ये दुनिया किसने बनाई? ईश्वर, भगवान, या असली बात कुछ और है? || आचार्य प्रशांत (2024)
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- čas přidán 16. 06. 2024
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#acharyaprashant
वीडियो जानकारी: 03.06.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
~ ये दुनिया किसने बनाई?
~ भगवान किसे कहा जा सकता है ?
~ ईश्वर किसे कहा जा सकता है ?
~ प्रकृति की परिभाषा क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते
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Aacharya ji is video ka part 2 laiye
Jisme hame finally kya Krna chahiye, clear ho ske
Vese thoda bhut clear to huva hai par confusion bhi h is video me
@@user-mt8se6wc9y आप सत्रों से जुड जाइए , आपको सब समझ में आ जायेगा, सत्रों से जुडने के लिए link ऊपर ही है 🙏🙏
Acharya ji ko pranaam! mera ek hi prashn hai jabse maine us video ki hinsakta ko dekha , main baar baar us zebra ki jagah apne aap ko dekh rha hoon uski jivit avastha mein hi aisi haalat dekh kar main thoda bhaybhit sa ho gya hoon acharya ji kripaya maargdarshan dein!
वेदों में शुरुआत होती है प्रकृति की पूजा से और अंत होता है प्रकृति से मुक्ति पर।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात्
हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं ईश्वर आचार्य जी को स्वस्थ और दीर्घायु जीवन दे
🙏🙏🙏 💐💐💐
जगत जीव से है और जीव जगत से, ये दोनों एक-दूसरे पर परस्पर आश्रित हैं🧍🏻♂️🌍🐵
❤
जिनका अहंकार पर बहुत विश्वास होता है, वो बाहर वाले ईश्वर पर चलते हैं और जो सत्य के पारखी होते हैं, वो भीतर वाले ईश्वर पर चलते हैं। भीतर वाले ईश्वर को ही आत्मा कहते हैं।
जगत जीव से है और जीव जगत से
ये दोनों एक - दूसरे पर परस्पर आश्रित हैं।
कबीर कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम।
गले राम की जेबरी, जित खिंचे तित जाऊं।।
संत कबीर जी ❤
जो मान्यतावादी होते हैं बड़े झूठे होते हैं, झूठ उनकी मजबूरी हो जाता है।
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ।।
- संत कबीर
ज्यों तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साई तुझ में है, जाग सके तो जाग।।
~ संत कबीर
ईश्वर माने वो निर्गुण, वो निराकार जो सब सगुण साकार को चला रहा है। स्वामी की तरह, चालक की तरह।
ये बहुत छोटा भेद होता है कि कौन ईश्वर को मानता है और कौन नहीं।
असली भेद ये होता है कि कौन ईश्वर को बाहर मानता है और कौन भीतर ..।
स्वयं को जानना ही भगवतता को प्राप्त करना है, वह कोई उपाधि, नहीं केवल स्वयं का विगलन मात्र है। अहंकार के विनष्ट होने पर जो रह जाए वही सत्य है। 🙏
आचार्य जी इस युग के संत हैं।🙏सभी लोग केवल सुने नहीं,जीवन में भी उतारें,तभी फ़ायदा होगा।
यथा संभव दान💸 करें।🫵कौन-कौन चाहता है आचार्य जी का चैनल 100✓Milion का हो।🥰
सभी दर्शक को विनंती है आचार्य प्रशांत जी के विङीयो मे जो सिध्दांतीक वाक्य और सुञ गुढ बाते कमेंट मे लिखा करे धन्यवाद
दुनिया हमारा ही तो प्रतिबिंब है, मतलब हमने ही बनाया है...
अहम जिसकी तलाश में है, अहम जो हो जाना चाहते हैं प्रकृति के माध्यम से उसे आत्मा बोलते हैं।
कोई नहीं मेरा जरूरत तेरी
लागे ना जिया देखूं ना जो सूरत तेरी
तू है तो दिल धड़कता है, तू है तो सांस आती हैं
तू ना तो घर घर नहीं लगता, तू है तो डर नहीं लगता
तू है तो गम ना आते हैं, तू है तो मुस्कुराते हैं..!
Love you acharya ji 🙏🌍😢❤❤❤
तू और तेरी जैसे शब्दों के लिए क्षमा 🙏🙏
चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय।
दुयै पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।
- संत कबीर
गीता, वेदांत,ईश्वर,भगवान ,दर्शन, ये सब आपने सिखा दिया हैं मगर हम इतने जलदी ये सब कैसे सिख जायेंगे, ..... आज तक सिर्फ फिल्मी दुनियां में घूमते थे.... सिर्फ. आप है जो अहम, आत्मा व्रती नीति ईमानदारी, इन सब से मिलवाया आपने, एक दिन हम ओ सब सिख जायेंगे जो आप हमे सिखना समझाना चाहते हैं, 🙏🙏🙏🙇♀️🙇♀️🍁🍁
👏💪
Haa🙏🪔💫
Voh ek din kisi vishesh din nhi aaega har din hi vishesh h or hme har din sikhna h smjhna h or behtr se behtr hona h👍🏻💪🏻
Acharya ji jab se apko sunana shuru kiya jeevan badlne lga....sir ghukakar shat shat naman......
@@dishayadav151 जी हमे हर रोज प्रयास करणा है, और जादा सीखने का समझने का , इसके लिए सत्रों से जुडना चाहीए मै जुड चुकी हूं, क्या आप भी जुड़े है, जुड़े है तो बहुत अच्छा, नही तो ये शुभ काम अभी करे और सत्रों से जुड़े 🙏🙏🙏
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
ऐसे घट घट राम है, दुनिया देखे नाही।।
~ संत कबीर
प्रकृति को प्रकृति ही चलता है ना की प्रकृति को कोई स्वामी भगवान इत्यादि इत्यादि चलाता है।
☄️और प्रकृति हमेशा गतिशील और परिवर्तनशील है जैसे हम भी और जो हम देख रहे हैं वह भी प्रकृति और मैं कल्पना कर रहा हूं वह भी प्रकृति है।
प्रकृति अपनी स्वामिनी स्वयं है।
प्रकृति को कोई नहीं चला रहा है वह स्वयं अपने को चलाती हैं।
प्रकृति अपने नियम से स्वयं चलती है।
प्रणाम अचार्य जी 🙏🙏🙏🙏
घाटे पानी सब भरे, अवघट भरे न कोय।
अवघट घाट कबीर का, भरे सो निर्मल होय।।
~ संत कबीर
आत्मा एक तरह से प्रकृति का पिता हुई: आचार्य जी❤❤❤❤
आचार्य प्रशांत जी सादर नमस्ते 🙏🙏 सुप्रभात मित्रों दोस्तों परिवार सत्य सनातन धर्म सत्य सनातन संस्कृति एवं तकनीकी शिक्षा निश्चित तौर तरीके से समझाया गया ज्ञान शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करें और अपने परिवार के सदस्य बच्चों को भी ये जानकारी देते रहें देवो के देव महादेव महादेव के देव सूर्य देव 🕉️🌞🙏🙏
धर्म की आरंभिक अवस्था में ईश्वर खोजा जाता है प्रकृति में
और धर्म जब आगे बढ़ता है, अध्यात्म बन जाता है।
अध्यात्म माने स्वयं में तलाशना तो फिर ईश्वर भीतर स्थापित हो जाता है।
-आचार्य प्रशांत
अहम लगातार संसार में खोंज रहा है तृप्ति, मुक्ति या अपना विगलन।
लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार
पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार
🙏🙏🙏🙏
आत्मा ही सत्य है और ईश्वर हे , सागर ही पूरा हे हमारे पास तो प्यास बुझाने के लिए कुछ बूंद की तलाश प्रकृति में क्यूँ करें।
बहुत सुंदर समझाया आचार्य जी ने ❤
सुप्रभातम शत् शत् नमन आचार्य श्री🙏🙏🙏 एवं समस्त श्रोतागण
आजकल हर किसी के जीवन में बहुत बैचैनी है हर कोई बाहर शांति को खोजने में लगा हुआ है मगर शांति तो हमारे अंदर है उसे जागृत करने की जरूरत है
❤❤❤❤❤💎💎💎💎💎
मृत्यु के बाद कुछ विशेष नहीं होता, मृत्यु के पहले भी प्रकृति का ही खेल खेल रहे हो और मृत्यु के बाद भी प्रकृति का ही खेल चलेगा।
आप सही बोल रही हो जी
प्रकृति ही ईश्वर हैं।🙏🙏🙏
हम जितने भीतर से दुखी होंगे उतना ही बाहर खुशी तलाशेंगे, लेकिन बाहरी दुनिया में सुख मिलता है नहीं, सही अध्यात्म ही सब दुखों का इलाज है 🙏🙏
प्रकृति की परिभाषा ही है वो जो अपने नियमों से स्वयं चलती हो।🌎🌎
आचार्य जी भारत व विश्व के लिए एक वरदान है, मानव जीवन का सही अर्थ जानने का सही समय आ गया है, अब नहीं तो कब नही. हमारा वास्तविक जीवन "श्री मद भागवत गीता " है ,यहीं सच्चा ज्ञान हम अपना जीवन बनाकर इस कलयुग में जो हमारी पशु समान वृत्ति है उसको त्याग कर चेतना को जाग्रत कर ऊंची स्थिति पर ले जा सकते है... अंततः ऊंची चेतना के आधार पर हमारी वृत्ति ही बाहर की संस्कृति बन जाती है..
जिसको तुम चेतना कहते हो वो भी प्रकृति मात्र है: आचार्य जी❤❤❤❤
जिसने निर्गुण होते हुए भी सगुण प्रकृति को बनाया और चलाया है उसे ईश्वर कह देते है। आचार्य जी❤❤
शुरुआत होता है धर्म का ईश्वर को बाहर मानने से.
अंत होता है अध्यात्म से ईश्वर को भीतर जानने से🙏
प्रकृति को चलाने वाला स्वयं प्रकृति ही है।
जगत और जीव है दोनों जड़ यही प्रकृति है
आस्तिक-नास्तिक कहने को अलग-अलग हैं।
वास्तव में दोनों एक ही हैं क्योंकि दोनों मान्यता पर चलते हैं।
-आचार्य प्रशांत
अध्यात्म को इतनी गहराई से समझाने के लिए आचार्य जी को बहुत बहुत धन्यवाद 😊😊🙏
❤❤❤ नमन आचार्य जी🙏🙏❤️❤ राम तेरी माया समझ ना आये 🙏🥰🥰🥰
तेरा साइ तुझ में है जाग सके तो जाग ❤❤❤
समुचे प्रकृति ही माया है, आत्मा मात्र सत्य है, तो प्रकृति का उद्भव कहा से हुआ, आत्मा
भीतर वाले ईश्वर को ही आत्मा कहते हैं,
Aacharya Shri Ji aapko Koti Koti Pranam💐🙏
आज आचार्य जी ने बहुत गहरी और सच्ची बात सामने रखी है धन्यवाद आचार्य जी 🙏
आज मैं अपने आस-पास धर्म के नाम पर कुछ और ही देख रहीं हूं वो सभी लोग सिर्फ सुनकर कुछ भी विश्वास करते है कुछ भी करेंगे अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए सिवाय खुद को जानने के और सिवाय आत्मज्ञान के, ना खोजेंगे ना पढ़ेंगे लेकिन सुनकर कुछ भी करेंगे
Dhanyawad Aabhar 🙏🙏🌈
जो ईश्वर को समझने लग गया वो भगवान कहलाता है: आचार्य जी❤❤❤
❤.....aapke shree charno me hamara pranam
वेदांत कहता है आत्मा मात्र सत्य है बाकी सब क्या है विपर्यय है: आचार्य जी❤❤❤❤
आचार्य जी को शत शत नमन ❤❤❤
प्रकृति ही ईश्वर है आचार्य जी❤❤
समुचि प्रकृति ही माया हैं,आत्म मात्र सत्य हैं।🙏🙏🙏
आचार्य जी के इस mission में हम सब को तन मन और धन से संपूर्ण समर्पण के साथ आगे बढ़ना है..यह हम सब का सर्वप्रथम कर्त्तव्य है कि यह गीता ज्ञान संपूर्ण विश्व तक जल्द से जल्द पहुंचाना है. क्यों कि अब ज्यादा समय नही है..
हम सब को यह प्रतिज्ञा करना है हमारा जो भी अपने पास धन पूजीं है सब इसी विश्व कल्याण के कार्य मे लगाकर अपना धन सही अर्थ मे सफल करना है..घर परिवार रिश्तेदार अन्य मित्र संबंध में ईन अज्ञानी अधर्मी विकारी लोंगो पर अपना धन खर्च न करें....
You simply explained the unexplainable.
I think this session is enough once and for all.
Ab Kuch bacha hi Nahi.
Thank you and sorry for commenting twice.
I can not refren myself.
तेरा साई तुझ में है , जाग सके तो जाग ।।
प्रकृति अपनी स्वामिनी खुद है: आचार्य जी🎉❤❤
चरण स्पर्श आचार्य जी🙏🙏🙏❤️❤️❤️
Jay Shree Krishna ❤️🙏 Dear Sir ❤️🙏🐣🐟🦇🐤🦉🐥🐐🌏🐪🐒🦌🥒🥦🌎🌍🐪🦛🦛
जिसको तुम जीवन समझ रहे हो वो मृत्यु ही है जिसको तुम चेतन कहते हो वो भी जड़ ही है: आचार्य जी❤❤❤❤🎉
अज्ञान के प्रकाश में अंधे कर्म सब त्याग दो।
निराश हो निर्मम बनो ताप रहित बस युद्ध हो।
Pranam Acharya Ji ❤
वेदांत इसीलिए श्रेष्ठ है की वो कुछ नही मानता। इतनी कड़ाई इतनी सख्ती: आचार्य जी❤❤❤❤
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤Acharya Ji ❤❤❤❤❤❤
जिसे तुम जीवन समझ रहे हो वो भी मिर्त्यु है जिसे तुम चेतन समझ रहे हो वो भी जड़ है 😌⚰️
❤
दृष्टा प्रकृति में समाप्ति ढूंढ रहा है: आचार्य जी❤❤
प्रकृति की परिभाषा है वो जो स्वयं को चलाती हो ।🙏🙏🙏
सब प्रकृति का खेल चल रहा है,उसी प्रकृति के एक छोर पर बैठा हुआ है,जीव और दूसरे छोर पर बैठा हुआ है जगत,
एक छोर पर बैठा हुआ है, अंहकार और दूसरे छोर पर बैठा हुआ है, संसार
और ये जो अहम् है, वो संसार में लगातार क्या खोज रहा है, मुक्ति, तृप्त,अपना विगलन अपनी समाप्ति,
एक फकीर से एक आदमी ने पूछा की मौत के बाद की जिंदगी के बारे में कुछ बताइए। तो वो हंसने लगा खूब जोर से और बोला की मौत से पहले भी जिंदगी होती है क्या? : आचार्य जी❤❤❤
विज्ञान का ईश्वर कहता है कि
प्रकृति के नियम ही प्रकृति को चलाते हैं तो प्रकृति के नियमों को ही हम
ईश्वर मानेंगे और फिर सबसे ऊपर अध्यात्म का ईश्वर अध्यात्म का ईश्वर कहता है कि प्रकृति स्वयं उद्भव है आत्मा से तो आत्माको ही ईश्वर माना जा सकता है किसी और को नहीं आत्मा ही ईश्वर हैl
अष्टावक्र कह रहे हैं जिसको यह बात समझ में आ गई वह क्या हो गया उसकी आशाएं मिट गई व निष्काम हो गया वह सदा के लिए शांत हो गया।
Right sir dhanyawad ❤
Pranam Acharya ji aapki Har baat deep Ander tak chot karta hai. Jo shanti pradaan karta hai.
Adavit life education by acharya Prashant jii ❤️❤️🔥🔥
24:35 प्रकृति का खेल:
दृष्टा और दृश्य
जीव और जगत
अहंकार और संसार
प्रकृति की परिभाषा ही है वो जो अपने नियमों से स्वयं चलती हो: आचार्य जी ❤❤❤❤
प्रकृति के दो भाग है एक दृष्टि दूसरा दृष्टा, ❤❤❤
Pranam acharya ❤
Love you aachariye ji ❤❤
Acharya ji aap ko koti koti naman 🙏
🌸🌸प्रणाम प्रिय आचार्य जी....🙏🏻🌸🌸
Thanks for this video ❤
Pranaam achary ji
वेदों की शुरुआत होती है- प्रकृति पूजन से और वेदों का अंत होता है प्रकृति से मुक्ति से।
-आचार्य प्रशांत
दृश्य+दृष्टा=प्रकृति
प्रणाम आचार्य जी 🙏🙏🙏
सर कृप्या आप अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखो, आपके बिना हम कुछ भी नहीं है अभी हमे आपके साथ की बहुत जरूरत है 🙏🙏🙏🙏
गुरु जी आप की चरणो में कोटि कोटि प्रणाम 🙏🚩❤️🕉️
असली भेद ये है कि कोई ईश्वर को कहां मानता है ❤❤❤
This session is very senstive and intresting l love Achrya ji ❤😊😊
बिलकुल सही कहा सर
जगत जीव से है और जीव जगत से, ये दोनों एक दूसरे पर परस्पर आश्रित हैं: आचार्य जी❤❤
Good morning ❤❤❤❤
Ishwar he atma h 🙏
प्रणाम आचार्य जी 🙏😌🎋🌱🌿🌻🐇🌳🥳🌍💫🔥🪔🙏
Subh prabhat guru ji