Aadhikalash om parvat Yatra 2023 | Haridawar ganga darshan | Route Jankari|

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  • čas přidán 22. 07. 2023
  • #Aadhikalash om parvat Yatra 2023 | Haridawar ganga darshan | Route Jankari|#HP 12 Devbhumi Himachal
    #Aadhikalash om parvat:-
    #Aadhikalash om parvat Yatra 2023 | Haridawar ganga darshan | Route Jankari|#HP 12 Devbhumi Himachal
    #आदि कैलाश यात्रा की जानकारी:- भगवान शिव के भक्तो के लिए कैलाश मानसरोवर की यात्रा करना मोक्ष प्राप्त करने के समान माना जाता है। भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते है। वर्तमान में कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सभी भारतीय नागरिको को वीजा लेना आवश्यक होता है हालांकि अगर आप भारत की सीमा में ही कैलाश मानसरोवर के दर्शन करना चाहते है तो आदि कैलाश यात्रा आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प है। भगवान शिव के पाँच कैलाश में शुमार आदि कैलाश भारत के उत्तर में स्थित उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है जिसे भी प्राचीन भारतीय वैदिक-पुराणों में कैलाश मानसरोवर के समान पुण्यदायक बताया गया है। भगवान भोलेनाथ के सबसे प्राचीन निवास स्थल के रूप में प्रचलित आदि कैलाश को कैलाश-मानसरोवर की प्रतिकृति माना जाता है जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तों को कैलाश-मानसरोवर का पुण्य लाभ प्राप्त होता
    #आदि कैलाश यात्रा
    उत्तराखंड में स्थित पिथौरागढ़ जिले में भारत-तिब्बत बॉर्डर पर हिमालयी वादियों के मध्य में स्थित आदि कैलाश समुद्रतल से 5,945 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। आदि कैलाश यात्रा के मार्ग में आपको बर्फ से ढके हुए पहाड़, आकाश को चूमते हुए शिखरों, आध्यात्मिकता से भरपूर नारायण आश्रम, कल-कल बहती हुयी काली गँगा, दैवीय शाँति एवं खूबसूरत नजारो से भरपूर प्रकृति के दर्शन होते है। आदि कैलाश यात्रा का मुख्य आकर्षण यहाँ स्थित ओम की आकृति वाले ॐ पर्वत (ओम पर्वत) का दर्शन है जहाँ आपको हिमालय पर्वत पर पवित्र ओम की आकृति के स्पष्ट दर्शन होते
    #आदि कैलाश का मुख्य तीर्थ, ओम पर्वत (Om Parvat)
    आदि कैलाश यात्रा आध्यात्मिक एवं रोमाँच से भरी तीर्थ यात्रा है जिसका मुख्य आकर्षण आदि कैलाश यात्रा के मार्ग में स्थित ॐ आकृति का ओम पर्वत है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस विश्व में ऐसे 8 पर्वत है जहाँ ॐ की आकृति अंकित है जिनमे में आदि कैलाश यात्रा में स्थित ओम पर्वत ही अब तक खोजा गया एकमात्र तीर्थ है !
    #Haridawar. ganga darshan:-
    #(History of Haridwar)
    हरिद्वार का इतिहास बहुत ही पुराना और रहस्य से भरा हुआ है | “हरिद्वार” उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र स्थलों में से एक है | यह बहुत प्राचीन नगरी है और उत्तरी भारत में स्थित है | हरिद्वार उत्तराखंड के चार पवित्र चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार भी है | यह भगवान शिव की भूमि और भगवान विष्णु की भूमि भी है। इसे सत्ता की भूमि के रूप में भी जाना जाता है | मायापुरी शहर को मायापुरी, गंगाद्वार और कपिलास्थान नाम से भी मान्यता प्राप्त है और वास्तव में इसका नाम “गेटवे ऑफ़ द गॉड्स” है । यह पवित्र शहर भारत की जटिल संस्कृति और प्राचीन सभ्यता का खजाना है | हरिद्वार शिवालिक पहाडियों के कोड में बसा हुआ है |
    पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे “हरिद्वार” का शाब्दिक अर्थ “हरी तक पहुचने का द्वार” है |
    हरिद्वार चार प्रमुख स्थलों का प्रवेश द्वार भी है | हिन्दू धर्मं के अनुयायी का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है | प्रसिद्ध तीर्थ स्थान “बद्रीनारायण” तथा “केदारनाथ” धाम “भगवान विष्णु” एवम् “भगवान शिव “ के तीर्थ स्थान का रास्ता (मार्ग) हरिद्वार से ही जाता है | इसलिए इस जगह को “हरिद्वार” तथा “हरद्वार” दोनों ही नामों से संबोधित किया जाता है |
    महाभारत के समय में हरिद्वार को “गंगाद्वार” नाम से वयक्त किया गया है | ( हरिद्वार का इतिहास )
    हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम “माया” या “मायापुरी” है | जिसकी सप्तमोक्षदायिनी पुरियो में गिनती की जाती है | हरिद्वार का एक भाग आज भी “मायापुरी” के नाम से प्रसिद्ध है | यह भी कहा जाता है कि पौराणिक समय में समुन्द्र मंथन में अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार में गिर गयी थी | इसी कारण हरिद्वार में “कुम्भ का मेला” आयोजित किया जाता है | बारह वर्ष में मनाये जाने वाला “कुम्भ के मेले ” का हरिद्वार एक महत्वपूर्ण स्थान है |
    हरिद्वार के इतिहास के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ऋषि कपिल मुनि ने तपस्या की थी | इसलिए हरिद्वार को “कपिलास्थान” नाम से संबोधित किया जाता है |
    हरिद्वार को ” हर की पौड़ी ” क्यों कहा जाता है और इसका महत्व क्या है ?
    हरिद्वार को हमेशा से ही ऋषियों की तपस्या करने के स्थान के रूप में माना जाता रहा है | राजा धृतराष्ट्र के मंत्री विदुर ने मंत्री मुनि के स्थान पर ही अध्यन किया था |राजा स्वेत ने “हर की पौड़ी” में भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की | जिससे भगवान ब्रह्मा तपस्या को देखकर खुश हुए और राजा स्वेत से वरदान मांगने को कहा | राजा ने वरदान में यह माँगा कि “हर की पौड़ी” को ईश्वर के नाम से जाना जाए | तब से “हर की पौड़ी” के पानी को “ब्रह्मकुंड” के नाम से जाना जाता है | हरिद्वार अपने आप में रोचक एवम् रहस्यभरी जगह है | इस जगह पर हर व्यक्ति का लिखा हुआ इतिहास ज्ञात हो जाता है |अपने पूर्वजो की जानकारी , वंशावली का पता करना , हो तो सिर्फ हरिद्वार ही एक मात्र ऐसा स्थान है | जो कि यह सब जानकारी प्राप्त करने में मदद कर सके | ( हरिद्वार का इतिहास )
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