भगवत गीता श्लोक 29 - भौतिक संसार की चेतना

Sdílet
Vložit
  • čas přidán 4. 04. 2024
  • #mahabharat #bhaktihriday #gitagyan
    sound of war/gitagyan/bhagwad gita/yatharoop geeta/ yatharoop gita/ shrimad bhagwat geeta yatharoop/ bhagavad gita yatharoop/ gita yatharoop
    वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।
    गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥२९॥
    वेपथुः - शरीर का कम्पन; च - भी; शरीरे - शरीर में; मे - मेरे; रोम-हर्ष - रोमांच; च - भी; जायते - उत्पन्न हो रहा है;गाण्डीवम् - अर्जुन का धनुष;
    गाण्डीव; स्त्रंसते - छूट या सरक रहा है; हस्तात् - हाथ से; त्वक् - त्वचा; च - भी; एव - निश्चय ही; परिदह्यते - जल रही है |
    मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है |
    हमारे शरीर में दो प्रकार का कम्पन होता है और रोंगटे भी दो प्रकार से खड़े होते हैं | ऐसा या तो आध्यात्मिक परमानन्द के समय या भौतिक परिस्थितियों में
    अत्यधिक भय उत्पन्न होने पर होता है | जब हम दिव्या साक्षात्कार की स्तिथि मै होते है तो हमे कोई भय नहीं होता | इस अवस्था में अर्जुन के जो लक्षण हैं वे भौतिक भय अर्थात् जीवन कि
    हानि के कारण हैं | अन्य लक्षणो से भी यह स्पष्ट है; वह इतना अधीर हो गया कि उसका धनुष गाण्डीव उसके हाथों से सरक रहा था और उसकी
    त्वचा में जलन उत्पन्न हो रही थी
    श्लोक का सार ये है की
    व्यक्ति भौतिक संसार की चेतना में रेहकर, व्यर्थ में भविष्य की क्रियाओ को लेकर संशय करता रहता है,
    परन्तु संशय करते करते वे ये भूल जाता है कि वो क्रिया अभी हुई भी नहीं है, और संशय करना सिर्फ व्यर्थ ही नहीं बल्की मुर्खता भी है.
    मनुष्य को चाहिए की वे न तो अपने किसी पूर्व अथवा भविष्य मे होने वाली घटनाओ के बारे मै सोचकर व्यर्थ मै प्रभावित ना हो और अगर आप इसको अपने जीवन का एक आधार मान लेते है तो आप एक चिंता मुक्त जीवन जीने मे सक्षम होंगे

Komentáře •