आज हम गये डांडा नागराजा 🙏🚩||
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- čas přidán 14. 06. 2024
- आज हम गये डांडा नागराजा 🙏🚩🚩|| और ढोल दमो की रस्यण 🥁🚩#daliyvlog #pahadilifestyle
This Vlog all about Danda Nagraja temple. उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले में स्थित डांडा नागराजा मंदिर अपनी अद्वितीय कथाओं और मान्यताओं के लिए भक्तगणों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी प्रसिद्द है । बनेलस्युहं पट्टी में स्थित यहमंदिर पौड़ी से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्रमें भगवान श्रीकृष्ण जी के इस अद्वितीय अवतार नागराजा की बहुत मान्यता है। पूरेपौड़ी जिले और गढ़वाल क्षेत्र में कृष्ण जी का यह मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है।पौड़ी शहर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर अदवानी - बगानीखाल मार्ग पर यहमंदिर पड़ता है। गढ़वाल क्षेत्र में भगवान कृष्ण जी के अवतारों में से एक नागराजा,देवशक्ति की सबसे ज़्यादा मान्यता है। वैसे तो देव नागराजा का मुख्य धाम उत्तरकाशी
के सेममुखेम में है पर कहा जाता है कि सेममुखेम और यह मंदिर दोनों एक समान हीहैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण को यह जगह खूबभा गई थी, जिससे उन्होंने यहाँ नाग का रूप धारण करके लेट-लेट कर यहाँ की परिक्रमा की, तभी से मंदिर का नाम डांडा नागराजा पड़ गया। नाग और साँपों कोमहाभारत में महर्षि कश्यप और दक्ष प्रजाति पूरी कद्रू का संतान बताया गया था। मध्यहिमालय में नागराजा, लौकिक देवता के रूप में पुराकाल से ही परिचित हैं।काफल, बांज और बुरांस के घने पेड़ों से घिरा यह मंदिर पौड़ी जिले के प्रमुखआकर्षणों में से एक है। यह मंदिर पहाड़ी की ऊँचाई पर स्थित है, जहाँ से माँ चन्द्रबदनी (टिहरी), भैरवगढ़ी (कीर्तिखाल), महाबगढ़ ( यमकेश्वर), कंडोलिया (पूरी) की पहाड़ियों का सुन्दर दृश्य साफ़ नज़र आता है। यहाँ के मूल निवासियों का कहना है कि,मंदिर की स्थापना लगभग 140 साल पहले हुई थी । डांडा नागराजा, कोट विकास क्षेत्र के चार गाँव- नौड, रीई, सिल्सू एव लसेरा का प्रसिद्द धाम है जिसका इतिहास 140 साल पुराना है। यहाँ की मान्यता के अनुसार 140 साल पहले लसेरा में गुमाल जाति के पास एक दुधारू गाय थी जो डांडा में स्थित एक पत्थर को हर रोज़ अपने दूध से निलहाती थी जिसकी वजह से घर के लोगों को उसका दूध नहीं मिल पाता था इसलिए गुस्से में आकर गाय के मालिक ने गाय के ऊपर कुल्हाड़ी से वार किया। जिसका वार गाय को कुछ नहीं कर पाया और सीधा जाकर उस पत्थर पर लगा, जिसकी वजह से वह पत्थर दो भागों में टूट गया और इसका एक भाग आज भी डांडा नागराजा में मौजूद है। इस क्रूर घटना के बाद गुमाल जाती पूरी तरह से समाप्त हो गई। यहाँ हर साल अप्रैल के महीने में बैशाखी के अगले दिन 13 और 14 तारीख को भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर की भव्यता इस मेले के दौरान देखने लायक होती है। इस भव्यता के दर्शन करने दूर-दूर से हज़ारों की संख्या में भक्तों का हुजूम उमड़ता है। इस मेले के दौरान हर साल मंदिर के पुजारी बदलते हैं। लोग नागराजा देवता को ध्वज और घंटी अर्पित करते हैं। महिलाएं शोभायात्रा निकाल इस मंदिर में
पहुँचती हैं। यहाँ लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर घंटी बांधते हैं। आज आप यहाँ हज़ारों की संख्या घंटियों को बंधे हुए पाएंगे जो मंदिर की खूबसूरती के महत्वपूर्ण आकर्षण हैं। यह अद्भुत मंदिर विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। हर साल यहाँ विदेशी पर्यटक मंदिर की अद्भुत्ता और महत्ता को जानने आते हैं और मंदिर की परंपरा 'अनुसार घंटी पर अपना नाम लिखकर मंदिर के परिसर में बांधते हैं। मंदिर में पूजा करने के बाद पेड़ों की ठंडी छांव में बैठना एक अद्भुत अनुभव का एहसास कराता है।
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❤❤ very nice
Bahut badiya vlog jai danda nagraja ...
Thank you bhai Jai danda nagraja 🙏🙏🚩
Jai danda nagraja🙏 superb vlog Rohit keep it up
Thank you di 😊😊
jai shri danda nagraja 🙏🙏🙏 beutiful vlog and thanks rohit beta for sharing this spritual journey of danda nagraja temple. wish you all the best 👌👌
Thank you 🙏🙏🙏😊
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Thank you 😊