अगर बनना है धनवान तो कैसा करें दान | रायपुर चातुर्मास प्रवचन 2022 | श्री ललितप्रभ जी

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  • čas přidán 15. 09. 2022
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    प्रस्तुति : अंतर्राष्ट्रीय साधना तीर्थ, संबोधि धाम, जोधपुर (राजस्थान)
    दुनिया में धनवान बनने का यदि कोई सबसे सरल तरीका है तो वह है- करो दान तो बनोगे धनवान। दुनिया में कम तभी होता है जब आदमी बचाकर रखता है, बढ़ता तभी है जब आदमी बांटना शुरू करता है। एक दिन छोड़कर तो सबको जाना है, पर यह सदा याद रखना- ‘खाया पीया अंग लगेगा, दान दिया संग चलेगा, बाकी बचा जंग लगेगा।’’
    आप सोच रहें होंगे कि क्या देने से भी आदमी का धन बढ़ता है? हमने तो यही देखा कि देने से आदमी का धन कम होता है। निकालोगे अंदर से माल तो पीछे जरूर कम होता है पर यह भी जान लो कि तुम्हारे पास देने के लिए भगवान ने केवल दो हाथ दिए हैं और जब भगवान तुम्हें देता है तो उसके पास दो नहीं हजारों हाथ होते हैं। इसीलिए यह दोहा जीवनभर याद रखिएगा- चीड़ी चोंच भर ले गई, पर नदि न घटियो नीर। दान दिया धन ना घटे, कह गए दास कबीर।
    मानव का जन्म लिया है तो हर आदमी यह मन जरूर बनाएं कि मैं भी अपने हाथों से शुभ दान, सुपात्र दान दूं, शुभ कर्म करूं, जो कुछ मैंने कमाया है क्यों न मैं उसे मानवता के-धर्म के कल्याण के लिए, क्यों न मैं श्रावक-श्राविका साधु-साध्वियों के कल्याण के लिए ज्ञान कोष में, क्यों न मैं जीव दया, अहिंसा धर्म की स्थापना के लिए और क्यों न मैं मरतों के प्राण बचाने के लिए अपने धन का पॉजीट्वि उपयोग कर लूँ।
    दान देने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं-
    धर्म के जितने मार्ग व चरण हैं, उन सबमें सर्वोपरि, सबसे सरल, सबसे हितकारी, लोककल्याण की भावना और मानवीय हितों से जुड़ा हुआ अगर कोई धर्म है तो वो है- दान का धर्म। प्रभु श्रीमहावीर ने धर्म के जो चार चरण- दान, शील, तप और भाव बताए, उनमें सबसे पहले है दान। क्योंकि यह वो काम है जो आदमी बड़े आराम से कर सकता है। अपने मन के इस भ्रम को हटा लीजिए कि दान देने के लिए आदमी को अमीर होना जरूरी है, किसी को दान देने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं है। केवल शुरुआत आपके हाथ से होनी चाहिए क्या दिया जा रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है, किस भाव व दशा के साथ दिया जा रहा है ये सबसे महत्वपूर्ण है। एक बार भाव दशा के साथ किसी ने खीर अगर किसी को दे दी तो उसकी तकदीर बदल जाती है।
    जीवन का सार दूसरों की भलाई है
    आज की खास बात यह है कि हम सब लोगों में देने की आदत जरूर होनी चाहिए। क्योंकि सरोवर हमें फल देते हैं, तरोवर हमें फल और छाया देते हैं, संतजन हमें ज्ञान व सन्मार्ग दिखाते हैं। मेघ कभी भी पानी अपने पास नहीं रखते, संतजन कभी-भी ज्ञान अपने पास नहीं रखते वे दूर-दूर चलकर लोगों के मन में ज्ञान दीप जलाते हैं। आदमी को अपने जीवन में यह संस्कार जरूर डाल लेना चाहिए कि मेरे पास जो है-जैसा है मैं एक बार अपने द्वारा भलाई के कार्यों के लिए जरूर समर्पित करूंगा। ‘अगर दूध का सार मलाई है तो हमारे जीवन का सार दूसरों की भलाई है।’ आपने अपने बच्चों को, अपने पोतों-पोतियों, नातियों को कितना दिया ये खास बात नहीं, किंतु परमार्थ, मानवता, दीन-दुखियों के कार्य में नि:स्वार्थ भाव से अपना कितना धन लगाया, खास बात ये है। दान पुण्य दो तरह के हैं- एक तो पत्थर में लिखा दो और एक परमात्मा के नाम लिखा दो। दानवीर राजा मेघरथ, भगवान नेमीनाथ, राजा हर्ष की दानवीरता, करुणा व त्याग के प्रसंगों से प्रेरित करते उन्होंने कहा कि दान में जो सुख-सुकून है वह और कहीं नहीं।
    दुनिया के सारे संत यह कह गए- तू देकर तो देख, तेरे धन में अगर अपरम्पार बढ़ोतरी न हो जाए कहना। लाखों-लाख सागर खाली हो जाएं, इतना पानी अब तक सागर से ऊपर बादलों तक जा चुका है पर यह देने की महिमा है कि सागर कभी खाली नहीं होता।
    पुण्य कमाकर साथ ले जाएं
    यह हरेक जानता है कि पैसा मेहनत से कमाया जाता है, पर किस्मत वाला वह होता है जो अपने पैसे को अच्छे कार्यों में लगाने का सौभाग्य प्राप्त करता है। देने का जो आनंद है, वह और कहीं नहीं, इस आनंद को ले लो। सारे महान कार्य, पुण्य के विराट कार्य मनुष्य की उदारता, विराट ह्दयता के बलबूते होते हैं। जो औरों के काम आता है, मानवता के कल्याण के लिए सत्कर्म करता है, महान वही होता है। पुण्य से आदमी पैसा कमाता है, पैसे से वापस आदमी पुण्य कमा सकता है। फर्क सिर्फ एक लाइन का है कि पुण्य से कमाया पैसा यहीं रह जाता है और पैसे से कमाया पुण्य साथ चला जाता है। एक बात तो तय है कि आखिर में सब कुछ यहीं छोड़कर जाना है, पर आदमी अगर बुद्धिमान है तो वह सब कुछ लेकर भी जाता है। लेकर जाने के तरीके भी हैं, बशर्तें आदमी को वह तरीका आ जाए। जैसे सागर भाप बनाकर पानी को ऊपर ले जाता है, ऐसे ही आदमी पुण्य कमाकर अपने साथ ले जाता है। मरने से पहले दान धर्म का पुण्य जरूर कर लेना वरना मरते समय पछतावे के अलावा आपके पास और कुछ नहीं होगा।
    रक्तदान न हो सका तो मरने के बाद नेत्रदान जरूर कर दो
    हम अपने जेहन में इस बात को जरूर उतारें, मैं अपने जीवन में कोई न कोई पुण्य का काम, सत्कर्म जरूर करूंंगा. चाहे अन्नदान कर दो भूखे का पेट भर दो, गरीब को वस्त्रदान कर दो, अगर कर सकते हैं तो गरीब जरूरतमंद को औषधि का दान कर दो, हो सके तो बच्चों को ज्ञान दो, उन्हें पढ़ाई के लिए किताबों का दान कर दो, हो सके तो उनकी पढ़ाई का जिम्मा उठा लो, और कुछ नहीं तो निर्माणाधीन धर्मस्थल, तीर्थ या मंदिर में श्रम दान जरूर कर दो।

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