।।अथ बयालीसवां और तैतालीसवां शब्द-कबीर बीजक-सतधाम का स्वानुभव पर आधारित छंद रचना।।कबिरा खडा बाजार मे सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर हमारा। पंडित मिथ्या करो विचारा, ना सतधाम मे सृष्टी ना सिरजनहारा।।01।।थल स्थूल पवन नहि पावक, रवि शशि धरनी ना नीरा। ज्योति स्वरुपी काल निरंजन ना उहवां, वचन ना आहि शरीरा। कर्म धर्म कछु वो नहि उहवां, ना कछु मंत्र ना पूजा। संयम सहित भाव नहि एकौ, सो तो एक ना दूजा।।02।।गोरख राम एकौ नहि उहवां, ना वहाँ भेद विचारा। हरि हर ब्रम्हा नही शिव शक्ती, तिरथौ नही अचारा।।माय बाप गुरु जाके नाहि, सो दूजा कि अकेला। कहै कबीर जो अबकी समझै, सोई गुरु हम चेला।।03।।पंडित शोधि कहहुं समुझाई, जाते आवागमन नशाई। अर्थ धर्म और काम मोक्षफल, कौन दिशा बस भाई।।उत्तर दक्षिण पूरव पश्चिम, स्वर्ग पताल के माहे। बिना सतगुरु ठौर नहि कतहूं, नरक जात हो काहे।।04।।अनजाने को नरक स्वर्ग है, सारशबद अखण्ड धुन चित्त मे जाने को नाहि। जेहि डर को सब लोग डरत है, सो डर सतधामी संत को नाहि।।05।।पाप पुण्य की शंका नाही, स्वर्ग नरक नही जाही। कहत कबीर जी सुनो हो संतो, जिसके चित्त मे अखण्ड सारशबद चाले वह चित्त सारशबद माहि समाई, और अमर पद पाहि।।06।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी।।,,।।
सुपर भाई
जय हो जय हो सोहन निनामा
Jai gurucharan das ji ki
बहुत बढ़िया गाया🤞👌
Thanks
Super
😢😢😢😢... ... .. Gayuu❤
जय बाबा री सा,, एक मन मिला आत्मा से,, और आत्मा मिले परमात्मा से,, जय बाबा री,,
जय हो कोटि-कोटि नमन
😊
जय श्री राम
।।अथ बयालीसवां और तैतालीसवां शब्द-कबीर बीजक-सतधाम का स्वानुभव पर आधारित छंद रचना।।कबिरा खडा बाजार मे सबकी मांगे खैर। ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर हमारा। पंडित मिथ्या करो विचारा, ना सतधाम मे सृष्टी ना सिरजनहारा।।01।।थल स्थूल पवन नहि पावक, रवि शशि धरनी ना नीरा। ज्योति स्वरुपी काल निरंजन ना उहवां, वचन ना आहि शरीरा। कर्म धर्म कछु वो नहि उहवां, ना कछु मंत्र ना पूजा। संयम सहित भाव नहि एकौ, सो तो एक ना दूजा।।02।।गोरख राम एकौ नहि उहवां, ना वहाँ भेद विचारा। हरि हर ब्रम्हा नही शिव शक्ती, तिरथौ नही अचारा।।माय बाप गुरु जाके नाहि, सो दूजा कि अकेला। कहै कबीर जो अबकी समझै, सोई गुरु हम चेला।।03।।पंडित शोधि कहहुं समुझाई, जाते आवागमन नशाई। अर्थ धर्म और काम मोक्षफल, कौन दिशा बस भाई।।उत्तर दक्षिण पूरव पश्चिम, स्वर्ग पताल के माहे। बिना सतगुरु ठौर नहि कतहूं, नरक जात हो काहे।।04।।अनजाने को नरक स्वर्ग है, सारशबद अखण्ड धुन चित्त मे जाने को नाहि। जेहि डर को सब लोग डरत है, सो डर सतधामी संत को नाहि।।05।।पाप पुण्य की शंका नाही, स्वर्ग नरक नही जाही। कहत कबीर जी सुनो हो संतो, जिसके चित्त मे अखण्ड सारशबद चाले वह चित्त सारशबद माहि समाई, और अमर पद पाहि।।06।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी।।,,।।
❤
Bahut sundar 😊😊
Shivam.maida,,
❤❤❤❤😂😂😂😂😂😂
😢😂🎉🎉😢😮😅😊