नवरात्रि में कन्या पूजन कैसे करें, कि आपको मिले अपनी पूजा का पूरा फल ❤❤,

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  • čas přidán 7. 09. 2024
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    नमस्कार दोस्तों ,
    मेरे चैनल में आपका स्वागत है
    आज हम जानेंगे कि अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन कैसे करें.
    नवरात्रि की अवधि में 9 दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. इन नौ दिनों में से अष्टमी और नवमी तिथि को सबसे खास माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं, अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन कैसे करें.
    नवरात्रि में कन्या पूजन का खास महत्व है. ऐसा इसलिए क्योंकि कन्याएं देवी दुर्गा के स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं. साथ ही कन्याएं मां लक्ष्मी का भी स्वरूप मानी जाती हैं. कन्या पूजन का यह अनुष्ठान आमतौर पर अष्टमी व नवमी तिथि पर किया जाता है, लेकिन कई लोग इसे नवरात्रि के अन्य दिनों पर भी कर लेते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने राक्षस कालासुर को हराने के लिए एक युवा लड़की के रूप में अवतार लिया था. इसलिए नवरात्रि पर कन्या पूजन को बेहद शुभ माना जाता है.
    कई जगहों पर कन्या पूजन को कंजक पूजा के नाम से भी जाना जाता है. इस दौरान 9 छोटी लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ अवतारों के रूप में पूजा जाता है, जिन्हें नवदुर्गा भी कहते हैं. तो आइए जानते हैं कन्या पूजन विधि और इससे जुड़ी कुछ बातें.
    नवरात्रि में कन्या पूजन कैसे करें?
    महाअष्टमी या नवमी के दिन स्नान आदि करने के बाद भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा करें.
    इसके बाद कन्या पूजन के लिए 9 कन्याओं और एक लड़के को भी आंमत्रित करें.
    पूजा की शुरुआत कन्याओं के स्वागत से करें.
    इसके बाद सभी कन्याओं के साफ पानी से पैर धोएं और साफ कपड़े से पोछकर आसन पर बिठाएं.
    फिर कन्याओं के माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं.
    इसके बाद गाय के उपले को जलाकर उसकी अंगार पर लौंग, कर्पूर और घी डालकर अग्नि प्रज्वलित करें.
    इसके बाद कन्याओं के लिए बनाए गए भोजन में से थोड़ा सा भोजन पूजा स्थान पर अर्पित करें
    इसके बाद कन्याओं के हाथ में कलावा या मौली बांधें.
    एक थाली के में घी का दीपक जलाकर सभी कन्याओं की आरती उतारें.
    आरती उतारने के बाद कन्याओं को भोग में पूड़ी, चना, हलवा और नारियल खिलाएं.
    भोजन के बाद उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार भेंट दें.
    आखिर में कन्याओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद जरूर लें.
    अंत में उन्हें अक्षत देकर उनसे थोड़ा अक्षत अपने घर में छिड़कने को कहें.
    कन्या पूजन का महत्व
    कन्या पूजन कन्याओं का सम्मान करने और पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार,
    कन्या पूजन के लिए दो से दस साल तक की कन्या उपयुक्त होती हैं.
    दो से दस साल तक की कन्याएं मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं.
    दो वर्ष की कन्या को कुमारी माना जाता है।
    तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का स्वरूप मानी जाती है। त्रिमूर्ति यानी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का स्वरूप।
    चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है।
    पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा जाता है।
    छह वर्ष की कन्या को माता कालिका का रूप माना जाता है।
    सात वर्ष की कन्या को चंडिका माता माना जाता है।
    आठ वर्ष की कन्या को शाम्‍भवी कहा जाता है।
    नौ वर्ष की कन्या को देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।
    दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है।
    इसके अलावा लंगूर के रूप में एक लड़के को भी इस पूजा में शामिल किया जाता है,
    जिसे भैरव बाबा या हनुमान जी का प्रतीक कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा आपके परिवार पर सदा बनी रहती है.
    कन्या पूजन में हमें इन बातों का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए
    कन्‍या भोज और पूजन के लिए कन्‍याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित करना चाहिए।
    गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ स्वागत करें और मातृ शक्ति का आवाह्न करें।
    कन्याओं की उम्र 2 तथा 10 साल तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए। जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है।
    जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
    आशा है आप को वीडियो पसंद आया होगा .आप सभी का धन्यवाद, माता रानी की कृपा आप सभी पर बनी रहें

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