Remembering Kaka Hathrasi -Naam Bade Aur Darshan Chhote | काका हाथरसी की नामों पर व्यंग्य करती कविता

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  • čas přidán 16. 09. 2022
  • Remembering Kaka Hathrasi on his Birth & Death Anniversary | काका हाथरसी की नामों पर व्यंग्य करती कविता
    मशहूर व्यंग्यकार और हास्य कवि काका हाथरसी का असली नाम था प्रभु लाल गर्ग। वो 'काका' के नाम से नाटक किया करते थे, इससे उन्हें ख़ासी प्रसिद्धि मिली, इसके बाद उन्होंने काका का नाम अपने लेखन में भी जोड़ लिया और हाथरस का होने की वजह से उनका नाम हो गया काका हाथरसी, जिनके एक-एक शब्द पर लोग हँस हँस कर लोट-पोट हो जाते थे। काका हाथरसी कवि सम्मेलनों कवि सम्मेलनों की जान थे, दूर-दूर से लोग उनकी कविताएं सुनने आया करते थे। 1985 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। काका को संगीत का भी ज्ञान था, उन्होंने संगीत कार्यालय की भी स्थापना की थी जो क्लासिकल संगीत की मैगज़ीन छापा करती थी।
    काका हाथरसी का जन्म 18 सितम्बर 1906 को हुआ और मृत्यु भी 1995 में 18 सितम्बर को ही हुई। उन्हें याद करते हुए उन्हीं की एक मज़ेदार लम्बी कविता आप तक पहुँचा रहे हैं। ये एक व्यंग्यात्मक कविता है - नाम बड़े और दर्शन छोटे। इसमें उन्होंने गहन दृष्टि डाली है और 108 नाम चुने हैं और ये बताया है कि कैसे लोगों का व्यक्तित्व/हालात/आचरण उनके नामों के विपरीत होता है। कविता के कुछ अंश जानबूझ कर शामिल नहीं किए गए हैं, पर आप उन्हें यहाँ डिस्क्रिप्शन बॉक्स में पढ़ सकते हैं।
    कलीयुग में कैसे निभे पति-पत्नी का साथ,
    चपलादेवी को मिले बाबू भोलानाथ।
    बाबू भोलानाथ, कहां तक कहें कहानी,
    पंडित रामचंद्र की पत्नी राधारानी।
    ‘काका’ लक्ष्मीनारायण की गृहणी रीता,
    कृष्णचंद्र की वाइफ बनकर आई सीता।
    अज्ञानी निकले निरे, पंडित ज्ञानीराम,
    कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम।
    रक्खा दशरथ नाम, मेल क्या खुब मिलाया,
    दूल्हा संतराम को आई दुलहिन माया।
    ‘काका’ कोई-कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा-
    पार्वतीदेवी है शिवशंकर की अम्मा।
    पूंछ न आधी इंच भी, कहलाते हनुमान,
    मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर-कमान।
    घर में तीर-कमान, बदी करता है नेका,
    तीर्थराज ने कभी इलाहाबाद न देखा।
    सत्यपाल ‘काका’ की रकम डकार चुके हैं,
    विजयसिंह दस बार इलैक्शन हार चुके हैं।
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Komentáře • 6

  • @esotericonetwork
    @esotericonetwork Před 4 měsíci +1

    70 के दशक के अंत में यह बहुत लोकप्रिय कविता थी

  • @esotericonetwork
    @esotericonetwork Před 4 měsíci +1

    भीड़ दास जी अकेले ही रहे

  • @nppandey7802
    @nppandey7802 Před rokem +1

    पत्नि जनेऊ कभी नहीं पहनती है

    • @poetrypal
      @poetrypal  Před rokem +1

      जी हाँ, जनेऊ सिर्फ पुरुष धारण करते हैं।
      इस कविता में तो कहीं भी जनेऊ का ज़िक्र नहीं हैं !!??