पावस-गोष्ठी गुरु-पूर्णिमा | अशोक चक्रधर और साथी कवि । रंग-बिरंगी कविताएं। जयजयवंती फ़ाउंडेशन

Sdílet
Vložit
  • čas přidán 29. 07. 2021
  • आपके धैर्य को धन्यवाद। पावस गोष्ठी का हल्का-फुल्का संपादन हो गया। मैंने कहा था न, अनौपचारिक सी गोष्ठी है। इसमें श्रोता भी कवि ही थे। 2019 की गुरु-पूर्णिमा पर भोजनोपरान्त कविताएं सुनाई गई थीं। यह काव्य-गोष्ठी जयजयवंती के छोटे से सभागार में सम्पन्न हुई थी। आज यहां पहली बार अपलोड की जा रही है। आप कविताओं के साथ कवियों के आत्मीय संवादों का आनंद भी लीजिए। प्रस्तुति के क्रम में कवि-सूची निम्नलिखित है--
    1. सर्वश्री जैनेंद्र कर्दम, 2. मधु मोहिनी उपाध्याय, 3. डॉ. रश्मि, 4. चिराग जैन, 5. कुंवर रंजीत सिंह चौहान, 6. सुमित तोमर, 7. जयदेव जौनवाल, 8. रंजन निगम, 9. पवन दीक्षित, 10. दीपक गुप्ता, 11. रसिक गुप्ता, 12. देवेंद्र शर्मा, 13. विजय देव शर्मा, 14. डॉ. रोज़ मलिक देब, 15. राजीव वत्स, 16. सूरज मणि, 17. डॉ. विष्णु सक्सेना, 18. उर्वशी जान्ह्वी ऊर्जा, 19. क़ैसर ख़ालिद, 20. अरुण जैमिनी और 21. अशोक चक्रधर।
    वीडियो रिकार्डिंग एवं सम्पादन : मोहम्मद वसीम
    Facebook :- / ashokchakradhar
    Twitter :- / chakradharashok
    Official Website:- chakradhar.in/
    #paavasgoshthi #gurupurnima #kavyagoshthi #ashokchakradhar
  • Zábava

Komentáře • 6

  • @keshavdandriyal5558
    @keshavdandriyal5558 Před měsícem

    श्रेष्ठ कवियों की उत्कृष्ट रचनाएं सुन धन्य हुए।

  • @shivdadhichbikaner4945
    @shivdadhichbikaner4945 Před rokem +1

    Wha

  • @jagdishyadav1064
    @jagdishyadav1064 Před 2 lety +1

    बहुत ही बहतरीन काव्य गोष्ठी है गुरूवर्य चक्रधर सहाब को बहुत अरसे बाद सुन रहा हूँ. सफ़र जौनपुरी. नागपुर. महाराष्ट्र

  • @kuldeeppanwar2415
    @kuldeeppanwar2415 Před 2 lety +1

    गीतों में सच्च में एक मनमोहक खुशबू होती है , मन आह्लवादित हो गया , अशोक सर आपको बहुत बहुत धन्यवाद इन सुकून भरे लम्हों के लिए ।
    एक अपनी लिखी कविता भी आप तक पहुंचाना चाहता हूं सर ,शीर्षक है" निग़ाहों का खेल "
    "निगाहों का खेल"
    यहां सब निगाहों का खेल है ,
    कहीं छतो से चोरी छिपे झांकती वो प्रेम भरी निगाहें,
    कहीं नुक्कड़ पर चीर जाती है निगाहें ,
    दामन पर दाग देखती वो समाज की निगाहें,
    अपने दागी आईने को नजरअंदाज करती वो समाज की निगाहें,
    मुझे धर्म शिखलाती वो बूढ़ी निगाहें,
    धर्म के अपने निजी अर्थ निकालती वो बूढ़ी निगाहें,
    यहां सब निगाहों का खेल है ,
    काश के तेरे अन्दर के प्रेम को मैं समझ पाता ,
    वो जो तेरी निगाहों का प्रेम है,
    ना जाने क्यूं मेरी निगाहों से परे है ।।।

  • @sheetalbhardwaj2869
    @sheetalbhardwaj2869 Před 2 lety +1

    मनमोहक

  • @im.amritvani
    @im.amritvani Před 2 lety +1

    सर,
    मैंने आपके के शो 'सौ करोड़ का कवि' देखा जो मुझे बहुत अच्छा लगा👍,
    सर मैं भी इस कार्यक्रम में भाग लेना चाहता हूं,
    कृप्या बताए की कैसे भाग लें 🙏