेश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाने में आपसे भी अनुरोध है कि फिल्म को शेयर कर और यूट्यूब कमेंट्स में ही अपना कमेंट्स लिखकर अपना योगदान दीजियेगा।
हिन्दी में क्यों - दर्शक : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
आपका बहुत धन्यवाद, फ़िल्म कुछ सन्देशजनक लगी हो तो कृपया फ़िल्म को शेयर अवश्य कीजियेगा।
Buhat badiya h ji
बहुत धन्यवाद मान्य।
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों - उत्तराखंड का युवा जो दूर परदेश में चंद रुपयों की ख़ातिर वेटर की नौकरी करता है, मगर एक दिन ऐसा मोड़ आता है कि उसके अंदर का स्वाभिमानी पहाड़ी एक ठेस के कारण जाग उगता है और वह गाँव जाकर सरकार की विभिन्न योजनावों का उपयोग कर अपनी पुश्तैनी बंजर जमींन पर फसलों रूपी ऐसा सोना उगाता है कि दुनिया के लिए एक मिशाल बन जाता है, गाँव के अनेक बेरोजगार युवक युवतियां भी उससे घर में ही रोज़गार पाते हैं, गाँव में हरयाळी और ख़ुशहाली की बयार छा जाती है। पलायन से वापस पहाड़ के गाँवों के आबाद की होने की किरण दिखाई देती है। इसके लिए वह युवक इस माधो कार्य के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के हाथों उत्कृष्ट कृषक" सम्मान पाता है।
साथियों, फ़िल्म दिल छूने वाली यह भावात्मक 37 मिनट की यह फ़िल्म आपको यूँ बांधेगी कि आपको यूँ लगेगा कि 5 -7 मिनट के गाने की तरह यह फ़िल्म कब खत्म हो गई है। आपसे विनम्र निवेदन है कि आजकल खाली समय का पूर्ण उपयोग करते हुए इस फ़िल्म का प्रत्येक डायलॉग जरूर सुनें, गाने और प्रत्येक सीन पर जरूर गौर कीजिये । फ़िल्म अच्छी लगे तो प्रदेश हित में बहुत मेहनत से बनाई गई इस फ़िल्म को प्रदेश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाने में आपसे भी अनुरोध है कि फिल्म को शेयर कर और यूट्यूब कमेंट्स में ही अपना कमेंट्स लिखकर अपना योगदान दीजियेगा।
हिन्दी में क्यों - दर्शक : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
20 shal se shochta hu vapash uttrakhand aau laekin aaj tak satal nahi ho paya jai shree ram jai uttrakhand vinod ji bahut achha
आपका बहुत धन्यवाद।
Bahut acha laga is film ko dekhkar mujhe bhi apne pungno ki yaad aagai vv nice jaroor log prabhawit honge Ghar ka rukh karenge Jai uttarakhand pahad
बहुत धन्यवाद आपका.
बहुत सुन्दर प्रस्तुतिकरण के लिए बहुत बहुत बधाई आभार जी । परन्तु सबसे बड़ी सच्चाई यह भी तो है कि इस बदलते बिना बारिश पानी ने सबकुछ हौसला उत्साह खत्म कर दिया है । सरकार चाहे तो सम्भावनाऐं जन्म ले सकती है । 🙏
जय हो यहां क्या नहीं हो सकता है जज्बा चाहिए बहुत अच्छा लगा ऊं नमः शिवाय मंत्र को जपना भगवान शिव सब भली करेंगे हीरा सिंह मेहरा बूंगा कोटयूडा गरुड़ बागेश्वर उत्तराखंड
मैं पूरी टीम को ऐसी प्रेरणादायक फिल्म बनाने के लिए बधाई देता हूं। हमारे कई उत्तराखंडवासी शहरों में नौकरी कर रहे हैं और Rs.10 000 से Rs.30,000 तक कमा रहे हैं। कई दयनीय जीवन जी रहे हैं। उन्हें कड़ी मेहनत करके आजीविका कमाने के लिए गाँवों में लौटना चाहिए - Kandpal
Bahut Bahut Dhanyvad Aadrniy MK ji.
Bahut achi video hai...jai bharat jai uttrakhand...
Aabhar.
बहुत सुंदर उत्तराखंड
Aapki Puri team ko mera sat sat naman
Best prarna gavvn wapsi
THANK YOU.
बहुत ही सुंदर संदेश #Ghughuti
Bahut Dhanyvad Ghughuti.
Bahut bahut badhai sundar prastuti sach me gauu jani ka man kar raha hai es movi ki dekhki lag raha ki sare logo ko fer se yek baar yesa jarur karna chahiye jAb sare log yese khuti bade karinge tabhi to bhgwan mihrban hoki varesh bhi karunge 🙏🙏
बहुत बढ़िया बात रीना जी। धन्यवाद।
Nice bhai logo bhut acha h aapka priyash
Super aao milkar aage bade desh chodkar gaon ki or chale aur fir se wahi masti aur hariyali wala jiwaan jiye jai uttrakhand
Jai ho Ashok Negi, the best actor of uttrakhand
आपका बहुत धन्यवाद।
Sahi chitran Kiya h sabhi chizo ka.. uttarakhand sansadhano se Kam nhi balki un manavo se Kam h Jo uske sansadhano ka sahi se istemal nhi Kar rhe h....
BAHUT DHANYVAD HIMANSHU RAWAT JI. BAHUT SATYA KAHA AAPNE.
Heart touching Film:-!💓....Jai Uttrakhand 🙏
Bahut Dhanyvad Pirthvee Ji.
Jay uttrakhand 💐💐💐
Sushmaa didi sach may bahut sunder didi..👌🏽👌🏽👌🏽😘😘
Bahut Dhanyvad Krishna Ji.
Dill ko chhune wali, bahut sundr short film👌👌
I congratulate whole team for making such inspirational movie. Our many Uttarakhandis are doing blue collar jobs in cities and earning between Rs.10000 to Rs.30000. Many are living pitiable life. It's advisable to return to villages and live life like king by doing hard work. With best wishes - MahenderKandpal.
So nice. Thank you.
F
Palain rokane mai mahan
Bahut acha msg milla film Ko dekh kar mera bhi apney pahad janey ka dill kar raha hai hum apney UK jayegay wahi self work karegay 👌
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर फिल्म को आगे शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
फिल्म अच्छी शिक्षाप्रद है।
पलायन करने वाले लोगों को इस फिल्म से सीख लेनी चाहिए
BAHUT DHANYVAD RAWAT JI.
Bhut sunder ji
Bahut he Sundar
Bahut hi achi film hai
Ye film hamare gaun me
bani h❤️
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका इस लघु फिल्म ने हमारा दिल जीत दिया जय देवभूमि जय उत्तराखंड
Bhut sunder parastuti :no words
बहुत सुंदर जी आगे भी जारी रखना उत्तराखंड को आगे बढ़ाने के लिए
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों - czcams.com/video/GpetPqo9ayI/video.html
#उत्तराखंड का युवा जो दूर परदेश में चंद रुपयों की ख़ातिर वेटर की नौकरी करता है, मगर एक दिन ऐसा मोड़ आता है कि उसके अंदर का स्वाभिमानी पहाड़ी एक ठेस के कारण जाग उगता है और वह #गाँव जाकर सरकार की विभिन्न योजनावों का उपयोग कर अपनी #पुश्तैनी बंजर जमींन पर फसल रूपी ऐसा सोना उगाता है कि दुनिया के लिए एक मिशाल बन जाता है, गाँव के अनेक बेरोजगार युवक युवतियां भी उससे घर में ही रोज़गार पाते हैं, गाँव में हरयाळी और #ख़ुशहाली की बयार छा जाती है। पलायन से वापस पहाड़ के गाँवों के आबाद की होने की किरण दिखाई देती है। इसके लिए वह युवक इस माधो कार्य के लिए प्रदेश के #मुख्यमंत्री जी के हाथों #"उत्कृष्ट कृषक" सम्मान पाता है।
साथियों, दिल छूने वाली भावात्मक 37 मिनट की यह फ़िल्म आपको यूँ बांधेगी कि आपको यूँ लगेगा कि 5 -7 मिनट के गाने की तरह यह फ़िल्म कब खत्म हो गई है। आपसे विनम्र निवेदन है कि आजकल खाली समय का पूर्ण उपयोग करते हुए इस फ़िल्म का प्रत्येक डायलॉग जरूर सुनें, गाने और प्रत्येक सीन पर जरूर गौर कीजिये । फ़िल्म अच्छी लगे तो प्रदेश हित में बहुत मेहनत से बनाई गई इस फ़िल्म को प्रदेश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाने में आपसे भी अनुरोध है कि फिल्म को शेयर कर और यूट्यूब कमेंट्स में ही अपना कमेंट्स लिखकर अपना योगदान दीजियेगा।
#हिन्दी में क्यों - दर्शक : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि #गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) #पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर #कमेन्ट्स अवश्य करें तथा फिल्म को आगे #शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
किलिक - czcams.com/video/GpetPqo9ayI/video.html
Bahut sundaer video dil se salam ho aap sabhi logo ko
Bahut Bahut Aabhar Janak Ji.
Gadwali मॉ AGR संवाद हेदू त् चार चांद लगी जांदा पर फिर भी आप लोग जब भी ये प्रकार की है फिल्म प्रदर्शन करा ला त् मैं ते विश्वास कि आप लोग अपनी मूल गढ़वाली भाषा मॉ जरूर आप लोग प्रदर्शित करा ला हमारा उत्तराखंड की जनता क बीच मा प्रस्तुत कर ला बहुत-बहुत धन्यवाद अपनी बोली विरासत यही हमारी पहचान छन यही हमारी यह हमारी संस्कृति छन आवा सभी और अपणी गढ़वाली भाषा ते एक नई उच्च देण कू संकल्प करा धन्यवाद (विजयपाल राणा -उत्तरकाशी)
आपका बहुत आभार। भाषा प्रेमियों का गुस्सा सहर्ष स्वीकार करता हूँ.
हिन्दी में क्यों - बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया फिल्म को शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
बहुत सुंदर मूवी हैं
Aa hh Kya bat h mja AA gya is filam ko dekhkar mja AA gya or haa aakho me aasu bhi aa gye mere to
BAHUT DHANYVAD NEERAJ JI.
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर फिल्म को आगे शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
Nice voids 👍👍👍👍❤️♥️♥️❤️♥️ Jai Uttarakhand
bhaut sunder film
Bahut Bhaut Dhanyvad Dinesh Ji.
Bahut sundar bhai logo logo🤗🙏🙏🙏🙏
Llllllllllll
Very nice kafi acha laga uttarakhand ko jagruk karne ki liye aap ka bahut bahut dhaniyabad
Bahut Dhanyvad Krishna Ji.
बहुत बहुत धन्यवाद धन्यवाद जय देव भूमि उत्तराखंड
आपका बहुत धन्यवाद।
गांव वापसी लघु फिल्म हमारे लिए एक प्रेरणा है।
Is short movie ke makers ko Mera Koti Koti Pranam
Rola diya Sach m bhout Sondra
बहुत धन्यवाद जी, आपकी सहमत हूँ, मैं खुद फिल्म में गढ़वाली की कमी महसूस क़र रहा मगर हिन्दी में क्यों बनायी इसका कारण निमन्वत है एक नजर जरूर डालें -
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
: बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
Very nice movie and concepts..we Uttarakhand.. think about your. Janambhoomi..
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
आपने उन लोगों के मुंह पर थप्पड़ मार दिया है जो लोग यह कहते हैं कि उत्तराखंड में कुछ नहीं है ! इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं| हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते है और हम वो सब सोच सकते है, जो आज तक हमने नहीं सोचा| 🙏🙏
आ अब लौट चले गाँव की ओर
जय हिंद जय उत्तराखंड
Ji Bahut Dhanyvad.
आपका बहुत धन्यवाद, फ़िल्म कुछ सन्देशजनक लगी हो तो कृपया फ़िल्म को शेयर अवश्य कीजियेगा।
bhut acchi movi h ye ise dekhne ke bad har Kisi ko perna milegi please mat chodo apni devbhoomi apna phad 🙏🙏🙏
बहुत धन्यवाद जी, आपकी सहमत हूँ, मैं खुद फिल्म में गढ़वाली की कमी महसूस क़र रहा मगर हिन्दी में क्यों बनायी इसका कारण निमन्वत है एक नजर जरूर डालें -
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
: बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा नेता और नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
Jai Hind
Jai Hind..
bhut sunder bhandari ji isi liye kehte hain anwle ka swad or budhyon ki baat baad m pta lagti super
बिलकुल ठीक बोली आपन बिष्ट जी.
Sort filam hai mager bahut hi achh lga dekh ke mai prabhu kedar nath ji prathna karunga ki sabhi apne gaun phir se wapas aaye
Bhaut khub jay kisan jay uk
Dhanyvad Sukhdev Ji.
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर फिल्म को आगे शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
बहुत ही अच्छा संदेश दिया है इस फिल्म में
इसमें सीखने के लिए बहुत कुछ है ।
प्रिय मनोज सागर जी. आप द्वारा फिल्म देखने और कलाकारों का उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद। आप हमारे पहाड़ की शान हो.
@@PBfilms बहुत-बहुत धन्यवाद सर लेकिन आपके प्रयासों के सामने हम बहुत छोटे से कलाकार हैं। अभी आपसे बहुत कुछ सीखना बाकी है ।
बहुत ही अच्छी फिल्म बनाई है आपकों बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें यह फिल्म पलायन करने वालों के लिए एक सुझाव है पलायन रोकेघर खेती में नगदी फसल पैदा कर अपना जीवन यापन करेगे आओ सब मिलकर पलायन रोके
Dil JEETI legi Bheji bahut achi story wa ..real ma hamara Garhwal be enhhi logo Ki jarurat cha YU Kam be HaaMI yuwa logo Thai Karna padalu
आपका बहुत धन्यवाद जी.
Really appreciate Mr. Vinod
Jaime Bharat jai uttarakhand
बहुत बहुत धन्यवाद जी।
Jai Bhadrinath ji ....Bhut hi sundar hai ..
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर #कमेन्ट्स अवश्य करें तथा फिल्म को आगे #शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
बहुत अच्छी फिल्म है इस फिल्म से बहुत सीख मिल रहा है सबको
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Real m aankhon m aashu AA gye
Thank You Ravi Ji
Bhut sundar kam sir
Thank you.
Jabardast palayan rokne ka acha idea
Thank you Mukesh Ji.
बहुत सुन्दर जय उत्तराखंड
Bahut Dhanyvad Kiran Ji.
Bahut hi sundar 🎉🎉🎉🎉
Bahut badiya ji salute hai aapko
बहुत सुन्दर फिल्म
आपका बहुत धन्यवाद जी.
Nice film jai uttarakhand 🙏🙏❤❤
आपका बहुत धन्यवाद।
Its an inspirational short movie . Well done .
अति उत्तम प्रस्तुती, बड़ी प्रेरणा भरीं।कार्य रूप मा ल्याण जोग ।
VERY GOOD
THIS IS ONE OF THE BEST
FOR THE PROGRESS OF OUR
UTTRAKHAND
Thank You Very Much Rawat Ji.
Bhut acha bhai please sir all help government yojna
बहुत अच्छी film बनाई है bhai जी
आपका बहुत धन्यवाद।
Nice movie
आपका बहुत धन्यवाद।
Very👌👌
Thanks 😊
Waaa negi ji kya bat chi .....पर नेगी जी केका मन मा गढ़वाली भाषा क़ु क्वे बिचार नई आयी ।।।।फिल्म त बहुत ही बढ़िया ची ।।।।।जय उत्तराखण्ड।।।।।जय पहाड़
बहुत धन्यवाद पहाड़ी बॉय जी, गढ़वाली भाषा को विचार टी आयी छौ पर विचार यु भी आयी कि कृषि अर पलायन को सन्देश सैरा उत्तराखंडियों तैं देंण। त अगर गढ़वाली मां ही बोला त ताब जौनसारी, रवांल्टा, मारछा अर कुमाऊँ का साधारण लोखु तैं समझ कनकै आलू. सादर। जै उत्तराखण्ड
खास गढ़वाली बोली भाषा में प्रस्तुत की गई होती। तो मज़ा कुछ अलग ही होता
आपका बहुत बहुत धन्यवाद। इस फिल्म का डिस्क्रेप्शन जरूर पढ़ने की कृपा करें।
Inspirational short movie 👍
Jai uttrakhand jai dev bhumi jai bhart
Bhut hi sundar movi bar bar dekhne ka mn kr ra 😪
"गाँव वापसी" इतनी अच्छी फिल्म बनायी पर हिन्दी में क्यों - दर्शक
जानिए क्यों -
हिन्दी में क्यों : बहुत सारे मित्रों ने यूट्यूब में फिल्म की जमकर तारीफ़ की है. साथ ही यह नाखुशी भी जताई कि गढ़वाली पृष्ट्भूमि की कथा वस्तु होने के बावजूद फिल्म हिन्दी में क्यों, तो पहले तो मैं इन सभी भाइयों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. मुझे अच्छा लगा कि आज भी भाषा को प्यार करने वाले गढ़प्रेमियों की कोई कमीं नहीं है, पर साथ ही इसका कारण भी बताता हूँ कि - क्यूँकि आज सम्पूर्ण पहाड़ (उत्तराखण्ड ) पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है। फिल्म का मकसद सम्पूर्ण उत्तराखंड के उन लोगों को वापस पहाड़ जाने एवं पुश्तैनी कृषि को पुनः करने के लिए प्रेरित करना है जो रोजगार के अभाव में पहाड़ छोड़ आये हैं और दूर प्रदेशों में मामूली से पैसों के लिए कष्टपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं ।
दोस्तों वैसे तो हमने पूर्ण वातावरण और टोन पहाड़ी ही रखा है, फ़िल्म की भाषा हिन्दी होने के बावजूद पूरा गढ़वाली "फ़ील" दे रही है फिरभी दोस्तों इसका मूल कारण बताता हूँ कि 'फ़िल्म को बनाने का मूल मकसद उत्तराखंडियों को अपनी कृषि और गाँव के प्रति आकर्षित करना है, प्रेरित करना है। लेकिन फ़िल्म में कहे जाने वाली बात आम लोगों समझ में आनी चाहिए। मगर दोस्तों जैसा कि हम जानतें हैं कि उत्तराखण्ड में #गढ़वाली, #कुमाऊंनी, #जौनसारी के अलावा गढ़वाल छेत्र में - #रवांल्टा, #जाड़भाषा, #बंगाणी, #मार्च्छा, #तोल्छा, #जौनपुरी तथा कुमाऊं छेत्र में #मेंकुमइया, #सोयार्ली, #अस्कोटी, #सीराली, #खसपर्जिया, #चौंग्खर्सिया, #गंगोली आदि लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक उपबोलियाँ बोली जाती हैं। इन भाषावों को बोलने वाले अधिकांश लोगों को गढ़वाली नहीं आती. जबकि यह फिल्म प्रदेश की 50 #लाख़ से अधिक हिन्दी भाषी गैर गढ़वाली #जनता तथा #नेता और #नौकरशाहों को दिखाना भी मकसद है. क्यूंकि इन सबका पहाड़ के प्रति ध्यान जगने से ही पहाड़ वापसी और विकास का सपना रफ़्तार से पूरा होगा। फ़िल्म को सभी देख सकें समझ सकें अतः इस उद्देश्य से फ़िल्म की भाषा हिंदी रखी है।
मुझे विश्वाश है कि इस ज़वाब से जरूर मेरे सारे मित्र, गढ़प्रेमी, फ़िल्म व संगीत प्रेमी प्रियजन संतुष्ट होंगें, धन्यवाद। कृपया विस्तार पूर्वक फ़िल्म देखकर फिल्म को आगे शेयर अवश्य आप अपना योगदान प्रदान करें। धन्यवाद।
प्रदीप भण्डारी, लेखक निर्देशक।
Very Good film
Bahut bahut dhaniywad sahi rasta Love my UK
आपका बहुत धन्यवाद।
Supeb movie
Aapne bohut bdiya movie bnai h
🙏🙏
Very beautiful videos vinod bhai
बहुत ही सुंदर
आपका बहुत धन्यवाद।
Bhandari bhai ji parnam🙏🙏 bahut hi badiya film per apdi bhasha ma hondi ta or bhi Anand aijandu👌👌
Feeling garhwal ki but hindi sun ke mitti ho gya
Nice video...superb..👌👌
Many many thanks
Heart touching movie
Mja AA gya
बहुत धन्यवाद मान्य।