कौन है जीवन्मुक्त? कौन हैं क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ? || आचार्य प्रशांत, जीवन्मुक्त गीता पर (2020)

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  • čas přidán 10. 09. 2024
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    वीडियो जानकारी:
    विश्रांति शिविर, 7.3.20, अहमदाबाद, गुजरात, भारत
    प्रसंग:
    तत्त्व क्षेत्रं व्योमातीतमहं क्षेत्रज्ञ उच्यते ।
    अहं कर्ता च भोक्ता च जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥
    भावार्थ: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - इन पंचतत्वों से बना यह शरीर ही क्षेत्र है तथा आकाश से परे अहंकार ही क्षेत्रज्ञ है। यह मैं ही समस्त कर्मों का कर्ता और कर्मफलों का भोक्ता है । इस ज्ञान को धारण करने वाला ही वस्तुतः जीवन्मुक्त कहा जाता है।
    ~जीवन्मुक्त गीता (श्लोक ६)
    ~ जीवनमुक्त कौन है?
    ~ जीवनमुक्त कब होते हैं?
    ~ जीवनमुक्त होकर कैसे जिएं?
    ~ मुक्ति कौन चाहता है?
    ~ दुनिया में दुःख ज्यादा और सुख कम क्यों है?
    ~ क्या इसी शरीर के साथ मुक्त होकर जिया जा सकता है?
    ~ ऐसा कौन सा कर्म है जो परमानंद में लीन कर दे?
    ~ कोई भी घटना घटती है तो उसका भोक्ता कौन है?
    संगीत: मिलिंद दाते
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