Sukhmall Bakliwal
Sukhmall Bakliwal
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ARAINA JAIN 2018 FEBRUARY (4 years old) कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
व्याख्या :- इस कविता में मानव जीवन के कठिन परिस्थितियों में साहस और धैर्य के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी गई है। कठिन परिस्थितियों से डरकर हमारी जीवन रूपी नौका पार नहीं हो सकती उस परिस्थिति में हमे मन लगाकर व दृण निश्चय होकर प्रयत्न करना चाहिए ।
जिस प्रकार एक एक छोटा चीटी दाना लेकर दिवाल पर चढने की कोशिश कर रही, लेकिन बार बार फिसलने के कारण वह निचे गिर जाती है फिर भी उनके मन में आशा है कि मैं चढ़ जाऊगी। और वह बार-बार प्रयत्न करती रही। और अंतत: उसकी मेहनत बेकार नहीं गयी और वह चढ़ ही गयी। इसलिये कवि ने कहाँ है कोशिश (प्रयत्न) करने वालो की हार नही होती।
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
व्याख्या :- इस पंक्ति मे कवि यह बताना चाह रहा है की यदि कोई व्यक्ति किसी काम में असफल हो रहा है तो उन्हें हार नहीं माननी चाहिए। उन्हें एक चुनौती समझ कर स्वीकार कर लेना चाहिए । और जिस कमी के कारण वह असफल हो रहा उसे अपने अंदर देख कर सुधार लेना चाहिये, और पुन: कोशिश करनी चाहिये। एवं तब तक कोशिश करनी चाहिये, जब तक कामयाब न हो जाये, भले ही इसके लिये तुम्हे अपनी नींद, चैन त्यागनी पडे, क्योंकि कुछ किए बिना नाम नहीं होता ।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
व्याख्या:- इस पंक्ति में कवि ने बताया है कि इस संसार रूपी सागर में सभी व्यक्ति डुबकियां लगाते हैं। यानी सभी अपना कर्म करते हैं। लेकिन सब को उनके कर्म के अनुसार फल नही मिल पाता है। अर्थात उन्हे जल्दी सफलता नहीं मिलती। लेकिन हर बार व अधुरे नही होते, अब की बार उनके पास एक और तजुर्बा होता है। और वही कार्य बार- बार करने से उत्साह और बढ़ता है। और अंतत: वह सफल हो जाता है।
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णमोकार महामंत्र
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णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं। णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं। यह नमस्कार महामंत्र सर्वोत्कृष्ट मंत्र है, मंत्राधिराज है। नमस्कार महामंत्र सर्वदा सिद्ध मंत्र है। इसमें समस्त रिद्धियां और सिद्धियां विद्यमान हैं। णमोकार महामंत्र को जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्य...
विनती1new
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विनती1new
जिह्वां पर हो नाम तुम्हारा प्रभुवर ऐसी भक्ति दो सम भावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो
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जिह्वां पर हो नाम तुम्हारा प्रभुवर ऐसी भक्ति दो सम भावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो किन जन्मों में कर्म किए थे आज उदय में आएं हैं कष्टों का कुछ पार नहीं है मुझपर वो मंडराएं है डिगे न मन मेरा समता से चरणों में अनुरक्ति दो सम भावों से कष्ट सहुं बस मुझमें ऐसी शक्ति दो कायक दर्द भले बढ़ जावे किन्तु मुझमें क्षोभ ना हो रोम रोम हो पीड़ित मेरा किंचित मन मे क्षोभ ना हो दीन भाव नहीं आवे मन में ऐ...
ALOCHANA PATH आलोचना पाठ श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा
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प्रस्तुति परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की शिष्या आर्यिकारत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा आलोचना पाठ दोहा बंदों पाँचों परम-गुरु , चौबीसों जिनराज । करूँ शुद्ध आलोचना , शुद्धिकरण के काज॥१॥ सखी छन्द सुनिये जिन अरज हमारी , हम दोष किये अतिभारी । तिनकी अब निर्वृति काज , तुम सरन लही जिनराज ॥ इक-वे-ते-चउ इंद्री वा , मन - रहित सहित जै जीवा । तिनकी नहिं करुणा धारी , निरदइ हवै घात विच...
NIRVANKAND PAATH निर्वाणकाण्ड भाषा प्रस्तुति आर्यिकारत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा
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निर्वाणकाण्ड भाषा प्रस्तुति परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की शिष्या आर्यिकारत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा श्री आदिनाथ भगवान की जय आचार्य श्री गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की जय वीतराग वंदौं सदा, भावसहित सिरनाय। कहुँ काँड निर्वाण की भाषा सुगम बनाय॥ अष्टापद आदीश्वर स्वामी, वासु पूज्य चंपापुरनामी। नेमिनाथस्वामी गिरनार वंदो, भाव भगति उरधार ॥१॥ चरम तीर्थंकर चरम शरीर, पावापुरी स...
गहरी नदियां दूर किनारे
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पुर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। गहरी नदियां दूर किनारे पथ एकाकी आप सहारे प्रभु जी तुमसे आश लगायें कब से खड़े है द्वार तिहारे गहरी नदियां दूर किनारे पथ एकाकी आप सहारे प्रभु जी तुमसे आश लगायें कब से खड़े है द्वार तिहारे गहरी नदियां दूर किनारे कर्मों की गलियों में देखा पा...
तुझमें ही दर्शन ज्ञान है तु अनन्त गुण की खान है
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पूर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। तुझमें ही दर्शन ज्ञान है तुझमें ही दर्शन ज्ञान है तू अनन्त गुण की खान है अहो चेतना अब चेत जा अब चेत जा अहो चेतना तुझमें ही दर्शन ज्ञान है तु अनन्त गुण की खान है अहो चेतना अब चेत जा अब चेत जा अहो चेतना तुझमें ही दर्शन ज्ञान है तू अनन्त गु...
जिनवाणी का कहना है आत्म सुख का झरना है
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पूर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। जिनवाणी का कहना है आत्म सु का झरना है शाश्वत आनंद पाना है तो अंतर दृष्टि करना है जिनवाणी का कहना है शुद्ध नहीं हो पाया तो तू सिद्धो की भक्ति करता चल । शुद्ध नहीं हो पाया तो तू सिद्धो की भक्ति करता चल राग करें या द्वेष कोई समता रस को पीता...
जैसे तैसे जिन्दगी जीते रहें
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पूर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। जैसे तैसे जिन्दगी जीते रहें जैसे तैसे जिन्दगी जीते रहें ज्ञान बिन भव-भव भ्रमण करते रहें जैसे तैसे जिन्दगी जीते रहें ज्ञान बिन भव भव भ्रमण करते रहें जैसे तैसे जिन्दगी जीते रहें सिद्ध पद पाने की उम्मीदें लिये सिद्ध पद पाने की उम्मीदें लिये...
राग पर से जो किया तुमने तो क्या पाओगे
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पूर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। राग पर से जो किया तुमने तो क्या पाओगे राग पर से जो किया तुमने तो क्या पाओगे कर्मों के वन में तुम युं ही भटक जाओगे ! राग पर से जो किया तुमने तो क्या पाओगे क्युं स्वयं को ही हम युं परेशान करें अपने ही ज्ञान से क्युं पर की पहचान करें ज्ञान ...
मेरी श्रद्धा ने चुना है तुमको दुनियां देखकरतुमको पुजा तुमको ध्याया भाया दर्श किया जब तेरा गुरूवर
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पूर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। तुमको पुजा तुमको ध्याया दर्श किया जब तेरा गुरूवर कोई नहीं फीर भाया तेरी शरण में आया तेरी शरण में आया तेरी भक्ति में अनन्त सु समाया है अपने में ही अपना परमात्मा नजर आया है मेरी श्रद्धा ने चुना है तुमको दुनियां देखकर मेरी श्रद्धा ने चुना ह...
तेरा सुख तुझमें ही रहा ऐसा श्री जिनवर ने कहा
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पुर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। तेरा सु तुझमें ही रहा ऐसा श्री जिनवर ने कहा तेरा सु तुझमें ही रहा ऐसा श्री जिनवर ने कहा आ निज में आ ओ मेरी चेतना आ निज में आ ओ मेरी चेतना अवसर अपुर्व आया प्रभुवर की मान लें अब भेद ज्ञान करके आत्म को जान लें अवसर अपुर्व आया प्रभुवर की मान...
चलो मेरे आत्म प्रदेश
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परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज महाराज की असीम अनुकम्पा से आर्यिका रत्न श्री पूर्ण मति माताजी द्वारा रचित अध्यात्मिक भजनमाला प्रस्तुत है। चलो मेरे आत्म प्रदेश ओ चलो मेरे आत्म प्रदेश- सिद्धो का है जहां देश चलो अब वहां चलें- चलो मेरे आत्म प्रदेश- सिद्धो का है जहां देश चलो अब वहां चलें चलो मेरे आत्म प्रदेश- सिद्धो का है जहां देश चलो अब वहां चलें चलो अब वहां चलें छोड़ो संसारी ...
हे चेतन चेत जा अब तो
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हे चेतन चेत जा अब तो
हर पल गुरु की याद मुझे आती है
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हर पल गुरु की याद मुझे आती है
BHAKTAMBAR STOTRA आर्यिका रत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा प्रस्तुती भक्तामर स्तोत्र
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BHAKTAMBAR STOTRA आर्यिका रत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा प्रस्तुती भक्तामर स्तोत्र
हम पा गयें गुरु शरण अब कहां जायें, श्री १०५ आर्यिका रत्न श्री पुर्णमति माताजी द्वारा रचित।
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हम पा गयें गुरु शरण अब कहां जायें, श्री १०५ आर्यिका रत्न श्री पुर्णमति माताजी द्वारा रचित।
नवकार महामंत्र ,Om Namo Arihantanam, १०५ पूर्णमति माताजी
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नवकार महामंत्र ,Om Namo Arihantanam, १०५ पूर्णमति माताजी
MERE MANN BHAYI TERI DIVYA मेरे मन भायी मेरे मन भायी तेरी दिव्य छवि
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MERE MANN BHAYI TERI DIVYA मेरे मन भायी मेरे मन भायी तेरी दिव्य छवि
अब तो ए आतम श्री १०५ आर्यिका रत्न श्री पुर्णमति माताजी द्वारा रचित Ab to hey aatam
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अब तो ए आतम श्री १०५ आर्यिका रत्न श्री पुर्णमति माताजी द्वारा रचित Ab to hey aatam
आ तुझे अंतर में शांति मिलेगी Aa tujhe antar mein shanti milegi
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आ तुझे अंतर में शांति मिलेगी Aa tujhe antar mein shanti milegi
क्यों सुख स्वरूप होके भी परेशान हो गए Kyun sukh swaroop ho ke bhi
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क्यों सु स्वरूप होके भी परेशान हो गए Kyun sukh swaroop ho ke bhi
आपने शिवपद को पाकर दे दिया सत् पथ मुझे Aapne shiv pad ko pakar
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आपने शिवपद को पाकर दे दिया सत् पथ मुझे Aapne shiv pad ko pakar
तोड़ दे सारे बंधन सदा के लिए यह मुश्किल नहीं आत्मा के लिए श्री आर्यिका पुर्णमति माताजी द्वारा रचित
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तोड़ दे सारे बंधन सदा के लिए यह मुश्किल नहीं आत्मा के लिए श्री आर्यिका पुर्णमति माताजी द्वारा रचित
हे आतम आनंद धन जरा देख ले अपने अंतर में--- तू ही है स्वयं भगवन----- Hey aatam anand
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हे आतम आनंद धन जरा दे ले अपने अंतर में तू ही है स्वयं भगवन Hey aatam anand
अथ शांतिधारा गुरूवर आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज
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अथ शांतिधारा गुरूवर आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज
अथ वृहत शांतिधारा Vrahat Shantidhara
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अथ वृहत शांतिधारा Vrahat Shantidhara
ABHISEKH PAATH अभिषेकपाठ:' (आचार्य माघनंदी कृत) प्रस्तुति श्री १०५ आर्यिकारत्न पुर्णमति मातजी
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ABHISEKH PAATH अभिषेकपाठ:' (आचार्य माघनंदी कृत) प्रस्तुति श्री १०५ आर्यिकारत्न पुर्णमति मातजी

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